पहाड़ी जिलों में बिगड़ रहे हालात 

पहाड़ी जिलों में बिगड़ रहे हालात (Pc- Hindi Vivek)
पहाड़ी जिलों में बिगड़ रहे हालात (Pc- Hindi Vivek)

हमने बचपन से बड़े होते अक्सर यह सुना है, जल ही जीवन है, अर्थात जल के बिना जीवन संभव ही नहीं। लेकिन प्राकृतिक जलस्रोत लगातार सूखते जा रहे हैं। हालात यह हैं कि एशिया के वाटर हाउस वाले हिस्से में भी यानी हिमालय में जल संकट की समस्या पैदा हो चुकी है। हिमालयी राज्य उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और नॉर्थ ईस्ट जैसे राज्यों में जल के लिए करीब 60% आबादी झारनों और प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर है। इन सभी प्रदेशों में उत्तराखंड की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है।

पेयजल स्रोत

सूख गए (प्रतिशत)

461

76 फीसदी

1290

51-75 फीसदी

2873

50 फीसदी

 

उत्तराखंड में गर्मी के आते ही जल संकट गहराने लगता है। मैदानी और पहाड़ी दोनों ही क्षेत्रों के जिलों में पानी की किल्लत बढ़ने लगती है। अभी साल 2023 का मार्च का महीना चल रहा है। आमतौर पर प्रदेश में जल संकट मई के महीने में देखने को मिलता है। लेकिन इस बार यह जल संकट मार्च के महीने में ही गंभीर होता चला है।  तापमान सामान्य से 10 डिग्री अधिक है। अभी से ही पानी की कमी को लेकर जल संस्था के पास लोगों की शिकायतें पहुंच रही हैं, वहीं इस बार सर्दी का मौसम भी उत्तराखंड के लिए कुछ खास नहीं रहा। सर्दी के मौसम में बारिश सामान्य से 90 फीसदी कम रही । पहाड़ी जिलों में पानी की पूर्ति प्राकृतिक स्रोतों यानी नौलों-धारों पर निर्भर करती है। लेकिन समय के साथ जल संकट के कारण प्राकृतिक संसाधनों में भी पानी अब सूखने लगा है।

गर्मी को देखते हुए उत्तराखंड के जल संस्थान ने हाल ही के दिनों एक अध्ययन किया था जिससे यह समझा जा सकता है कि पहाड़ी जिलों के लिए भविष्य में आने वाला बड़ा जल संकट अब नजदीक  है। प्रदेश में 4,624 गधेरें और झरनों के पानी में भारी कमी आई है। इस अध्ययन में जल संकट को तीन श्रेणियों में बांटा गया है, जिससे पता चलता है कि कितने प्रतिशत तक पानी कम हो रहा है।  प्रदेश के 461 पेयजल स्रोत में  76 फ़ीसद,1290 पेयजल स्रोत में 51 फ़ीसद से 75 फ़ीसद, 2873 पेयजल स्रोत में  50 फ़ीसद तक पानी की कमी आई है।

उत्तराखंड में कुल 13 जिले हैं जिन्हें गढ़वाल और कुमाऊं मंडल में बांटा गया है । इन 13 जिलों में से 11 जिले ऐसे हैं, जहां गर्मी के आते ही जल संकट बढ़ जाता है। कुमाऊं के अल्मोड़ा , बागेश्वर ,चंपावत, नैनीताल, पिथौरागढ़ और गढ़वाल के उत्तरकाशी देहरादून, टिहरी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग चमोली आदि जिलों में पानी को लेकर बढ़ती गर्मी के साथ ही लोगों का त्राहिमाम मचने लगता है। पहाड़ पर रहना अब आसान नहीं है। पानी के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। पहाड़ी गांव में सिर्फ प्राकृतिक स्रोत ही पानी की पूर्ति कर पाते हैं। प्राकृतिक स्रोत पानी के लिए बारिश पर निर्भर करते हैं इन्हीं स्रोतों  से लोग अपनी जरूरतों को पूरा कर पाते हैं।

सबसे बड़ी विबंडना यह भी है कि उत्तराखंड जल निगम और जल संस्थान में पानी सप्लाई के लिए लाई गई योजनाओं में भी 90 फीसद  पानी खत्म हो चुका है। उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है, गर्मी और सर्दी दोनों ही समय पर बारिश होती है। लेकिन अब उत्तराखंड में पिछले कुछ वर्षों की तुलना में कम हो रही है या फिर मौसम की मार के कारण गलत वक्त पर। लिहाजा  उत्तराखंड में जल संकट अलार्मिंग सिचुएशन पर पहुंच चुका है।  

 

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