अपनी कई सहायक नदियों के साथ भारत की नदी प्रणाली का निर्माण करती हैं। अधिकांश नदियां अपना जल बंगाल की खाड़ी में गिराती हैं। कुछ नदियों के प्रवाह उन्हें देश के पश्चिमी भाग से होते हुए और हिमाचल प्रदेश राज्य के पूर्व की ओर अरब सागर में ले जाते हैं। भारत की सभी प्रमुख नदियां तीन मुख्य जलसंभरों में से एक से निकलती है। भारत की नदियों को उत्पत्ति के आधार पर और उनके द्वारा बनाए गए बेसिन के प्रकार के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है।
नदी प्रदूषण मुक्ति असरकारी कार्ययोजना का सबसे पहला काम है अक्सर जाकर अपनी नदी का हालचाल पूछने का यह काम अनायास करते रहें। अखबार में फोटो छपवाने या प्रोजेक्ट रिपोर्ट में यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट लगाने के लिए नहीं, नदी से आत्मीय रिश्ते बनाने के लिए यह काम नदी और उसके समाज में उतरे बगैर नहीं हो सकता। नदी और उसके किनारे के समाज के स्वभाव व आपसी रिश्ते को भी ठीक-ठीक समझकर ही आगे बढ़ना चाहिए। नदी जब तक सेहतमंद रही,उसकी सेहत का राज क्या था?
पशु के शरीर में फ्लोराइड कई तरह से पहुँचता है, जैसे पीने का पानी, फ्लोराइड युक्त मिट्टी में उगाया हुआ चारा, खनिज मिश्रण तथा कारखाने से निकलने वाली प्रदूषित हवाएं ! हवा में मौजूद धूलि कण आदि। जहाँ फसलों को रॉक फॉस्फेट, मोनो अमोनियम तथा डाय अमोनियम फॉस्फेट पूरक खाद डाली जाती है। वहां की भारी फ्लोराइड विषाक्तता पायी जाती है, पृथ्वी के परत में मौजूद पानी में फ्लोराइड रिसता है
हाल ही के वर्षों में वहां बर्फ इतनी तेजी से पिचलने लगी है कि जिसे देखकर डर लगता है डर की वजह यह है कि इन इलाकों की एक सेंटीमीटर बर्फ पिघलने का असर 60 लाख लोगों पर पड़ता है। इसका अभिप्राय यह है कि इस तरह 60 लाख नए लोग डूब क्षेत्र की जद में आ जाते हैं।
पूरी दुनिया में मौसमों की चाल ने ऐसी कयामत बरपाई है कि हर कोई हैरान-परेशान है। धरती पर रहने वाले तमाम जीव-जंतुओं से लेकर इंसान भी इस गफलत में पड़ गये हैं कि वह आखिर तेज गर्मी सर्दी से कैसे बचें। विज्ञान के तमाम आविष्कारों के बल पर हर परिस्थिति से लड़ने में सक्षम इंसान अब खुद को बचाए रखने की जद्दोजहद से जूझने लगा है। ऐसा लग रहा है मानो पृथ्वी पर कोई प्राकृतिक या मौसमी आपातकाल लग गया है और उससे बचने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है।
Groundwater depletion from shallow and deep aquifers due to overextraction and seawater intrusion are rapidly drying up freshwater resources in the Cauvery delta. Large-scale groundwater recharge campaigns to raise awareness and aid the recovery of water levels are urgently needed.
आधुनिक युग में पढ़ते औद्योगीकरण व विकास की अन्य मानवीय गतिविधियों के चलते विभिन्न जल स्रोतों के जल की गुणवत्ता पर काफी मात्रा में विपरीत प्रभाव पड़ा है। अतः जल प्रदूषण पर्यावरण के लिए एक बड़ी समस्या बन चुकी है। परन्तु जलराशियों के लिए प्रदूषण के अलावा संदूषण भी एक और समस्या है
आज के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि किसी को मी भूमि (मिट्टी या मृदा) की फिक्र नहीं है। वास्तव में मिट्टी या मृदा की स्थिति कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में शरशय्या पर लेटे घायल भीष्म पितामह जैसी है। भीष्म पितामह को अर्जुन के बाणों से बिंधने के कारण उतनी पीड़ा नहीं थी जितनी कि महाभारत के युद्ध में हुए भीषण नरसंहार के बाद भारत के भविष्य को लेकर थी।
भूजल में फ्लोराइड का प्रदूषण चट्टानों और अवसादों का अपक्षय और उनमें फ्लोराइड युक्त खनिजों के लीचिंग के कारण होता है। इनके अतिरिक्त उर्वरक और एल्यूमीनियम फैक्टरी के अवशिष्ट जल के भूजल में मिलने से भी पानी फ्लोराइड युक्त हो सकता है। फ्लोराइड की मात्रा कुछ खाद्य पदार्थों में भी अधिक होता है जैसे की समुद्री मछली, पनीर, तुलसी एवं चाय, खाद्य-सामग्री में फ्लोराइड की मात्रा मुख्यतः मिट्टी के प्रकार, भू-पटल में उपस्थित लवणों एवं उपलब्ध पानी पर निर्भर करती हैं। पशु एवम् मनुष्य के शरीर में फ्लोराइड अथवा हाइड्रोफ्लोरिक अम्ल के अधिक प्रवेश होने से फ्लोरोसिस रोग होता है। इसके कारण पशुओं में बाँझपन, उत्पादन घाटा, दांत, हड्डियां, खुर, सींग में विकृति, और अन्य शारीरिक अंग प्रभावित हो सकते हैं।
भारत में औसत वार्षिक वर्षों की 90 प्रतिशत से अधिक वर्षा वर्षा के चार महीनों (जून से सितम्बर) की अवधि के दौरान होती है तथा वर्षा का वितरण बेहद असमान है और स्थानिक रूप में इसमें बहुत अधिक भिन्नता है। जिसके कारण वर्ष भर विभिन्न क्षेत्रों की पानी की मांग को पूरा करना अत्यधिक कठिन है।
जल प्रदूषण के लिए प्राथमिक कारण जल का अत्यधिक दोहन है जिसने जल प्रदूषण को काफी हद तक बढ़ाया है। पानी की गुणवत्ता संदूषण के विभिन्न कारणों से प्रभावित होती है, जिसमें शहरी और औद्योगिक अपशिष्टों की निकासी और खेतों से जल का बहना शामिल है नये अपशिष्ट पदार्थ इसी तरह जलमार्गों और झीलों में घुल जाते हैं। इस तरह के प्रदूषण मानव जीवन में प्राकृतिक तरीके से प्रवेश कर प्रभावित करते हैं और तब तक एकत्रित होते हैं जब तक कि वे खतरनाक स्तर तक नहीं पहुंच जाते जल प्रदूषण जलीय जीवों और कशेरुकियों की मृत्यु का भी कारण बनते हैं।
प्रदूषण आज की एक ज्वलंत समस्या है। प्रदूषण पर्यावरण को ही दीमक की तरह खोखला कर रहा है। आज न केवल मानव जाति, अपितु पशु-पक्षी भी प्रदूषण से व्यथित एवं कुंठित हैं। जन जीवन प्रदूषण से प्रतिकूल प्रभावित हुआ है। विकलांगता, अंधापन आदि प्रदूषण के ही परिणाम है। प्रदूषण चाहे हवा हो या जल का प्रदूषण मानव जाति के लिए घातक है। यही कारण है कि उच्चतम न्यायालय को इण्डियन कौसिंल फार एन्वायरो लीगल एक्शन बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया (ए.आई.आर. 1996 एस.सी. 1446) के मामले में यह कहना पड़ा कि अब समय आ गया है जब प्रदूषण निवारण एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए शासन, प्रशासन और स्वैच्छिक संगठनों को पहल करनी होगी।
भारत का तीन-चौथाई भूभाग सूखा ग्रस्त है। इसके अलावा यहां चेरापुंजी जैसे कई अन्य क्षेत्र भी हैं। जहां बारिश काफी ज्यादा होती है। फिर भी सूखा पड़ता है। बहुउद्देशीय बांध निर्माण व जलाशयों की दृष्टि से भारत का विश्व में चौथा स्थान होने के बावजूद देश भर में पानी की कमी स्पष्ट दिखाई देने लगी है। इस समस्या का काफी हद तक निवारण वॉटरशेड प्रबंधन व पानी की खेती को अपना कर किया जा सकता है। लेकिन सरकार यह कार्य अकेले नहीं कर सकती है।
भारत में जैविक कृषि का इतिहास लगभग 5000 वर्षों से भी ज्यादा पुराना है। यह सजीव खेती का ही परिणाम था कि इतने लम्बे समय तक अनवरत अन्न उत्पादन के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी बनाये रखा जा सका। सन् 1966-67 से भारत में हरित क्रांति की शुरूआत की गयी। कृषि प्रौद्योगिकीकरण के नाम पर सघन खेती शुरू की गई। साथ ही संकर बीजों और रासायनिक कीटनाशी व खरपतवारनाशी तथा अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों के दुष्परिणाम ने खेत, मिट्टी, उपज, किसान और पर्यावरण सभी को प्रभावित किया। मिट्टी की उर्वरा शक्ति, उत्पादकता, जैवविविधता खाद्य पदार्थ की गणुवत्ता के साथ-साथ समूचे पर्यावरण को भी खतरा उत्पन्न हो गया है। हजारों वर्ष पुरानी परम्परागत खेती के तरीके जिन्हें हमने रूढ़िवादी और पुरानी नीति समझकर नकार दिया था वही इन्द्रधनुषीय विकास के मूलसूत्र हैं।
शोधकर्ताओं ने 40 से 65 साल के उम्र के 927 लोगों के डेटा का विश्लेषण किया गया । जिन्होंने साल 2020 की गर्मियों में और 2021 में कोविड-19 टीकाकरण की शुरुआत के बाद अपने खून के नमूने दिए थे। इनमें से सभी ने कोविड वैक्सीन की 1 या 2 डोज ली हुई थी