2050 तक भारत में उपचारित अपशिष्ट जल का बाजार मूल्य दोगुना से अधिक हो जाएगा

जल उपचार संयंत्र, Pc(cleantechwater)
जल उपचार संयंत्र, Pc(cleantechwater)

भारत 2050 तक अनुमानित सीवेज उत्पादन और उपचार क्षमताओं के आधार पर 35,000 मिलियन क्यूबिक मीटर से अधिक अपशिष्ट जल जमा कर सकता है। एक अध्ययन के अनुसार भारत के पास उपचारित जल  का पुन: उपयोग करने की जबरदस्त क्षमता है जो वर्ष  2050 तक भारत के 26 गुना क्षेत्र को सिंचित करने के लिए पर्याप्त होगा। अध्ययन से ये भी बात सामने आई है कि अगर भारत  साल 2021 में उपचारित जल का प्रयोग करता  तो  वह लगभग  28 मिलियन मीट्रिक टन फल और सब्जी का उत्पादन और 966 अरब रुपये का राजस्व उत्पन्न कर सकता था।  साथ ही  1.3 मिलियन टन ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन और उर्वरक उपयोग के मामले में 50 मिलियन रुपये की बचत कर पाता। 

CEEW ने केंद्रीय जल आयोग के अनुमानों का जो  विश्लेषण किया उससे ये बात सामने आई है  कि भारत में 15 प्रमुख नदी घाटियों में से 11 को 2025 तक जल संकट का सामना करना पड़ सकता है वही उपचारित अपशिष्ट जल को लेकर सीईईडब्‍ल्‍यू के प्रोग्राम लीड नितिन बस्सी का कहना है कि  "उपचारित अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग को बढ़ावा देने से मीठे पानी के संसाधनों पर दबाव कम होगा और कई लाभ और सकारात्मक स्थितियां पैदा होंगी। अकेले सिंचाई के लिए इसका पुन: उपयोग करने के लिए बाजार की बहुत बड़ी संभावना है, बशर्ते अपशिष्ट जल के पुन:उपयोग को बढ़ाने के लिए वित्तीय रूप से सक्षम मॉडल विकसित किए जाएं।" 

सीईईडब्‍ल्‍यू के 2021 के आंकड़ों  के अनुसार भारत शहरों से प्रति दिन उत्पन्न होने वाले कुल सीवेज का केवल 28 प्रतिशत ही उपचारित करता है। सीईईडब्ल्यू के अध्ययन में पाया गया कि भारत में केवल 10 राज्यों में उपचारित अपशिष्ट जल पुन: उपयोग नीति है। इन राज्यों की अधिकांश नीतियों में अपशिष्ट जल के अंतिम उपयोगकर्ताओं के लिए प्रोत्साहन नहीं है या पुन: उपयोग के  लिए गुणवत्ता मानकों को परिभाषित नहीं किया गया है। सीईईडब्‍ल्‍यू के शोधकर्ता साइबा गुप्ता ने कहा "राज्य की नीतियों में उपचारित अपशिष्ट जल गुणवत्ता मानकों के प्रावधान सुरक्षित निर्वहन मानकों तक सीमित हैं। सभी भारतीय राज्यों को विभिन्न क्षेत्रों में  अपशिष्ट जल उपचार मानकों को परिभाषित करना चाहिए।  राज्यों को लोगों का भरोसा पैदा करने और उनके व्यवहार में बदलाव के लिए प्रभावी जनसंपर्क योजनाएं बनानी चाहिए.


सीईईडब्ल्यू के अध्ययन में यह भी सुझाव दिया गया है कि उपचारित अपशिष्ट जल  को भारत के जल संसाधनों का अभिन्न हिस्सा बनाना चाहिए, और इसे जल प्रबंधन की सभी नीतियों योजनाओं  में शामिल करना चाहिए. इसके अलावा, उपचारित अपशिष्ट जल के पुन; प्रयोग के लिए शहरी स्थानीय निकायों की भूमिकाओं और उत्तरदायित्वों को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए. शहरों के स्तर पर वेस्टवॉटर रियूज की दीर्घकालिक योजनाएं बनाने और उन्हें लागू करने के लिए, शहरी स्थानीय निकायों को सशक्त बनाना भी महत्वपूर्ण है.

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Post By: Shivendra
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