जमीन में समाता जा रहा है उत्तराखंड का जोशीमठ शहर, शहर का भविष्य आज खतरे में है। जोशीमठ के 600 से ज्यादा घरों में लगातार दरारें पड़ती जा रही हैं। कौन जिम्मेवार है?, उत्तराखंड के जोशीमठ के लोगों का आरोप है कि एनटीपीसी तपोवन-विष्णुगाड़ जलविद्युत परियोजना के लिए 12 किमी लम्बी सुरंग खोदने से इलाके में धंसाव और गहरा गया है। पर एनटीपीसी का कुछ नहीं बिगड़ा। एनटीपीसी हर बार बच जाएगी ऐसा नहीं होगा। शिकायतकर्ता मोंटू सोनी की ओर से पटना हाईकोर्ट को अधिवक्ता श्री नवेन्दु कुमार की लीगल नोटिस पर भारत सरकार की महारत्न कंपनी बड़कागांव एनटीपीसी पर पर्यावरण,वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने लगभग 1200 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है।
बड़वानी, नर्मदा तट के अनेक शहरों में से एक हैं जो नर्मदा के पानी पर जीता रहा है। यहां पीने, सिंचाई और निस्तार के दूसरे जरूरी उपयोगों के लिए नर्मदा से पंप या 'इंटेकवेल' के जरिए पानी लिया जाता रहा है। शहरवासी अन्न से लेकर श्रमिकों के श्रम तक हर अपरिहार्य पूंजी और वस्तुएं ग्रामीण क्षेत्रों से लाते हैं
As heavy rainfall events rise in Western Maharashtra, so will the threat of landslides. Early warning systems need to be in place to deal with this growing threat.
सहस्त्रधारा-बाल्दी नदी के किनारे के धनौला गांव में नदी पर अवैध निर्माण गतिविधियों के मुद्दे को सबसे पहले याचिकाकर्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने उठाया था, जिनका इस साल 6 मार्च 2023 को निधन हो गया। उनके पति केसर सिंह अब सहस्त्रधारा-बाल्दी नदी मामले की पैरवी कर रहे हैं।
भूकम्प बहुत बड़े इलाके में अचानक तबाही ला सकता है और इससे हुये नुकसान से उबरने में हमारी उम्मीद से कहीं लम्बा समय भी लग सकता है। अब ऐसा भी नहीं है कि हम भूकम्प के खतरे और इससे बचने के बारे में जानते ही नहीं हैं।
विश्व जल शिखर सम्मेलन जल चुनौतियों के लिए प्राकृतिक आधारित समाधान पर चर्चा करने के लिए आयोजित किया जायेगा। इस वर्ष यह सम्मेलन भारत में आयोजित किया जा रहा है।
कृषि में कुल उपलब्ध पानी का 70% से 80% उपयोग हो जाता है। इस गंभीर जल संकट के दौर में कृषि हेतु जल की बचत करना बहुत ही आवश्यक हो गया है। ट्रिप सिंचाई विधि में पाइप नेटवर्क का उपयोग करके खेतों में पानी का वितरण किया जाता है
इन भूजल संसाधनों में आ रही गिरावट के मुख्य कारण हर साल नलकूपों की संख्या में वृद्धि, वर्षा की असमान प्रवृत्ति, प्रचलित फसल पद्धति, बढ़ती जनसंख्या औद्योगीकरण, शहरीकरण आदि हैं। अतः इस गंभीर समस्या पर काबू पाने के लिए कृषि में जल का विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग करने का हमारा कर्तव्य बन जाता है। यह तभी संभव है जब कृषि के लिए भूजल एवं सतही जल संसाधनों का उचित रूप से दक्ष प्रबंधन किया जाए।
वर्षा जल का सही तरीके से सरक्षण करते हुए "जल सिंचन" के माध्यम से सूक्ष्म स्तर पर जल दोहन करके संरक्षित सिंचाई सृजित की जाये सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली आज की आवश्यकतानुसार एक बेहतर विकल्प है।