वैश्विक प्राकृतिक घटनाएं एवं उनका प्रभाव - ग्लोबल वार्मिंग के सन्दर्भ में

वैश्विक प्राकृतिक घटनाएं एवं उनका प्रभाव - ग्लोबल वार्मिंग के सन्दर्भ में
वैश्विक प्राकृतिक घटनाएं एवं उनका प्रभाव - ग्लोबल वार्मिंग के सन्दर्भ में

ग्लोबल वार्मिंग आज के सन्दर्भ में बड़ा ही सामान्य सा नाम है। इसके अर्थ को आज कल हर सामान्य व्यक्ति जानता हैं परन्तु इसका प्रभाव जो आम जीवन पर पड़ता है वह एक विशेष अवस्था है जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। जैसे-जैसे समाज और देश प्रगति करते गए, वैसे-वैसे मानव और प्रकृति के बीच असंतुलन बढ़ता गया। गैसों के उत्सर्जन को लेकर भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व चिंतित है परन्तु विशेष बात यह है कि आज तक सम्पूर्ण विश्व इस ओर कुछ करने में असमर्थ है क्योंकि इसका सीधा प्रभाव विकसित देशों की औद्योगिक दर एवं विकास दर पर पड़ रहा है जिससे ये देश अपनी इस समस्या का उल्लेख कर इस वैश्विक समस्या ग्लोबल वार्मिंग के प्रति उदासीन दिखाई देते हैं। वैसे अगर देखा जाये तो देश से ज़्यादा देश के लोगों का इस समस्या के प्रति उदासीन रवैया इस समस्या को बढ़ा रहा है क्योंकि देखा जाए तो ग्लोबल वार्मिंग में उपस्थित ग्रीन हाउस गैसों के कारक सामान्य व्यक्ति से जुड़े हैं जिनमें कार्बन उत्सर्जन रेट मुख्य कारक है।

जहाँ वर्ष सितम्बर 1993 में आये भूकम्प से 9748, अक्टूबर 1999 में ओडिशा तूफ़ान से 9843, जनवरी 2001 में भुज भूकम्प से 20,005, दिसंबर 2004 में आई सुनामी में 16,389 एवं जनवरी 2013 में 6,054 लोग नार्थ इंडियन फ्लड्स के कारण अपने जीवन को खो बैठे। इस बात से हम यह अंदाजा साफ़ लगा सकते हैं कि यह ग्लोबल वार्मिंग कितनी बड़ी समस्या है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि यह डेटा सिर्फ भारत देश का है वैश्विक परिदृश्य में तो यह काफी बड़ा होगा जो इंटरनेशनल डिसास्टर डेटाबेस ने तैयार किया है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व पिछले दिनों कई तरह के तूफानों जैसे नीलोफर, हुडहुड फेलिंग, फाहियान से प्रभावित रहा। भारत में तो यह तूफ़ान ज़्यादातर उड़ीसा या फिर कभी गुजरात के पोरबन्दर तट से टकराये। यह सब भी ग्लोबल वार्मिंग का ही एक रूप है जिसमें तूफ़ान, भूकम्प, बाढ़ इत्यादि जैसी घटनायें शामिल हैं।
ग्लोबल वार्मिंग के कारक आज के समय मुख्य रूप से जनसंख्या वृद्धि, वाहन प्रदूषण, अनियंत्रित उद्योग, हैं। आज हम इंडस्ट्री को तो कानून बना कर रोक सकते हैं पर जो लोग वाहन से प्रदूषण करते हैं अथवा डिफोरेस्टेशन करते हैं, उनमें जागृति लाये बिना इसे रोकना लगभग नामुमकिन है। यह सृष्टि सबकी है, यह जन जागृति जब तक नहीं आएगी इसको रोकना असंभव है। अगर हम इन घटनाओं को सचमुच रोकना चाहते हैं तो हमें इन सब कारणों पर कंट्रोल करना होगा जिससे यह नेचर की प्रतिक्रिया हो रही है। उन सब कारकों को जानना होगा जिनके फलस्वरूप यह क्रिया हो रही है। ज़िम्मेदारीपूर्वक इसकी कार्य योजना संबंधित सरकार को भेजनी होगी और साथ ही पालन भी कराना होगा।

"प्रकृति आदमी की जरूरतें पूरी कर सकती है, उसके लालच को नहीं । "
                                                   - महात्मा गांधी हिंदी
 

हाल ही के वर्षों में हमने विकास दर तो हासिल की है पर विकास का आधार प्राकृतिक असंतुलन नहीं होना चाहिए। प्रकृति ईश्वर का दिया खूबसूरत तोहफा है। इसका सृजन सम्पूर्ण मानवता का सृजन है। इसका विनाश सम्पूर्ण मानवता का नाश है। ज़रा हमें सोचने की ज़रुरत है कि हम अपनी आने वाली नस्लों को क्या दे कर जा रहे हैं- एक प्रदूषित धरती, एक प्रदूषित पर्यावरण  यह वह समय है जिसमें हर एक विश्व के वासी को काफी ऊपर उठ कर सोचने की ज़रुरत है कि उसका निजी हित बड़ा है या सम्पूर्ण विश्व और उसकी आने वाली नस्लें।

हम विकास के विरोधी नहीं पर विकास की कीमत प्रकृति का असंतुलन और मानव सभ्यता का विनाश नहीं होना चाहिए। कंप्यूटर, टेक्नोलॉजी का उपयोग विकास को गति देने में हो सकता है पर टेक्नोलॉजी से भोजन प्राप्त नहीं किया जा सकता, हां भोजन प्राप्त करने और फसल उत्पादन बढ़ाने में ज़रूर तीव्रता लाई जा सकती है। टेक्नोलॉजी का उपयोग हो पर जीवन सुधार में न कि जीवन का अंत में देश के अंदर कानून तो बहुत हैं पर उनका पालन कराना महत्वपूर्ण है तभी हम एक खुशहाल भारत बनाने में कामयाब होंगे।

आदिल हकीम खान, निदेशक,नेशनल कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी 3/312, हेड पोस्ट ऑफिस के सामने, गुना, म.प्र.

स्रोत  - हिंदी पत्रिका  पर्यावरण 

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Post By: Shivendra
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