यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक ओर हम जैव विविधिता के संरक्षण के प्रति चिंता जताते हुए संगोष्ठियां करते हैं, नए कानून बनाते हैं, वहीं प्रति वर्ष लाखों हेक्टेयर वन एवं करोड़ों जीवों का विनाश कर जैव विविधता को चुनौती देते हैं। ऐसे में समझना कठिन हो जाता है कि हमारे इस दोहरे आचरण से जैव विविधता का संरक्षण किस तरह होगा।
मौसम विज्ञानी और जलवायु वैज्ञानिक दोनों ही, एक बार फिर, चरम मौसम की घटनाओं में भारी वृद्धि के लिए ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते स्तर को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। स्थिति को समझाते हुए स्काइमेट वेदर में मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन विभाग के उपाध्यक्ष, महेश पलावत ने कहा, “अत्यधिक भारी बारिश का चल रहा दौर तीन मौसम प्रणालियों के एक साथ होने का नतीजा है।
सरकारी तंत्र प्रतिवर्ष वृक्षारोपण अभियान आयोजित करता है। इस कार्यक्रम के पीछे भाव अच्छा है परंतु धरती पर हरियाली फैलने से अधिक ये आंकड़ों का खेल बनकर रह गया है। हमें अपने लिए स्वच्छ वायु चाहिए, हमारे ही द्वारा उत्सर्जित प्रदूषण का निराकरण चाहिए, वातावरण के बढ़ रहे तापमान पर नियंत्रण चाहिए।
कुछ माह पहले तक जोशीमठ के धंसते जाने की खबर देशव्यापी चर्चा का विषय थी, अब न्यूयॉर्क के निरंतर धंसते जाने की खबर विश्वव्यापी चर्चा का विषय है। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि न्यूयॉर्क शहर धीरे-धीरे डूब रहा है और इसकी गगनचुंबी इमारतें इसे नीचे ला रही हैं।
प्रमुख औद्योगिक नगर कानपुर के चमड़े कपड़े और अन्य उद्योगों के अपशिष्टों के प्रभाव तले वहां गंगा का जल काला हो जाता है। गंगोत्री से लेकर वाराणसी तक गंगा नदी में 1611 नदियां और नाले गिरते हैं तथा केवल वाराणसी के विभिन्न घाटों पर लगभग 30,000 लाशों का दाह संस्कार होता है।
भारतीय कृषि में हरित क्रांति का प्रभाव काफी हद तक सिंचित क्षेत्रों में मुख्यतः चावल और गेहूं की फसल तक सीमित रहा। हमारे देश में प्रति इकाई क्षेत्रफल उत्पादकता, अन्य देशों की अपेक्षा काफी कम है। इसके अतिरिक्त राज्यों में और राज्यों के विभिन्न जिलों में विभिन्न फसलों की उत्पादकता में काफी भिन्नता पाई गई है।
भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी 75 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या गांवों में रहती है। इन लोगों की जरी जावश्यकताओं को पूरा करने के लिये जल संसाधनों का सही तरीके से पूरा विकास किया जाना चाहिये जन संसाधनों के सही तरीके से पूरा विकास किया जाना चाहिए।
खूबसूरत मौसम खरामा-खरामा खौफनाक हो जाता है। प्रकृति में भी दूर की कौड़ी आ जाती है मध्य एशिया में इकट्ठी शीतकालीन हवाएं घड़ी की सूई की तरह सर्पिल गति से बिखर वितरित होने लगती है। यही हवा के झोंके हिमालय को लांघ उत्तर भारत के गांगेय मैदानी इलाकों को घेर लेते हैं।
भारत में लगभग 100 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र से खाद्यान्न उत्पादन वर्ष 1950 में 60 मिलियन टन था तथा उत्पादकता बहुत ही कम (500-600 किलोग्राम / हेक्टेयर) थी। देश की आबादी के भरण पोषण हेतु हमें आवश्यक खाद्यान्न के लिए आयात पर निर्भर रहना पड़ता था।
जलवायु परिवर्तन पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। लेकिन, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के एक शोध के नतीजों ने इस चिंता को और बढ़ा दिया है। इस शोध के मुताबिक देश के दो तिहाई हिस्से में जलवायु परिवर्तन से पैदा होने वाली समस्याओं का सामना करने की क्षमता नहीं है।
केदारनाथ एवं यमुनोत्री में अतिवृष्टि की अनेक घटनाएं भारी वर्षापात के रूप में हो चुकी हैं 18-19 अगस्त 1998 को केदार घाटी में मन्दाकिनी नदी की सहायक नदियों जैसे मद्यमहेश्वर तथा कालीगंगा में हुई भारी वर्षा से सक्रिय हुए भूस्खलनों में 100 से अधिक जानें गई थीं
भारत जैसे देश में जलवायु परिवर्तन एक बहुत बड़ी समस्या है, विशेषकर कृषक समुदायों के लिए मानसून पर अधिक आश्रित होने एवं दक्षिण-पश्चिम मानसून के असामान्य व्यवहार के कारण वर्षा आधारित कृषि पर इसका प्रभाव सबसे अधिक है।
1947 में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष जल की प्राप्यता 6008 घनमीटर थी वहीं पचास वर्षों में यह घट कर 2266 घनमीटर रह गई। इसलिये यह भावना तीव्र होती गई कि वर्षा के जल को सागरों और प्राकृतिक झीलों में समाने से पहले ही धरती की तनिक ऊँचाइयों में रोक लिया जाये जिसे आवश्यकतानुसार वर्ष के सूखे दिनों में उपयोग किया जा सके। इस विचार से प्रेरित होकर पूरे विश्व में विशाल बाँधों की रचना हुई।
उष्णकटिबंधीय वन अनुसंधान संस्थानप्राकृतिक कारणों से भी शुद्ध वर्षा का जल अम्लीय होता है। इसका प्रमुख कारण वायुमंडल में मानवीय क्रियाकलापों के कारण सल्फर ऑक्साइड व नाइट्रोजन ऑक्साइड के अत्यधिक उत्सर्जन के द्वारा बनती हैं। यही गैसें वायुमंडल में पहुँचकर जल से रासायनिक क्रिया करके सल्फेट तथा सल्फ्यूरिक अम्ल का निर्माण करती है।
वायु के बाद मानव समाज के लिए जल की महत्ता प्रकृति द्वारा प्रदत वरदानों में से एक है। जल ने पृथ्वी पर जीवन और हरियाली विकसित होने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन किया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि जल ही जीवन है एक लोकोक्ति है कि जल है तो कल हैं