मूल सरयू ही पुरानी सरयू है
“उत्तर प्राचीनकाल में सरयू आजमगढ़ जनपद के अंतर्गत गोपालपुर एवं सगड़ी परगनाओं की सीमा के पास दो शाखाओं में विभक्त हो गयी। इसकी मुख्य शाखा उत्तर की ओर चली गयी. जो बड़ी सरयू कहलायी एवं गौड़ शाखा जिसमें पानी कम था, पुराने प्रवाह मार्ग पर ही रह गयी और छोटी सरयू कहलायी। जिसे आज 'लोक दायित्व' डॉ० रामअवतार शर्मा के निर्देश पर मूल सरयू कहता है।”



मूल सरयू ही पुरानी सरयू है PC-नवभारत टाइम्स
Securing land rights for deprived urban communities
ActionAid drives change for deprived urban communities' rights to land, housing, and basic amenities
Communities assert their right to urban land (Image: Abraham Chacko, Flickr Commons, (CC BY-NC-SA 2.0))
शास्त्रों से संगम तक मूल सरयू
प्रभु राम के किलोल करने की साक्षी है सरयू। मानसरोवर से निकलने एवं पापों को नष्ट करने की शक्ति के कारण इन्हें सरयू कहते हैं। "सरंति पापानि अनपा इति सरयू । ऋग्वेद के पाँचवें मंडल के नदी सूक्त में इनका उल्लेख कई बार आता है- "भावः परिष्ठानि सरयूः ।" वाल्मीकि रामायण में उल्लेख है- "कोसलो नाम मुदितः स्फीतो जनपदो महान विशिष्टो सरयू तीरे।"

मूल सरयू बचाओ अभियान
बिहार की गर्म जलवायु में भी सेब की सफल खेती
मुजफ्फरपुर, बिहार जैसे गर्म जलवायु वाले प्रदेश में भी कोई किसान सेब की सफलतापूर्वक खेती कर सकता है? सुनने में यह थोड़ा आश्चर्य हो सकता है, लेकिन इसे मुमकिन कर दिखाया है एक प्रगतिशील किसान राजकिशोर सिंह कुशवाहा ने. लीची के लिए मशहूर मुजफ्फरपुर की धरती पर सेब की खेती कर राजकिशोर सिंह कुशवाहा ने यहां के किसानों को एक नयी दिशा दी है। ज़िले के मुशहरी प्रखंड स्थित नरौली गांव के इस किसान के खेत में वर्तमान में सेब के 250 पेड़ फलों से लहलहा रहे हैं।
बिहार की गर्म जलवायु में भी सेब की सफल खेती,PC-चरखा फीचर
An anthropologist visits orans in Rajasthan
Orans are traditional sacred groves found in Rajasthan. These are community forests, preserved and managed by rural communities through institutions and codes that mark such forests sacred. Orans have significance for both, conservation and livelihood. The author visited two orans in Alwar district in Rajasthan and in this article, she writes about her observation.
Since ancient times, communities in Rajasthan have preserved these orans, and their lives have been inextricably entwined with them. (Image: Ranjita Mohanty)
Urgent need for coordinated effort to put out forest fires in Odisha
There is a strong correlation between forest fires and tendu prevalence in Odisha
Forest fires ignited by natural causes, but major contribution of human action cannot be denied (Image: Naveen N K, Wikimedia Commons)
Investments in local risk resilience
UNICEF and G20 Disaster Risk Resilience (DRR) Working Group call for new social protection systems
Social protection has emerged as an important policy instrument to utilise disaster risk finances (Image: Gerd Altmann, Pixabay)
फसलों में सिंचाई के लिये अपशिष्टजल का उपयोग
देश में बढ़ती आबादी, औद्योगिकीकरण, गहन कृषि और शहरीकरण आदि हमारे विशाल लेकिन सीमित जल संसाधनों पर भारी दबाव डालते हैं। इसके परिणाम स्वरूप, भारत में वर्ष 2050 तक जल की माँग 32 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी, जिसमें औद्योगिक और घरेलू क्षेत्र में ही इस पूरी माँग का 85 प्रतिशत हिस्सा होगा। अनियंत्रित शहरीकरण के कारण भूजल का अधिकाधिक दोहन, जलभृतों को पुनः भरित करने में असफलता एवं जलग्रहण (कैचमेंट) क्षमता में कमी आदि जल संतुलन में अनिश्चित दबाव के कई मुख्य कारण हैं।
फसलों में सिंचाई के लिये अपशिष्टजल का उपयोग, PC-organicawater
नमी तनावः सब्जी वर्गीय फसलों पर इसका प्रभाव एवं संभावित प्रबंधन विकल्प   
वर्तमान में भारत के लगभग 140 मिलियन हेक्टेयर के बुआई क्षेत्र में से 68% क्षेत्र सूखे की स्थिति के प्रति अधिक संवेदनशील है और लगभग 50% ऐसे क्षेत्र को 'गंभीर' श्रेणी के रूप में वर्गीकृत किया गया है जहाँ सूखे की आवृत्ति लगभग नियमित रूप से घटित होती रहती है।
नमी तनावः सब्जी वर्गीय फसलों पर इसका प्रभाव एवं संभावित प्रबंधन विकल्प,PC-VikasPedia
फसल एवं जल की उत्पादकता तथा आय में वृद्धि हेतु कुसुम - मटर अंतरसस्य फसल पद्धति
अंतरसस्य फसल पद्धति में एक ही स्थान पर एक ही भूमि के टुकड़े में एक साथ दो या इससे भी अधिक फसलों की खेती की जाती है अंतरसस्य फसल पद्धति को अपनाकर फसल की समान तुल्य उपज और अर्थिकी को इसमें संसाधनों की उपयोग दक्षता में वृद्धि और मृदा में नाइट्रोजन स्थिरीकरण की वजह से मृदा की उर्वरता में सुधार द्वारा बढाया जा सकता है क्योंकि दलहन फसलें मृदा में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करती है।
 मटर की वैज्ञानिक खेती, Pc- krishakjagat
खरीफ धान के बाद फसल की उत्पादकता को बढाने और आय में वृद्धि के लिये कम से कम सिंचाई के साथ सूरजमुखी की खेती
सूरजमुखी एक उभरती हुई तिलहन फसल है जिसमें खरीफ धान की फसल के बाद एक आपातकालीन (Contingent ) फसल के रूप में समायोजित होने की अनुकूलन क्षमता है या यूं कह सकते हैं कि यह फसल नीची भूमि के पारिस्थितिक तंत्र में अधिक जल आवश्यकता वाली धान की फसल का एक बहुत ही अच्छा विकल्प है।
सूरजमुखी एक उभरती हुई तिलहन फसल,Pc-Jagran
Conservation and collection practices in the sacred Thal Kedar forest of Uttarakhand
Both indigenous and scientific knowledge are equally important to promote biodiversity conservation
The sacred Thal Kedar forest is a common sacred center for people of different cultures, traditions, and beliefs (Image: Mini Mehta, eUttaranchal)
जल मृदा-पौधे भोजन शृंखला के द्वारा मनुष्यों में आर्सेनिक का एक्सपोजर एक मूल्यांकन
महाद्वीपीय परत में आर्सेनिक की औसत सांद्रता 1-5 मिलीग्राम / किग्रा होती है जो यह दोनों एंथ्रोपोजेनिक और भूजनिक स्रोतों से आती है। यद्यपि, आर्सेनिक प्रदूषण के एंथ्रोपोजेनिक स्रोतों में तेजी से वृद्धि हो रही है, जो कि बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। हाल ही के प्रकरण में यहाँ यह भी ध्यान दिया जाना चाहिये कि गंगा- मेघना ब्रह्मपुत्र (GMB) नदियों के मैदानी क्षेत्रों में भूजल का आर्सेनिक प्रदूषण भूजनिक प्रवृति का है











मनुष्यों में आर्सेनिक का एक्सपोजर एक मूल्यांकन,Pc-N18
मानवीय हस्तक्षेप के कारण भूजल प्रदूषण 
विभिन्न जल संसाधनों में से भूजल हमारे दिन-प्रतिदिन जीवन की क्रियाओं में अधिकतम योगदान देता है। विश्व के कुल 3% ताजा जल संसाधनों में से अधिकतर जल ध्रुवीय और पहाड़ी क्षेत्रों में बर्फ के रूप में पाया जाता है, वैश्विक जल का केवल 1% भाग ही तरल अवस्था में मौजूद है। जबकि, कुल 98% ताजा भूजल तरल अवस्था में पाया जाता है, इसलिये, यह पृथ्वी का सबसे मूल्यवान ताजा जल संसाधन है। भूजल की गुणवत्ता मानव स्वास्थ्य और खाद्यान की मात्रा एवं गुणवत्ता के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह मृदा, फसलों और आसपास के वातावरण को प्रभावित करती है।



मानवीय हस्तक्षेप के कारण भूजल प्रदूषण,Pc-Indiatimes
Seeing the ‘unseen’: a spotlight on lesser known inhabitants of freshwater ecosystems
Freshwater biologists Sameer Padhye and Avinash Vanjare talk about smaller and lesser known animals that live in freshwater ecosystems and the importance of studying them. 
Freshwater ecosystems, under threat (Image Source: Biologia Life Science LLP)
मृदा प्रबंधन द्वारा जल उपयोग दक्षता में सुधार हेतु तकनीकी विकल्प
कृषि उत्पादन के लिये जल सबसे महत्वपूर्ण इनपुट है। हमारे देश में मानसून की अनियमितता और अति भूजल दोहन के कारण इसके स्तर में गिरावट के परिणामस्वरूप कृषि के उपयोग के लिये ताजे जल को आपूर्ति की कमी हो रही है। अतः आने वाले समय में इस अमूल्य संसाधन हेतु दक्ष उपयोग की आवश्यकता है मानव आबादी द्वारा जल उपयोग की बढ़ती माँग और बेहतर पर्यावरणीय गुणवत्ता की वजह से फसलों की जल उपयोग की दक्षता में वृद्धि वर्तमान में चिंता का एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा उभर कर सामने आ रहा है।
मृदा प्रबंधन द्वारा जल उपयोग दक्षता  में सुधार हेतु तकनीकी विकल्प,PC-
पैन वाष्पीकरण मीटर: सिंचाई के उपयुक्त समय के निर्धारण हेतु एक उपयोगी उपकरण
सिंचाई के जल की कमी पौधों में जल और पोषक तत्व तनाव के द्वारा उपन पर प्रभाव डालती है। इस संदर्भ में उपलब्ध जल संसाधनों का प्रभावी उपयोग करने के लिये वैज्ञानिक सिचाई के समय का निर्धारण किसानों को बहुत सहायता कर सकता है एक ऐसा उपकरण जो वाष्पीकरण को मापने के साथ-साथ मौसम के कारकों के प्रभाव को भी एकीकृत करता हो सिंचाई समय के निर्धारण के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है।
पैन वाष्पीकरण मीटर, Pc-constructor
गुजरात के जल संसाधनों पर सिंचाई  विधियों का प्रभाव
गुजरात राज्य में जल संसाधन बहुत ही सीमित है। वहाँ की प्रमुख नदियां जैसे तापी (उकाई काकरापार), माही (माहौ कदाना), साबरमती (घरोई) आदि के जल का उपयोग करने के लिये पहले से ही पर्याप्त कदम उठाए गए हैं। आगे भी नर्मदा नदी के जल संसाधनों का उपयोग करने के लिये प्रयास पूरी गति से उठाए जा रहे हैं। राज्य के प्रमुख हिस्सों में कम वर्षा और मुख्य रूप से मृदा की जलोड़ प्रकृति के कारण यहाँ अन्य छोटी छोटी नदियों की जल क्षमता सीमित ही नहीं है
गुजरात के जल संसाधनों पर सिंचाई  विधियों का प्रभाव,Pc-vivacepanorama
वर्षा जल संचयन एवं इसका बहुआयामी उपयोग तथा प्रबंधन
जल हमारे जीवन का बहुत ही महत्त्वपूर्ण भाग है। जल के बिना जीवन निर्वाह संभव नहीं है। जल की आवश्यकता जितनी मानव के लिए आवश्यक है उतनी ही पौधों के लिए भी आवश्यक है। फसलों एवं पौधों का लगभग 70-90 प्रतिशत भाग जल का ही बना होता है। पौधे सदैव अपना भोजन मृदा से घोल के रूप में जल के माध्यम से ही लेते हैं या ग्रहण करते हैं।
वर्षा जल संचयन एवं इसका बहुआयामी उपयोग तथा प्रबंधन,PC-MONCHASHA
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