कालबैसाखी की कालिमा यानी कालबैसाखी झंझावात क्या है (what is Kal Baisakhi thunderstorm)

कालबैसाखी कहर,फोटो क्रेडिट:IWPFlicker
कालबैसाखी कहर,फोटो क्रेडिट:IWPFlicker

काल की तरह आती है कालबैसाखी कहर बरपा जाती है। संत कवि तुलसीदास ने रामचरित मानस के अरण्यकांड में इसे 'धूरि पूरि नभ मंडल रहा' कहा है (आकाश धूलि धूसरित हो गया)। मार्च से मई तक के महीने मातमी माने जाते हैं। आकाश का उत्तरी-पश्चिमी आकर्षक छोर अचानक आक्रामक हो जाता है। गगनचुंबी बदरंग बादल गर्जन-तर्जन करने लगते हैं, कौंधती बिजली कड़कने लगती है, हुंकार भरती हवा के झोंके हू-हू करने लगते हैं, बलात बारिश की बौछारों की झमाझम झड़ियां लग जाती हैं, आस-पास अस्त व्यस्त हुए बिना नहीं रहता है और अफरा-तफरी मच जाती है। इतनी कुरूपा होती है कराली ‘कालबैसाखी’। 

कहां होती है कालवैसाखी की कोख ? 

छोटा नागपुर के पठार और रांची से जमशेदपुर तक के क्षेत्र जब बेहद तपने-झुलसने लगते हैं तो वहां की गर्म हवाएं जैसे-जैसे ऊपर उठने लगती हैं, वैसे-वैसे उनकी खानापूर्ति के लिए समीपवर्ती समुद्री शीतल हवाएं वहां पंहुचने लगती हैं। गर्म और ठंडी वायु-संहतियों के बीच की तीक्ष्ण सीमाएं होती हैं। जब भिन्न-भिन्न किस्म की वायु एक दूसरों से टकराती हैं, तब वे आसानी से घुल-मिल नहीं सकतीं। इसके विपरित ठंडी हवाएं गर्म हवाओं के नीचे सरक जाती हैं और उनके बीच एक संक्रमण क्षेत्र विकसित हो जाता है। पवन के प्रवाह की यह प्राकृतिक प्रवृत्ति होती है। इस प्रकार वातावरण में वायु के विनिमय से ही बज्रमेघ की व्युत्पत्ति होती है और इसे ही तड़ित झंझा (थंडर स्टॉर्म) कहा जाता है, जिसका स्थानीय नाम 'कालवैसाखी' भी है। 

कालबैसाखी का निर्माण (थंडरस्टार्म)

मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक कालबैसाखी के लिए तीन नैसर्गिक परिस्थितियां जरूरी हैं- समुद्री नम हवाएं, तपते झारखंड और तप्त बंगाल के मैदान, और चक्रवाती संचरण (प्रवाह)। झंझावात (स्क्वॉल) कहलाने के लिए कम से कम एक मिनट तक पैंतालीस कि.मी. वायु-वेग अनिवार्य होना चाहिए। इस प्रकार स्पष्ट है कि वातावरण में तपिश और नमी के आधिक्य से ही बज्रमेघ बनते हैं। साधारणतया ये व्यष्टिगत मेघ होते हैं, जिनकी आकृति उठे हुए टीले या गुंबद की तरह होती है। कपासी मेघ के वृहदाकार हो जाने पर इसका नाम 'कपासी संकुल' हो जाता है। और जब इससे वर्षा होने लगती है तब इसे 'कपासी वर्षा' कहते हैं। ऐसे मेघों से ही बहुधा तड़ित और मेघगर्जन होते हैं, अतएव इसे 'तड़ितझंझा' भी कहा जाता है। चक्रवात निम्न वायुमंडलीय दबाव के केंद्र के कारण ही होते हैं। चक्रवात के चारों ओर वात का प्रवाह उत्तरी गोलार्ध में वामावर्त और दक्षिण गोलार्ध में दक्षिणावर्त होता है। वाताग्री चक्रवात 'अवदाब' भी कहलाता है। बरसाती बादल के स्तर- प्रतिस्तर जितने दीर्घाकार होते हैं, उतने ही तूफान तेज-तर्रार व तीव्रतर होते हैं।

खूबसूरत मौसम खरामा-खरामा खौफनाक हो जाता है। प्रकृति में भी दूर की कौड़ी आ जाती है मध्य एशिया में इकट्ठी शीतकालीन हवाएं घड़ी की सूई की तरह सर्पिल गति से बिखर वितरित होने लगती है। यही हवा के झोंके हिमालय को लांघ उत्तर भारत के गांगेय मैदानी इलाकों को घेर लेते हैं, पर ऐसी उथल-पुथल ऊंचाइयों पर होती है, जिसे 'क्षोभमंडल' कहते हैं। यहाँ ब्रह्मपुत्र घाटी की सरसराती हवाओं का सम्मिलन हो जाता है। ऐसे में पश्चिम बंगाल की समतल भूमि अपराहन में गर्मी के कारण आग-बबूला हो अपना आपा खो बैठती है। नतीजतन, तपते मैदान के संस्पर्श के कारण हवाएं भी गर्म होने से नहीं बचतीं, विस्तृत हो फैल जाती हैं और इस प्रक्रिया के दौरान हल्की हो ऊपर उठ जाती हैं, जिसे ऊर्ध्वारोहण कहा जाता है। अंततोगत्वा, उत्तर-पश्चिम से प्रवाहित शुष्क शीतल हवाओं के संपर्क में आने पर दो प्रकार की हवाएं उलट-पलट जाती हैं। शुष्क शीतल हवाएं भारी होने से पृथ्वीमुखी यानी निम्नगामी हो जाती हैं और गर्म आई हवाओं से वज्रमेघ में रूपांतरित हो जाती हैं। बज्रमेघ के स्तर शुष्क शीतल हवाओं पर सवार हो उत्तर-पश्चिम की दिशा से द्रुतगामी हो प्रचंड वेग से बेलगाम बहने लगती हैं। अक्सर तड़ितझंझाएं अपराहन या शाम को सामत बनकर आ धमकती हैं। काल बैसाखी के कारण पसीने से तर-बतर होते लोगों को थोड़ी राहत भी मिलती है क्योंकि लू से बचाव हो जाता है। लगे हाथों आर्द्रता भी कम हो जाती है पसीना नहीं निकलता। हवा की दिशा दक्षिण से उत्तर-पश्चिम हो जाती है, पर मौसमी दबाव बढ़ जाता है, इसके विपरीत किसी और तूफान की वजह से ऐसा बिल्कुल नहीं होता बल्कि घट जाता है।

पिछले पांच वर्षों की तुलना में सर्वाधिक एक साल, सतरह, छब्बीस और तीस अप्रैल को सात झंझाएं समेत आठ तड़ितझंक्षाएं हुईं, जिनसे पहले चक्रवात अनाम होते थे। लेकिन अब उनका विधिवत सालाना नामकरण संस्कार होता है विश्व आबोहवा संगठन (दी वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल (आर्गेनाइजेशन) के दक्षिण एशिया के आठ सदस्य देश बारी-बारी नामकरण करते हैं जैसे 'बिजली' या 'आइला' जिसका अर्थ ‘आग’ होता है भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, मालद्वीप, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका और थाइलैंड यही आठ सदस्य ऐसी रस्म अदायगी में भाग लेते हैं। मसलन भारत ने बिजली, बांग्लादेश ने निशा, पाकिस्तान ने फानूस और नर्गिस और लैला और म्यांमार ने फियान, ओमeन ने वार्ड, श्रीलंका ने बंदु और थाइलैंड ने फेत अब तक यह नामावली काफी लंबी हो गयी है। नाम छोटे इसलिए रखे जाते हैं, जिसे सहजता से समझा या समझाया जा सके। बहरहाल, नाम से क्या फर्क पड़ने वाला है, चक्रवात तो चीख ही निकलवाने वाला होता है. और काल बैसाखी तो कहर ही ढाने वाली होती है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर (आईआईटी. खड़गपुर) के (कोरल) समुद्र, नदियों, जलवायु और भू-विज्ञान केंद्र (सेंटर फॉर ओसन्स, रिवर्स, एटमॉस्फियर एंड लैंड साइन्स) के वैज्ञानिक 'भारतीय मौसमविज्ञान केंद्र' के अनुरोध पर पड़ताल करने वाले हैं कि आखिर क्यों इतने ताकतवर तूफान तरतीब से ताबड़तोड़ तबाह कर रहे हैं। सम्प्रति झंझा, तड़ित झंजा और प्रभंजन तीस की संख्या पार कर गए हैं। एक ही दिन कई-कई बार तूफान झेलने पड़ रहे हैं। पिछले वर्ष सतरह अप्रैल को दो पहले, प्रति घंटा चौरासी कि.मी. की रफ्तार से दूसरी अट्ठानवे कि.मी. प्रति घंटा की रफ्तार से, फिर छब्बीस अप्रैल को पहली साठ कि.मी. प्रति घंटा की रफ्तार से, दूसरी और तेज अस्सी कि.मी. प्रति घंटा की रफ्तार से और अठारह मई को पहली छप्पन कि.मी. प्रति घंटा की रफ्तार से और दूसरी बानव्ये कि.मी. की रफ्तार से। इन तीनों तूफानों के सूक्ष्म अध्ययन से स्पष्ट है कि हर दिन का दूसरा तूफान पहले तूफान की तुलना में तीव्रतर और तबाहकारी रहा। तीन सी से ज्यादा पेड़ धराशायी हुए पांच लोग मरे और सोलह गाड़ियां क्षतिग्रस्त हुई। यह भी विचारणीय है कि दो हजार छह से दो हजार दस के दौरान इने गिने तूफानों की तलाश रहती थी लेकिन अब ऐसा आलम है कि वे आए दिन आने लगे हैं और आतंकित कर रहें हैं।

'फोरल' के प्रधान एएन. व्ही. सत्यनारायण के मुताबिक वातावरण के दो प्रमुख उपादान हैं यानी केप ताप संवहनकारी शक्तिशाली ऊर्जा (कनवेक्टिव अवेलेबल पोटेंशियल एनर्जी) और सिन ताप- संवहन रोधी ऊर्जा (कनवेक्टिव इनहिबिशन एनर्जी) इन्हीं दोनों उपादानों के कारण झंझावात उत्पन्न होते हैं जिसके लिए केप के उच्च और सिन के निम्न रहने की जरूरत होती है, ठीक इसके उलट होने पर कई झंझाएं (नारवेस्टर्स) होती हैं तूफान के कम या अधिक होने के यही संभाव्य कारण हैं। इसका निष्कर्ष है कि असमान ऊष्मा (गर्मी) के (विवर) टुकड़े जो प्रदूषण और ग्रीन उस गैसों के उत्सर्जन जनित होते हैं अनुसंधानकर्ताओं की अवधारणा है कि गंगेय पश्चिम बंगाल में संवाहक बादलों का बनना आम है। लेकिन अब उनका पच्चीस कि.मी. ऊंचे-ऊंचे विकराल आकार अख्तियार कर लेना अस्वाभाविक है। अतएव उनका व्यापक असर भयावह और विनाशक हो गया है। यह भी एक वजह हो सकती है कि शीतकालीन मौसम क्रमशः घट रहा है और ग्रीष्मकालीन बढ़ रहा है। पिछले सौ साल के मौसम संबंधित आंकड़ों का विधिवत विश्लेषण किया जा रहा है ताकि दो हजार पचास साल तक की संभावनाओं का खाका खींचा जा सके।


लेखक संपर्क - श्री संतन कुमार पांडेय, लेक उत्सव, पी-531 पर्णश्री, फल्ली फ्लैट 3ए, कोलकाता -700060 ई-मेल: shukampan33@gmail.com
सोर्स - विज्ञान प्रगति - मई 2019


 

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Post By: Shivendra
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