सारांश
मनुष्य के शरीर का लगभग 70 प्रतिशत जल ही होता है। जल को लेकर ही हमारे देश ही नहीं अपितु विश्व में एक बहुत बढ़ी समस्या उत्पन्न हो गई है। आज इसका निवारण ढूँढना प्राथमिकता के आधार पर अति आवश्यक हो गया है। हमारे देश में कुल जल का लगभग 76 प्रतिशत भाग मानसून के मौसम में बरसात से प्राप्त होता है। वर्तमान में भारत में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 22 घन मीटर है, अगले दो वर्ष में यह औसत घटकर मात्र 18 घन मीटर तक ही रह जाने का अनुमान है। वर्षा जल को अधिक से अधिक मात्रा में संग्रहण करके पानी को नदी, नालों में जाने से रोकना होगा। घर में वाटर हार्वेस्टिंग, घर में पानी उपयोग में सतकृता, भू-जल के अनियमित बहाव को रोकना, वनों की अन्या धुंध कटाई को रोकना तथा तालाबों, झीलों, नदियों में उपलब्ध पानी को प्रदूषित होने से बचाना होगा।
वायु के बाद मानव समाज के लिए जल की महत्ता प्रकृति द्वारा प्रदत वरदानों में से एक है। जल ने पृथ्वी पर जीवन और हरियाली विकसित होने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन किया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि जल ही जीवन है एक लोकोक्ति है कि जल है तो कल हैं। शास्त्रों में कहागया है कि
“छिति जल पावक गगन समीरा,
पंच रचित अति अधम सरीरा"
-गोस्वामी तुलसी दास, श्री रामचरित मानस ।
अर्थात् मानव तन के निर्माण में जल का अत्यंत ही महत्वपूर्ण योगदान है। वैज्ञानिक आधार पर कहा जा सकता है कि प्रत्येक मनुष्य के शरीर का लगभग 70 प्रतिशत जल ही होता है।
जल को लेकर ही हमारे देश में एक बहुत बढ़ी समस्या उत्पन्न हो गई है जिससे सभी लोग-परेशान हैं। देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी जल की समस्या बढ़ती ही जा रही है और जिससे लोगों की मौत तक हो रही हैं। यही कारण है कि आज इसका निवारण ढूंढना प्राथमिकता के आधार पर अति आवश्यक हो गया है।
हमारे देश में प्रति वर्ष बरसात से लगभग 450 मिलियन क्यूबिक मीटर जल की प्राप्ति होती है। इसका 76 प्रतिशत भाग हमें मानसून के मौसम में प्राप्त होता है। देश में जल की उपलब्धता और उसकी स्वच्छता के अनुसार समुचित जल प्रबंधन न होने के कारण ही वर्षा जल का बड़ा भाग जल, नदी तथा नालों से होता हुआ समुद्र में चला जाता है। जिसके परिणामस्वरूप लगभग नौ महीने देश के लिए पानी की कमी बारिश होने के बाद भी होती रहती है। वर्तमान में भारत में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता मात्र 22000 घनमीटर है, लेकिन हालात यही रहे तो अगले दो वर्ष में यह औसत घटकर मात्र 1800 घनमीटर तक ही रह जाएगा। किसी भी देश में यह औसत 2100 घन मीटर से कम हो जाने पर वहाँ का प्रत्येक नागरिक पानी की समस्या से घिरा रहेगा।
जल प्रबंधन के उपाय
जल प्रबंधन का प्रथम तथा सबसे महत्वपूर्ण उपाय यह है कि वर्षा जल के एकत्रीकरण, भण्डारण एवं संरक्षण का उचित प्रबंधन किया जाए। वर्षा जल जलाशय में संरक्षित किया जाए। पूरे देश में बांध बनाए जाएं और जहां सूखा पड़ने की सम्भावना अधिक हो उस क्षेत्र में बाँधों की संख्या अधिक रखी जाए।
वर्षा जल को अधिक से अधिक मात्रा संग्रहण करके पानी को नदी, नालों में जाने से रोकना होगा। जल संरक्षण चेक डैम बनाकर किया जा सकता है। खेतों में, गांव व कस्बों में वर्षा जल को एकत्रित करने के लिए सोकपिट बनाये जा सकते हैं। इसी प्रकार वर्षा जल को एकत्रित करने हेतु बहते हुए जल को कुआं, बावड़ियों एवं तालाबों इत्यादि का उपयोग किया जा सकता है। इसके साथ ही इस दिशा में अन्य निम्नलिखित कदम भी उठाये जा सकते हैं।
- घर में वाटर हार्वेस्टिंग की जाए।
- घर में पानी उपयोग में सतकृता बरती जाए।
- भू-जल के अनियमित बहाव को रोकने हेतु कदम उठाए।
- वनों की अन्या धुंध कटाई को रोकना चाहिए, जिससे भूजल के स्तर को तेजी से घटने में रोका जा सके।
- तालाबों, झीलों, नदियों में उपलब्ध पानी को- प्रदूषित होने से बचाकर उसको ज्यादा से ज्यादा उपयोग में लाया जाए।
उपर्युक्त विश्लेषण का सार है कि हमें पानी का बचाव करते रहना है। जल संरक्षण की सरकार की योजनाओं में सहयोग करना चाहिए। सरकार को भी जल प्रबंधन हेतु समुचित कार्यवाही करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। वर्षा किसी भी कीमत पर नष्ट होने से बचाया जाए। पानी से विस्थापन की स्थितियों में परिवर्तन आएगा एवं पीने व खेतों में सिंचाई हेतु पानी की मात्रा भी ज्यादा होगी। कृषि व अन्न उत्पादन की वृद्धि होगी। पीने के पानी के लिए दूर दूर तक जाना नहीं पड़ेगा और ना ही पानी के लिए भटकना पड़ेगा।
देश में हरियाली एवं वनों के क्षेत्रफल को विस्तार देने से पर्यावरण सन्तुलित होगा जिससे मानव जीवन भी सन्तुलित हो सकेगा। इससे सामाजिक जीवन में नैराश्य की मात्रा में कमी आएगी और आने वाली पीढ़ियों के लिए पानी के संकट का वातावरण उत्पन्न होने से बच जाएगा।
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