आदिवासी किसानों के अधिकांश उपकरण स्थानीय कारीगरों द्वारा बास, लकड़ी और लोहे से बने होते हैं। लेकिन अब धीरे-धीरे उन्होंने मानकीकृत कारखाना निर्मित उपकरणों को अपनाना शुरू कर दिया है जो किफायती मी होते हैं। आदिवासियों के पारंपरिक कृषि उपकरण पुरुष और महिला दोनों उपयोग कर सकते हैं
भारतीय संस्कृति में नदी और मनुष्य के बीच बहुत गहरा रिश्ता रहा है। रिश्ता आज भी कायम है लेकिन नदियों के प्रति रवैया बदल चुका है। नदियों के प्रति हमारा रवैया वैसा ही है, जैसा कई अन्य महत्त्वपूर्ण पहलूओं की ओर है-वैचारिक स्तर पर पूजनीय और आचरण के स्तर पर उपेक्षित यही कारण है कि हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारे गांव से बहने वाली कोई नदी खत्म हो चुकी है।
एक दुर्लभ मौका था जब सम्मान देने वाले और लेने वाले 'शख्स दोनों की ऊंचाई और गहराई की थाह हॉल में मौजूद लोगों के दिल में बहुत गहरे से बैठी थी। सम्मानों के इस दौर में यह सम्मान समारोह वाकई दुर्लभ था, जहां सम्मान देने वाला, लेने वाला और संस्तुति करने वाला एक से बढ़कर एक हो। सुंदर लाल बहुगुणा जी की स्मृति में विमला बहुगुणा-मेघा पाटेकर - विजय जड़धारी की त्रिमूर्ति ने इस पल को हमेशा के लिए यादगार बना दिया, क्योंकि एक कर्मठ, समर्पित, सच्चे जन नायक का सम्मान उसी कद के दूसरे जननायक द्वारा होना बड़ी बात है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अप्रैल २०१८ में ३जून को विश्व साइकिल दिवस के रूप में घोषित किया जो कि साइकिल के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रतिवर्ष मनाया जाता है।
बड़ी एवं विशाल नदियों मे आने वाले जल कि मात्रा समय के साथ घटती गई है, कावेरी, कृष्णा एवं नर्मदा जैसी देश की कुछ प्रमुख नदियों में विगत शताब्दी में जल की मात्रा बहुत प्रभावित हुई है। इस सब के पीछे बेसिन क्षेत्र एवं इन नदियों मे जल लाने वाली छोटी नदियों मे हुए मानव जनित परिवर्तन प्रमुख कारण माना जा सकता है। नदी संरक्षण के प्रारंम्भिक प्रयासों में भी छोटी नदियों की अपेक्षा बड़ी एवं विशाल नदियों की मुख्य धारा को ही अधिक महत्व दिया गया।
पानी सबसे कीमती प्राकृतिक संसाधन है जो धीरे-धीरे दुनिया भर में सीमित संसाधन बनता जा रहा है। दुनिया की एक तिहाई से अधिक आबादी को वर्ष 2025 तक पूर्ण रूप से पानी की कमी का सामना करना पड़ेगा। दुनिया के वर्षावन क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होते हैं जो पहले से ही जनसंख्या का भारी सकेंद्रण कर रहे हैं।
इसी प्रकार से अगेती चना के साथ मूली और गाजर की 0.20 हेक्टेयर में खेती करने में रू0 7080 का खर्च आया और रू0 18.200 की आमदनी हुई। चना के साथ मिश्रित खेती के रूप में मूली और गाजर की खेती उनके द्वारा किया गया एक नवाचार विधि है।
हम यदि आज प्रयास करेंगे तो कल नदियाँ जीवित रहेगी और यदि नदियाँ जीवित रहेगी तो मनुष्य का अस्तित्व भी सुरक्षित रहेगा। यहाँ हम बात करेंगे उन छोटी नदियों को, जिनके नाम तक आज हम भूलने लगे हैं। ये छोटी नदियों हमारे जनतंत्र का महत्वपूर्ण अंग है।
पूर्व चेतावनी प्रणाली एक प्रभावी एकीकृत संचार प्रणाली है जो समुदायों को खतरनाक जलवायु परिवर्तन संबंधी घटनाओं की पूर्व सुचना/जानकारी देकर होने वाली घटना के लिए आधुनिक पावर ग्रिड द्वारा अनिवार्य जानकारी प्रदान करता है जिससे मानव एवं पशु जीवन को बचाया जा सके और सम्पत्ति के नुकसान को कम किया जा सके।
नहरों में वार्षिक सिंचाई की तीव्रता 110% है। इस प्रकार, सिंचाई के जल की आपूर्ति पूरे खेती क्षेत्र की सिंचाई करने के लिए पर्याप्त नहीं है इसके परिणामस्वरूप वहाँ दबाव सिंचाई प्रणाली को अपनाने का बहुत अधिक महत्त्व है। इसके अलावा, इस क्षेत्र के किसानों द्वारा भी दबावयुक्त सिंचाई प्रणाली को मान्यता भी मिल रही है। इस क्षेत्र के एक किसान जिनका नाम श्री विनोद कुमार है वो पद्धति के लोकप्रियता के प्रारंभिक चरण में कपास की फसल में दबाव सिंचाई प्रणाली को अपनाने वालों में से एक है।
Satellite Image of Choti Saryu River.
भूविज्ञान विभाग, केंद्रीय विश्वविद्यालय दक्षिण बिहार, (सीयूएसबी) गया
पिछले कुछ दशकों के दौरान यह देखा गया है कि अधिकांश छोटी नदी और उनकी सहायक नदियाँ जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और अधिक आबादी एवं अतिरिक्त भूजल शोषण और नदी मार्ग या इसके जल-ग्रहण क्षेत्र के साथ निर्मित भूमि की बड़ी मात्रा में वृद्धि के कारण गंभीर रूप से प्रभावित हुई हैं। जलविज्ञानी योजनाकारों पर्यावरणविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं जैसे निर्णय निर्माताओं के बीच जल संसाधन को समझना और प्रबंधित करना और छोटी नदियों की पारिस्थितिकी और प्रवाह को बनाए रखना बहुत चुनौतीपूर्ण है।
“उत्तर प्राचीनकाल में सरयू आजमगढ़ जनपद के अंतर्गत गोपालपुर एवं सगड़ी परगनाओं की सीमा के पास दो शाखाओं में विभक्त हो गयी। इसकी मुख्य शाखा उत्तर की ओर चली गयी. जो बड़ी सरयू कहलायी एवं गौड़ शाखा जिसमें पानी कम था, पुराने प्रवाह मार्ग पर ही रह गयी और छोटी सरयू कहलायी। जिसे आज 'लोक दायित्व' डॉ० रामअवतार शर्मा के निर्देश पर मूल सरयू कहता है।”
प्रभु राम के किलोल करने की साक्षी है सरयू। मानसरोवर से निकलने एवं पापों को नष्ट करने की शक्ति के कारण इन्हें सरयू कहते हैं। "सरंति पापानि अनपा इति सरयू । ऋग्वेद के पाँचवें मंडल के नदी सूक्त में इनका उल्लेख कई बार आता है- "भावः परिष्ठानि सरयूः ।" वाल्मीकि रामायण में उल्लेख है- "कोसलो नाम मुदितः स्फीतो जनपदो महान विशिष्टो सरयू तीरे।"
मुजफ्फरपुर, बिहार जैसे गर्म जलवायु वाले प्रदेश में भी कोई किसान सेब की सफलतापूर्वक खेती कर सकता है? सुनने में यह थोड़ा आश्चर्य हो सकता है, लेकिन इसे मुमकिन कर दिखाया है एक प्रगतिशील किसान राजकिशोर सिंह कुशवाहा ने. लीची के लिए मशहूर मुजफ्फरपुर की धरती पर सेब की खेती कर राजकिशोर सिंह कुशवाहा ने यहां के किसानों को एक नयी दिशा दी है। ज़िले के मुशहरी प्रखंड स्थित नरौली गांव के इस किसान के खेत में वर्तमान में सेब के 250 पेड़ फलों से लहलहा रहे हैं।
Orans are traditional sacred groves found in Rajasthan. These are community forests, preserved and managed by rural communities through institutions and codes that mark such forests sacred. Orans have significance for both, conservation and livelihood. The author visited two orans in Alwar district in Rajasthan and in this article, she writes about her observation.