जैव विविधता को सहेजने की अपरिहार्यता

जैविक प्रजातियाँ / लुप्तप्राय, PC-Wikipedia
जैविक प्रजातियाँ / लुप्तप्राय, PC-Wikipedia

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक ओर हम जैव विविधिता के संरक्षण के प्रति चिंता जताते हुए संगोष्ठियां करते हैं, नए कानून बनाते हैं, वहीं प्रति वर्ष लाखों हेक्टेयर वन एवं करोड़ों जीवों का विनाश कर जैव विविधता को चुनौती देते हैं। ऐसे में समझना कठिन हो जाता है कि हमारे इस दोहरे आचरण से जैव विविधता का संरक्षण किस तरह होगा। आंकड़े बताते हैं कि पिछले सैकड़ों सालों में, विशेषकर गत 200 वर्षों में मनुष्य जाति ने विकास के नाम पर करोड़ों हेक्टेयर वनों का विनाश किया है। उसके इस कृत्य से प्रकृति की तकरीबन एक तिहाई से अधिक प्रजातियां नष्ट हुई हैं। इसी तरह जीवों की संख्या में भी 50 प्रतिशत की कमी आयी है। इंसानी लालच की शिकार कई जीव एवं वनस्पति प्रजातियां अब विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी हैं।

उदाहरण के लिए आर्कटिक लोमड़ियों की संख्या तेजी से घट रही है। गत वर्ष पहले फिनलैंड की एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था जस्टिस फॉर एनीमल ने यह चिंता जताई कि इंसानी लालच की वजह से वन्य जीवों का अस्तित्व मिट रहा है। आर्कटिक लोमड़ियां जो माइनस 70 डिग्री सेंटीग्रेड से कम तापमान में भी अपने विशेष गर्म फर के कारण प्रसिद्ध हैं, का शिकार कर मोटा धन कमाया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि वन्य प्राणी संरक्षण की अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने आर्कटिक लोमड़ियों को सबसे कम चिंता वाली श्रेणी में रखा है। इसके बावजूद भी लक्जरी और लाइफस्टाइल के महंगे उत्पाद बनाने वाली अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां इनके फर महंगे दामों में बेचकर भारी मुनाफा कमा रही हैं। उदाहरण के तौर पर लुई विटन नाम क प्रसिद्ध ब्रांड लोमड़ियों के फर से जैकेट बनाकर तकरीबन 6000  डॉलर में बेचता है। फिनलैंड में फर बेचने वाली सबसे बड़ी कंपनी सालाना 25  लाख लोमड़ी की खाल बेचती है। उसी का परिणाम है कि यूरोपीय देश नार्वे, स्वीडन और फिनलैंड में आर्कटिक लोमड़ियों की संख्या तेजी से कम हो रही है। फिलहाल इन तीनों देशों में आर्कटिक लोमड़ियों की संख्या घटकर 200  से भी कम हो चुकी हैं।

इसी तरह आसमान में अपने करतबों के लिए चर्चित पक्षी न हैरियर का बड़े पैमाने पर शिकार हो रहा है। ब्रिटेन में रॉयल सोसायटी फॉर से प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस् द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से खुलासा हुआ है कि पिछले 6  साल में ब्रिटेन में हेन हैरियल की कुल संख्या यानी 585 जोड़ों में जोड़ों में  88 यानी 13 प्रतिशत की कमी आयी है। इन पक्षियों की संख्या में ब्रिटेन में हर जगह कमी आ रही है। इंग्लैंड में इन पक्षियों के प्रजनन करने वाले महज चार जोड़े बचे हैं। स्कॉटलैंड में यह संख्या 505 से घटकर 460  और वेल्स में 57 से घटकर 35 रह गयी है । इसी तरह चीनी पैंगोलिन और गैंडा की भी तादाद कम हो रही है। पिछले एक दशक में अफ्रीका में 1.11 लाख हाथी इंसानी क्रूरता का शिकार बने। अफ्रीका में हर वर्ष 211 मिट्रिक टन हाथी दांतों का अवैध वैश्विक कारोबार होता है। भारत की बात करें तो यहां अवैध शिकार से सालाना 40  प्रतिशत हाथियों की मौत होती है। इसी तरह 2006  से 2015  के बीच काजीरंगा पार्क में 123 गैंडों को शिकार बनाया गया। साल 2013 - 16 के बीच देश में संरक्षित 1200  से अधिक जानवरों का शिकार किया गया।
वन्य जीवन पर खतरे के महत्वूर्ण कारणों में अवैध शिकार, बढ़ता शहरीकरण, ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण और खेत बनते जंगल मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। अभी गत वर्ष ही नेशनल ऑटोनॉमस यूनिवर्सिटी ऑफ मैक्सिको और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने दावा किया कि आगामी वर्षों में जीवों की कुल प्रजातियों में से 75 प्रतिशत विलुप्त हो सकती है। गौरतलब है कि यह शोध गत वर्ष प्रासीडिंग्स ऑफ द नेशलन एकेडमी ऑफ साइंसेज नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ।

इन आंकड़ों के मुताबिक पिछले सौ वर्षों में धरती से 200 वर्टीबेट जीवों की प्रजातियां विलुप्त हुई है, जबकि इतनी प्रजातियों की विलुप्ति दस हजार वर्षों में होनी चाहिए थी । शोध के नतीजे बताते हैं कि अब तक पृथ्वी पर जितने जीव हुए उनमें से 50 प्रतिशत से अधिक लुप्त हो चुके हैं। इनकी संख्या अरबों में है। 1900 से 2015 के बीच स्तनपायी जीवों की प्रजातियों का इलाका 30  प्रतिशत घट गया है। इनमें से 40  प्रतिशत प्रजातियों का इलाका 80 प्रतिशत तक कम हुआ है। गत वर्ष वर्ल्ड वाइल्ड फंड एवं लंदन की जूओलॉजिकल सोसायटी की हालिया रिपोर्ट से यह भी खुलासा हुआ कि 2020 तक धरती से दो तिहाई वन्य जीव खत्म हो जाएंगे। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में हो रही जंगलों की अंधाधुंध कटाई, बढ़ते प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले चार दशकों में वन्य जीवों की संख्या में भारी कमी आयी है। इस रिपोर्ट में 1970 से 2012 तक वन्य जीवों की संख्या में 58 प्रतिशत की कमी बतायी गयी है।

जलीय जीवों के अवैध शिकार के कारण 300  प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं। जलीय जीवों के नष्ट होने का एक अन्य कारण फफूंद संक्रमण और औद्योगिक इकाईयों का प्रदूषण भी है। इसके अलावा प्राकृतिक आपदाएं, विभिन्न प्रकार के रोग, जीवों की प्रजनन क्षमता में कमी भी प्रमुख कारण हैं। इन्हीं कारणों की वजह से यूरोप के समुद्र में वेल और डॉल्फिन जैसे भारी-भरकम जीव तेजी से खत्म हो रहे हैं। एक आंकड़े के मुताबिक भेड़-बकरी जैसे जानवरों के उपचार में दी जा रही खतरनाक दवाओं के कारण भी पिछले 20 सालों में दक्षिण-पूर्व एशिया में गिद्धों की संख्या में कमी आयी है। भारत में ही पिछले एक दशक में पर्यावरण को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गिद्धों की संख्या में 67 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी है। गिद्धों की कमी से मृत पशुओं की सफाई, बीजों का प्रकीर्णन और परागण कार्य बुरी तरह प्रभावित हुआ हो रहा है और किस्म-किस्म की बीमारियां तेजी से पनप रही हैं। गिद्धों की तरह अन्य प्रजातियां भी तेजी से विलुप्त हो रही हैं। वैज्ञानिकों का निष्कर्ष है कि पेड़ों की अंधाधुध कटाई और जलवायु में हो रहे बदलाव के कारण कई जीव जातियां धीरे-धीरे ध्रुवीय दिशा या उच्च पर्वतों की ओर विस्थापित हो सकती हैं। अगर ऐसा हुआ तो फिर विविधता और पारिस्थितिकी अभिक्रियाओं पर उसका नकारात्मक असर पड़ना तय है। यह आशंका इसलिए अकारण नहीं है कि पृथ्वी पर करीब 19  करोड़ वर्षों तक राज करने वाले डायनासोर नामक दैत्याकार जीव के समाप्त होने का कारण मूलतः जलवायु परिवर्तन ही था ।
अगर जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से नहीं लिया गया तो आने वाले वर्षों में धरती से जीवों का अस्तित्व मिटना तय है। इसलिए कि धरती के साथ मानव का निष्ठुर व्यवहार बढ़ता जा रहा है जो कि जीवों के अस्तित्व के प्रतिकूल है। वैज्ञानिकों का कहना है कि 12000 वर्ष पहले हिमयुग के खत्म होने के बाद होलोसीन युग शुरु हुआ था। इस युग में धरती पर मानव सभ्यता ने जन्म लिया। इसमें मौसम चक्र स्थिर था इसलिए स्थलीय और जलीय जीव पनप सके। लेकिन बीसवीं सदी के मध्य से जिस तरह परमाणु उर्जा के प्रयोग का दौर शुरु हुआ है और बड़े पैमाने पर जंगलों की कटाई हो रही है उससे होलोसीन युग की समाप्ति का अंदेशा बढ़ गया है। उसी का असर है कि आज वन्य जीवों को अस्तित्व के संकट से गुजरना पड़ रहा है। वन्य जीवों के वैश्विक परिदृश्य पर नजर डालें तो पृथ्वी के समस्त जीवधारियों में से ज्ञात एवं वर्णित जातियों की संख्या लगभग 18 लाख है। लेकिन यह संख्या वास्तविक संख्या के तकरीबन 15  फीसद से कम है। उसका कारण लाखों जीवों के बारे में जानकारी उपलब्ध न होना है। जहां तक भारत का सवाल है तो यहां विभिन्न प्रकार के जीव बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। जीवों की लगभग 75  हजार प्रजातियां पायी जाती है। भारत में जीवों के संरक्षण के लिए कानून बने हैं। लेकिन इसके बावजूद भी जीवों का संहार जारी है। उचित होगा कि वैश्विक समुदाय जैव विविधता को बचाने के लिए ठोस रणनीति बनाए अन्यथा यह स्थिति मानव जीवन को संकट में डाल सकता है।

सोर्स -लोक सम्मान 

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