केन्द्रीय भूमि जल बोर्ड ने आठवीं योजना से कृत्रिम जल भरण पर काफी अध्ययन किया है एवं विभिन्न तरीकों की उपयोगिता को समझा है। इस संस्करण में कुछ तकनीकों की जानकारी दी गई है जो विभिन्न भौगोलिक एवं जमीन के नीचे की स्थितियों के लिए उपयुक्त है।
किसी भी आपदा के बाद सबसे पहली जरूरत संकटग्रस्त लोगों के लिए पीने योग्य जल की व्यवस्था करना होता है। शुद्ध पीने योग्य जल उपलब्ध कराने से महामारी को फैलने से रोका जा सकता है
विश्व पर्यावरण दिवस के निमित्त हम कलशा की सहायक धाराओं के किनारे साझा संकल्प लेंगे और उन लोगों से मार्गदर्शन लेंगे, जिन्होंने पूरा जीवन नदी, जंगलों और उनके साथ जीने वाले रहवासियों के लिए समर्पित कर रखा है।
12मार्च, 2014 को ‘उत्तराखंड संस्कृत अकादमी’, हरिद्वार द्वारा ‘आई आई टी’ रुडकी में आयोजित विज्ञान से जुड़े छात्रों और जलविज्ञान के अनुसंधानकर्ता विद्वानों के समक्ष मेरे द्वारा दिए गए वक्तव्य ‘प्राचीन भारत में जलविज्ञान‚ जलसंरक्षण और जलप्रबंधन’ से सम्बद्ध ‘भारतीय जलविज्ञान’ से सम्बद्ध लेख ‘वैदिक जलवैज्ञानिक ऋषि सिन्धुद्वीप’
It is crucial to help farmers move from traditional practices to a more conservation-centric practices that maintain long-term sustainability of land systems in India.
गंगा-यमुना जैसी नदियों के मायके के प्रदेश उत्तराखंड में नदियों के हालात पर चर्चा और कुछ अच्छे प्रयोगों के बारे में जानकारी साझा करने के लिए एक मीडिया मित्र मिलन का कार्यक्रम रखा गया।
While governmental efforts have contributed greatly to improving urban sanitation in the country and are much discussed in literature, systematic documentation and critical analysis of efforts made by nongovernmental institutions continues to be invisible in the discourse on sanitation and needs to be acknowledged, argues this book.
विगत 22 जुलाई को दिल्ली में भू जल के कृत्रिम पुनर्भरणासंबंधी परामर्शदात्री परिषद की प्रथम बैठक में प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह द्वारा उदघाटन में भूजल पुनर्भरण का जन अभियान चलाने का आह्वान किया।
भारतीय स्टार्ट-अप देश के सामने जल की कमी की चुनौती का समाधान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। ये अभिनव उद्यम कुशल जल उपयोग को बढ़ावा देने, अपव्यय को कम करने और पानी की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए प्रौद्योगिकी और रचनात्मक समाधानों का लाभ उठा रहे हैं
पानी की कमी पूरी दुनिया में एक प्रमुख चुनौती है और भारत भी इसका अपवाद नहीं है। आबादी बढ़ने के साथ- साथ उद्योगों का विस्तार होता है और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बढ़ता है। इससे पानी की माँग तेजी से बढ़ रही है। हालाँकि इस परिदृश्य के बीच भारत के युवा एक शक्तिशाली माध्यम के रूप में उभरे हैं
भूजल मृदा कणों तथा चट्टानों के बीच मौजूद स्थानों (रानो) और चट्टानों में पड़ी दरारों में पाया जाता है आवश्यकता पड़ने पर इसकी सुनिश्चित उपलब्धता और सामान्य रूप से श्रेष्ठ गुणवत्ता के कारण भूजल का उपयोग घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति तथा अन्य उद्देश्यों के लिए व्यापक रूप से किया जाता है। तथापि, क्या आपको ज्ञात है कि अत्यधिक दोहन के कारण भू-जल बहुत तेजी से कम होता जा रहा है? इसके अतिरिक्त उद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण भूजल प्रदूषित भी हो रहा है।
कभी-कभी हमें आश्चर्य होने लगता है कि सरकार को पूरी स्थिति का ज्ञान है भी या नहीं। भाषण में यह नहीं बताया गया है कि खाद्य संकट का सामना करने के लिए क्या ठोस प्रयत्न किए जा रहे हैं। हमसे कहा जाता है कि नैसर्गिक विपत्तियों के कारण यह मुसीबत आई है।
सरदार सरोवर परियोजना लंबे समय तक विवादों का विषय रही जिसने पूरे देश को झकझोर दिया और हिला कर रख दिया। नर्मदा आंदोलन कुछ समस्याओं को स्पष्ट करने और समझाने में मदद करेगा जो हमारे देश में पानी के मुद्दे की मुख्य विशेषता है। आइए हम इन मुद्दों पर गौर करें क्योंकि ये देश में बढ़ती पर्यावरणीय समस्याओं की ओर सही इशारा करते हैं।
बेतहाशा भूजल पंपिंग में पानी के इतने बड़े द्रव्यमान को एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरित (पुनर्विभाजन) कर दिया है, जिसकी वजह से धरती वर्ष 1993 और 2010 के बीच लगभग 80 सेंटीमीटर पूर्व की ओर झुक गई।
बिहार में लोग गर्मी से बेहाल हो रहे हैं और हर दिन कई लोगों की मौत हो रही है। अभी तक उत्तर प्रदेश के सिर्फ एक जिले में ही कम से कम 70 और बिहार के एक जिले में 50 से अधिक मौतें हो चुकी हैं।