जलवायु परिवर्तन का अरुणाचल प्रदेश की जैव-विविधता पर प्रभाव : एक आकलन

जलवायु परिवर्तन का अरुणाचल प्रदेश की जैव-विविधता पर प्रभाव : एक आकलन
जलवायु परिवर्तन का अरुणाचल प्रदेश की जैव-विविधता पर प्रभाव : एक आकलन

वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन विश्व की सबसे ज्वलंत पर्यावरणीय समस्याओं में से एक है। अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की पांचवी आकलन रिपोर्ट (एआर 5) के अनुसार इस शताब्दी के अंत तक वैश्विक तापमान में 0.3 से 4.8 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होगी। तापमान में उपरोक्त वृद्धि स्वास्थ्य, कृषि, वन, जल-संसाधन, तटीय क्षेत्रों, जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्रों पर विपरीत प्रभाव डालेगी। आईपीसीसी के अनुसार, यदि वैश्विक औसत तापमान में 1.5-2.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है तो 20-30% पादपों और जंतुओं की प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ने की संभावना है। शोध अध्ययनों ने यह सुनिश्चित किया है कि मानव जनित ग्रीन हाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन ही पृथ्वी के गर्म होने का प्रमुख कारक है। हिमालय क्षेत्र विश्व के सबसे नाजुक पारिस्थितिकी तंत्रों में से एक है और इस क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन के कारण गंभीर खतरा उत्पन्न हो रहा है।

उगते सूरज की धरती" कहा जाने वाला अरुणाचल प्रदेश राज्य क्षेत्रफल की दृष्टि से पूर्वोत्तर राज्यों में सबसे बड़ा पहाड़ी प्रदेश है। राज्य का भौगोलिक क्षेत्रफल 83,743 वर्ग किलोमीटर है जो कि देश के कुल क्षेत्रफल का 2.54%, भारतीय हिमालय क्षेत्र का 15.76% और हिमालय जैव-विविधता हॉट स्पॉट क्षेत्र का 43.62% है। यह राज्य विशाल प्राकृतिक संसाधनों अर्थात जल, जंगल और जैविक संसाधनों से संपन्न है। सियांग, दिबांग, लोहित, कामेंग इत्यादि नदियां इस राज्य से होकर बहती हैं और अंत में आपस में मिलकर विशाल ब्रह्मपुत्र नदी का निर्माण करती हैं। राज्य का कुल वन क्षेत्र 51,540 वर्ग किलोमीटर है जो राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 61.55% है।

अरुणाचल प्रदेश में मुख्य रूप से 26 प्रमुख जनजाति तथा 110 सूक्ष्म जनजाति  वनों के साथ निकट सहयोग बनाकर निवास करते हैं। ये जनजाति  समुदाय हैं जो अपनी आजीविका के लिए मुख्य रूप विभिन्न वन उत्पादों पर निर्भर हैं। इसी कारण वनों का अरुणाचल प्रदेश में रहने वाले समुदायों के जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह राज्य विशिष्ट रूप से हिमालय और भारत बर्मा के मध्य के संक्रमण क्षेत्र में स्थित है। यह विश्व के 18वें जैव विविधता हॉट स्पॉट क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है।

अरुणाचल प्रदेश “पुष्पित पौधों के पालने" के नाम से जाना जाता है। भारत वर्ष की लगभग 50% पुष्पित पौधों की प्रजातियां (लगभग 5000 आवृत्तबीजी पौधों की प्रजातियां) यहाँ पाई जाती हैं।राज्य में आर्किड प्रजातियों की सर्वाधिक संख्या है और इनकी लगभग 558 प्रजातियां पायी जाती हैं। इसलिए इसे 'आर्किड स्वर्ग' के नाम से भी पुकारा जाता है। राज्य में बुरांस ( रोडोडेंड्रन) की करीब 61 प्रजातियां मिलती हैं। जिनमें से 9 प्रजातियां और 1 उप प्रजाति स्थानिक (एडेमिक) है। इसके अलावा, बांस की लगभग 57 प्रजातियां, बन्हल्दी की 18 प्रजातियां, बांज की 16 प्रजातियां और बड़ी संख्या में फर्न तथा लाइकेन की प्रजातियां इस राज्य में पायी जाती हैं। राज्य के जनजातीय समुदाय बहुत से पौधों का विभिन्न रूपों में उपयोग करते हैं। राज्य में अब तक लगभग 500 औषधीय पौधों को अभिलेखित किया गया है।

यह राज्य स्तनधारी जीवों की 210 से अधिक प्रजातियों का निवास स्थान है, जिनमें से 37 प्रजातियों को भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के अंतर्गत अनुसूची-1 में वर्गीकृत किया गया है। राज्य में 760 से अधिक पक्षियों की प्रजातियां भी पायी जाती हैं। अरुणाचल की बारहमासी नदियों और धाराओं में जलीय जैव-विविधता भी बहुत अधिक है। अब तक इस राज्य में 213 प्रकार की मछलियों की प्रजातियां होने की सूचना है। इसके अलावा, यहाँ उभयचरों की 49 प्रजातियां, सरीसृप की 133 प्रजातियां, मीन की 158 प्रजातियां, तथा तितलियों, पतिंगे, भृंग और अन्य कीड़ों की असंख्य प्रजातियां पायी जाती हैं। राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 11.68% क्षेत्र संरक्षित क्षेत्र के अन्दर आता है। राज्य में दो राष्ट्रीय उद्यान, ग्यारह वन्यजीव अभयारण्य, एक जैवमंडलीय रिजर्व और दो बाघ अभयारण्य हैं।

अरुणाचल प्रदेश राज्य की जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (एपीएसपीसीसी) के अनुसार, वर्ष 2030 तक) अधिकतम तापमान में वृद्धि लगभग 2.2 से 2.8 डिग्री सेल्सियस होने का अनुमान है तथा वर्ष 2080 में तापमान के 3.4-5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाने की आशंका है। जलवायु परिवर्तन के कारण अरुणाचल प्रदेश राज्य के जल संसाधन, वन और जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने का अनुमान है। राज्य की जलवायु परिवर्तन कार्य योजना के आकलन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण अरुणाचल प्रदेश के जैव विविधता समृद्ध जिलों के प्रतिकूल रूप से प्रभावित होने का पूर्व अनुमान है। जलवायु परिवर्तन से न सिर्फ जैव विविधता प्रभावित होगी, बल्कि लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर भी प्रभाव पड़ेगा क्योंकि राज्य की कुल जनसंख्या के 62 प्रतिशत लोग कृषि क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। वर्तमान में, राज्य के लोग भी वायुमंडलीय तापमान में वृद्धि, हिमपात और वर्षा की अवधि और मात्रा में परिवर्तन, वनस्पतियों के ऋतुजैविकी (फ़ीनोलॉजी) जैसे पुष्पण एवं फलन व्यवहार में परिवर्तन, हानिकर गैरस्थानिक पादप प्रजातियों की संख्या में वृद्धि, वनस्पतियों के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में विस्थापन आदि घटनाओं के द्वारा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अनुभव कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभावों के अलावा, राज्य की जैव विविधता कई अन्य खतरों और जैविक दबाव का सामना भी कर रही है। इसके प्रमुख कारण स्थानांतरण कृषि (झूम खेती), अनियंत्रित चराई, दावानल, अतिक्रमण, विकास परियोजनाओं के कार्य, व्यावसायिक वृक्षारोपण और वन उत्पादों का अवैध दोहन इत्यादि हैं।

जैव विविधता पर जलवायु परिवर्तन से पड़ने वाले प्रभावों की व्यापक वैज्ञानिक जानकारी वर्तमान समय में राज्य में उपलब्ध नहीं है। अतः जलवायु परिवर्तन के जैव विविधता पर पड़ने वाले प्रभावों के आकलन और निगरानी के लिए बहुआयामी गहन शोध कार्य करने की गंभीर आवश्यकता है। इन शोध अध्ययनों से इस हिमालयी राज्य की जैव विविधता के संरक्षण के लिए एक व्यापक जलवायु परिवर्तन उपशमन और अनुकूलन रणनीति बनाने में मदद मिलेगी। अरुणाचल प्रदेश में शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रम, समुदाय और युवाओं की भागीदारी, पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान की बढ़ोतरी, क्षमता निर्माण कार्यक्रम आदि भी जलवायु परिवर्तन के जैव विविधता पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

डॉ. खिलेंद्र सिंह कनवाल, वैज्ञानिक-सी, डॉ. प्रसन्ना सामल, वैज्ञानिक- एफ, इं. महेंद्र सिंह लोधी वैज्ञानिक-डी, गोविंद बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान, उत्तर पूर्व इकाई, विवेक विहार, ईटानगर- अरुणाचल प्रदेश

स्रोत:- हिंदी पत्रिका पर्यवारण  

Path Alias

/articles/jalvayu-parivartan-ka-arunachal-pradesh-ki-jaiv-vividhata-par-prabhav-ek-aakalan

Post By: Shivendra
×