भारत के जल संसाधन :-
भारत लगभग 2.45 % दुनिया के भौगोलिक क्षेत्र, दुनिया के 4% जल संसाधनों और लगभग 16% दुनिया की आबादी में योगदान देता है।
भारत को वार्षिक वर्षा अर्थात् 4000 घन किमी और सतह और भूजल स्रोतों से पानी प्राप्त होता है अर्थात् 1869 घन किमी. लेकिन पानी के इन दो स्रोतों से केवल 60 % (1122 क्यूबिक किमी. ) ही लाभकारी और उपयोगी है।
जल गुणवत्ता :-
जलगुणवत्ता से तात्पर्य जल की शुद्धता या अनावश्यक बाहरी पदार्थों से रहित जल से है।
'हरियाली " :- "
हरियाली केंद्र सरकार द्वारा प्रवर्तित जल संभर विकास परियोजना है।
भारत में जल संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता :-
1. अलवणीय जल की घटती उपलब्धता।
2. शुद्ध जल की घटती उपलब्धता ।
3. जल की बढ़ती मांग |
4. तेजी से फैलते हुए प्रदूषण से जल की गुणवत्ता का हास ।
भारत में भौम जल संसाधन के अत्यधिक उपयोग के दुष्परिणाम :-
1. पंजाब, हरियाण और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भौम जल संसाधन के अत्यधिक उपयोग से भौमजल स्तर नीचा हो गया है ।
2. राजस्थान और महाराष्ट्र में अधिक जल निकालने के कारण भूमिगत जल में फ्लोराइड की मात्रा बढ़ गई है।
3. पं.बंगाल और बिहार के कुछ भागों में संख्या बढ़ गई है ।
4. पानी को प्राप्त करने में अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती हैं ।
वर्षा जल संग्रहण :-
वर्षा जल संग्रहण विभिन्न उपयोगों के लिए वर्षा के जल को रोकने और एकत्र करने की विधि है ।
वर्षा जल संग्रहण के आर्थिक व सामाजिक मूल्य :-
1. पानी के उपलब्धता को बढ़ाता है जिसे सिंचाई तथा पशुओं के लिए उपयोग किया जाता है।
2. भूमिगत जल स्तर को नीचा होने से रोकता है।
3. मृदा अपरदन(Soil Erosion) और बाढ़ को रोकता है।
4. लोगों में सामूहिकता की भावना को बढ़ाता है ।
5. भौम जल को पम्प करके निकालने में लगने वाली ऊर्जा की बचत करता है
6. लोगों में समस्या समाधान की प्रवृत्ति बढ़ाता है।
7. प्रकृति से मधुर संबंध बनाने में सहायक होता है ।
8. लोगों को एक दूसरे के पास लाता है ।
9. फ्लोराइड और नाइट्रेटस जैसे संदूषकों को कम कर के भूमिगत जल की गुणवत्ता को बढ़ाता है ।
हमारे देश में जल संसाधन किन समस्याओं से जूझ रहा है :-
जल मानव की आवश्यक आवश्यकताओं में आता है लेकिन आज जल संसाधन की प्रति व्यक्ति उपलब्धता दिनों दिन कम होती जा रही है।
इससे जुड़ी समस्यायें निम्नलिखित है :-
1.जल की उपलब्धता में कमी :- जनसंख्या वृद्धि एवं सिंचाई के साधनों में वृद्धि के कारण भूमिगत जल का दोहन बढ़ गया है जिससे भूमिगत जल का स्तर दिनों दिन घट रहा है। नगरों की बढ़ती जनसंख्या को पेयजल की आपूर्ति भी कठिन हो रही है ।
2. जल के गुणों का हास : जल का अधिक उपयोग होने से जल भंडारों में कमी आती है साथ ही उसमें बाहृय अवांछनीय पदार्थ जैसे सूक्ष्म जीव औद्योगिक अपशिष्ट आदि मिलते जाते है जिससे नदियाँ जलाशय सभी प्रभावित होते हैं। इसमें जलीय तन्त्र भी प्रभावित होते है। कभी कभी - प्रदूषक नीचे तक पहुँच जाते हैं और भूमिगत जल को प्रदूषित करते हैं ।
3. जल प्रबन्धन : जल प्रबंधन के लिए देश में अभी भी पर्याप्त जागरूकता - नहीं है। सरकारी स्तर पर बनी नीतियों एवं कानूनों का प्रभावशाली रूप से कार्यान्वयन नहीं हो पा रहा है इसीलिये प्रमुख नदियों के संरक्षण के लिए बनी योजनायें निरर्थक साबित हुई है ।
4. जागरूकता एवं जानकारी का अभाव : जल एक सीमित संसाधन है - हालांकि यह पुनः पूर्ति योग्य है, इसे सुरक्षित एवं शुद्ध रखना हमारी जिम्मेदारी है और इस तरह की जागरूकता का अभी देश में अभाव हैं ।
जल संभर प्रबंधन :-
धरातलीय एवं भौम जल संसाधनों का दक्ष प्रबन्धन जिसमें कि वे व्यर्थ न हो, जल संभर प्रबन्धन कहलाता है। इससे भूमि जल पौधे एवं प्राणियों तथा मानव संसाधन के संरक्षण को भी विस्तृत अर्थ में शामिल करते हैं ।
जल संभर प्रबंधन का उद्देश्य
1. कृषि और कृषि से संबंधित क्रियाकलापों जैसे उद्यान कृषि वानिकी और वन संवर्धन का समग्र रूप से विकास करना ।
2. कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए ।
3. पर्यावरणीय हास को रोकना तथा लोगों के जीवन को ऊँचा उठाना ।
जल संभर प्रबन्धन के लिए सरकार द्वारा उठाये गये प्रमुख कदम :-
1. 'हरियाली 'केन्द्र सरकार द्वारा प्रवर्तित जल संभर विकास परियोजना है । इस योजना से ग्रामीण जल संरक्षण करके पेयजल की समस्या को दूर करने के साथ साथ वनरोपण मत्स्य पालन एवं सिंचाई की सुविधा भी प्राप्त कर सकते हैं । -
2. नीरू मीरु कार्यक्रम आन्ध्रप्रदेश में चलाया गया है। जिसका तात्पर्य है। जल और आप | इस कार्यक्रम में स्थानीय लोगों को जल संरक्षण की विधियाँ सिखाई गई है ।
3. अरवारी पानी संसद राजस्थान में जोहड़ की खुदाई एवं रोक बांध बनाकर - जल प्रबन्धन किया गया है।
4. तमिलनाडु में सरकार द्वारा घरों में जल संग्रहण संरचना आवश्यक कर दी गई हैं । उपर्युक्त सभी कार्यक्रमों में स्थानीय निवासियों को जागरूक करने उनका सहयोग लिया गया है ।
भारत में जल संसाधनों की कमी के कारण :-
1. अत्यधिक उपयोग:- बढ़ती जनसंख्या के कारण जल संसाधनों का उपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है। घरेलू ही नहीं औद्योगिक क्षेत्र में भी जल अत्यधिक उपयोग इस कमी को और भी बढ़ा देता है ।
2. नगरीय क्षेत्रों का धरातल कंक्रीट युक्त होना :- बढ़ते विकास व औद्योगिकरण के कारण अब नगरीय क्षेत्रों में कहीं भी धरातल कच्चा नहीं है बल्कि कंक्रीट युक्त हो चुका है जिसमें भूमि के नीचे जल रिसाव की मात्रा में कमी होती जा रही है और भौम जल संसाधनों में कमी आ गई है
3. वर्षा जल संग्रहण के संदर्भ में जागरूकता की कमी वर्षा जल संग्रहण के द्वारा संसाधनों का संरक्षण आसानी से किया जा सकता है। इसके लिए जरूरत है लोगों को जागरूक करने की ताकि वो वर्षा जल के महत्व को समझे और विभिन्न विधियों द्वारा उसका संग्रहण व संरक्षण कर सकें । वर्षा जल संग्रहण घरेलू उपयोग भूमिगत जल पर निर्भरता को कम करता है
4. जलवायविक दशाओं में परिवर्तन : जलवायु की दशाओं में परिवर्तन के कारण मानसून में भी परिवर्तन आता जा रहा है। जिसके कारण धरातलीय व भौम जल संसाधनों में लगातार कमी आ रही है ।
5. किसानों द्वारा कृषि कार्यों के लिए जल का अति उपयोग :- किसानों द्वारा कृषि कार्यों के लिए अत्यधिक धरातलीय व भौम जल का उपयोग जल संसाधनों में कमी ला रहा है। बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वर्ष में तीन बार कृषि करने से जल संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है
भारत में जल प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए वैधानिक उपाये :-
1. जल अधिनियम 1974 ( प्रदूषण का निवारण और नियन्त्रण )
2. पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1986
3. जल उपकर अधिनियम 1977
भारत में सिंचाई की बढ़ती हुई माँग के लिए उत्तरदायी कारक :-
सिंचाई की बढ़ती माँग के कारण निम्नलिखित है :-
वर्षा का असमान वितरण: देश में सारे वर्ष वर्षा का अभाव बना रहता है अधिकांश वर्षा केवल ( मानसून ) वर्षा के मौसम में ही होती है इसलिए शुष्क ऋतु में सिंचाई के बिना कृषि संभव नहीं ।
वर्षा की अनिश्चितता : केवल वर्षा का आगमन ही नहीं बल्कि पूरी मात्रा भी अनिश्चित है। इस उतार चढ़ाव की कमी को केवल सिंचाई द्वारा ही पूरा किया जा सकता है ।
परिवर्तन शीलता : वर्षा की भिन्नता व परिवर्तनशीलता अधिक हैं । कुछ क्षेत्रों में वर्षा अधिक होती है तो कहीं कम कहीं समय से पहले तो कहीं बाद में । इसलिए सिंचाई के बिना भारतीय कृषि मानसून का जुआ बनकर रह जाती है ।
मानसूनी जलवायु : भारत की जलवायु मानसूनी है जिसमें केवल तीन से चार महीने तक ही वर्षा होती है। अधिकतर समय शुष्क ही रहता है जबकि कृषि पूरे वर्ष होती है इसलिए सिंचाई पर भारतीय कृषि अधिक निर्भर है ।
खाद्यान्न व कृषि प्रधान कच्चे माल की बढ़ती मांग : देश की बढ़ती - जनसंख्या के कारण खाद्यान्नों व कच्चे माल की मांग में निरन्तर वृद्धि हो रही है । इसलिए बहुफसली कृषि जरूरी है जिसके कारण सिंचाई की मांग बढ़ रही हैं।
जल क्रांति अभियान :-
भारत सरकार द्वारा 2015-16 में आरंभ किया गया।
उद्देश्य -
1. जल की उपलब्धता को सुनिचित करना ।
2. स्थानीय निकायों, सरकारी संगठन एवं नागरिकों को सम्मिलित करके लोगों को जल सरंक्षण के विषय में जागरुक करना ।
जल क्रांति अभियान के तहत किए गए कार्य :-
1. जल ग्राम बनाने के लिए देश के 672 जिलों में से एक ग्राम जिसमें जल की
कमी है, उसे चुना गया है ।
2. भारत के विभिन्न भागों में 1000 हेक्टेयर मॉडल्स कमांड क्षेत्र की पहचान
की गई ।
प्रदूषण को कम करने के लिए :-
1.जल सरंक्षण और कृत्रिम पुनर्भरण ।
2.भूमिगत जल प्रदूषण को कम करना ।
देश के चयनित क्षेत्र में आर्सेनिक मुक्त कुँओ का निर्माण । लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए जनसंचार माध्यमों का प्रयोग ।
स्रोत -e- विद्यार्थी
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