नवीकरणीय ऊर्जा (आरई) क्षेत्र राष्ट्र को ग्रिड पावर मुहैया कराने में बढ़-चढ़कर भूमिका निभा रहा है। इसकी कुल क्षमता लगभग 8,000 मेगावाट तक पहुंच गयी है और भारत ने केवल पवन ऊर्जा से 5,300 मेगावाट से अधिक की क्षमता हासिल करके विश्व में पवन ऊर्जा में चौथा स्थान प्राप्त कर लिया है। भारत द्वारा विश्व का सबसे बड़ा नवीकरणीय क्षमता विस्तार कार्यक्रम आरंभ किया जा रहा है। सरकार का उद्देश्य नवीकरणीय ऊर्जा पर अधिक बल देकर स्वच्छ ऊर्जा में हिस्सेदारी बढ़ाने का है। भारत में नई और नवीकरणीय ऊर्जा के विकास और विस्तार के मुख्य चालक ऊर्जा सुरक्षा, विद्युत की कमी, ऊर्जा अभिगम्यता, जलवायु परिवर्तन आदि हैं।
युनाइटेड नेशन्स फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज ऑन इंटेंडेड नेशनली डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशन (आईएनडीसी) को अपने प्रस्तुतीकरण में भारत सरकार ने कहा है कि भारत हरित जलवायु निधि सहित प्रौद्योगिकी अंतरण और कम लागत की अंतरराष्ट्रीय वित्त व्यवस्था की मदद से वर्ष 2030 तक गैर जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से 40% संचित विद्युत पावर क्षमता प्राप्त कर लेगा।
भारत ने बायोगैस संयंत्रों में दूसरा स्थान, सौर फोटोवोल्टेक सेल उत्पादन में सातवां स्थान और सौर थर्मल प्रणाली में नौवां स्थान प्राप्त किया है। भारतीय फोटोवोल्टेक उद्योग ने विगत 2 वर्षों में यूरोपीय देश, यूएसए, ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों को 95 मेगावाट के सौर सेल तथा मॉड्यूल्स निर्यात किए हैं। खाना बनाने, रोशनी, वाटर हीटिंग मोटिव पावर की तथा ग्रामीण, शहरी, औद्योगिक और वाणिज्यिक क्षेत्रों में कैप्टिव पावर की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा उपकरणों और प्रणालियों का व्यापक विस्तार हुआ है।
ग्रिड से जुड़ी नवीकरणीय ऊर्जा के अन्तर्गत विगत ढाई वर्षों के दौरान नवीकरणीय ऊर्जा का 14.30 गीगावाट का क्षमता वर्धन हुआ है, जिसमें सौर ऊर्जा से 5.8 गीगावाट, पवन ऊर्जा से 7.04 गीगावाट, छोटी हाइड्रो ऊर्जा से 0.53 गीगावाट और जैव ऊर्जा से 0.933 गीगावाट ऊर्जा शामिल है। 31 अक्तूबर, 2016 की स्थिति के अनुसार देश में सौर ऊर्जा परियोजनाओं से कुल मिलाकर 8727.62 मेगावाट से भी अधिक की क्षमता संस्थापित हुई है।
सरकार सृजन-आधारित प्रोत्साहनों (जीबीआई), पूंजी और ब्याज सहायता, व्यवहार्य अंतराल वित्त व्यवस्था, रियायती वित्त व्यवस्था वित्तीय प्रोत्साहनों आदि जैसे विभिन्न प्रोत्साहनों का प्रस्ताव करते हुए नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों के अभिग्रहण को प्रोन्नत करने में सक्रिय भूमिका अदा कर रही है। राष्ट्रीय सौर मिशन का उद्देश्य जीवाश्म आधारित ऊर्जा विकल्पों के साथ पूर्ण सौर ऊर्जा बनाने के परम उद्देश्य सहित ऊर्जा सृजन और अन्य उपयोगों के लिए सौर ऊर्जा के विकास और प्रयोग को प्रोन्नत करना है। राष्ट्रीय सौर मिशन का उद्देश्य दीर्घावधि नीति के माध्यम से, बड़े पैमाने या विस्तारवादी लक्ष्यों, सामूहिक आर एंड डी और महत्वपूर्ण कच्ची सामग्रियों के घरेलू उत्पादन घटकों और उत्पादों के माध्यम से देश में सौर ऊर्जा सृजन की लागत कम करना है।
देश में विकास को गति देने और नवीकरणीय ऊर्जा के फैलाव के लिए सरकार 2016-17 में 30 गीगावाट से 2021-22 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता- वर्धन के लिए लक्ष्यों को बढ़ाने जैसे अनेक कदम उठा रही है। 2022 तक 175 गीगावाट के नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्य के फलस्वरूप 326.22 मिलियन टन सीओ 2 समतुल्य / वर्ष की कटौती होगी। नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य की प्राप्ति हेतु विगत दो वर्षों में सौर पार्क, सौर डिफेंस स्कीम केनाल बैंक और केनाल टॉप पर सीपीयू सौर पीवी ऊर्जा संयंत्रों के लिए सौर स्कीम, सौर पंप, सौर रूफटॉप आदि के कार्यान्वयन पर मुख्य कार्यक्रम / स्कीमें आरंभ की गई हैं।
अन्तरराष्ट्रीय सौर संगठन (आईएसए) को सौर ऊर्जा का विकास करने और संवर्धन करने के लिए 30 नवम्बर, 2015 को पेरिस में पक्षकार देशों के सम्मेलन (सीओपी21) में कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच पूर्ण रूप से अथवा आंशिक रूप से आने वाले 121 सौर संसाधन सम्पन्न देशों के बीच सहयोग हेतु एक विशेष मंच के रूप में शुरू किया गया है, जिसका मुख्यालय दिल्ली में है। 25 जनवरी, 2016 को आईएसए के प्रस्तावित मुख्यालय के लिए गुड़गांव, हरियाणा (भारत) में आधारशिला रखी गई तथा इसके अस्थाई सचिवालय का उदघाटन किया गया। आईएसए के फ्रेमवर्क करार पर पक्षकार देशों (सीओपी- 22) की तर्ज पर 15 नवम्बर, 2016 को मराकेश, मोरक्को में भारत, फ्रांस, ब्राजील और कुछ अन्य देशों सहित 24 सदस्य देशों द्वारा हस्ताक्षर किए गए।
निष्कर्ष यह है कि भारत आज अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जीवाश्म ईंधन, विशेष रूप से कोयले पर बहुत अधिक निर्भर है। भारत की ऊर्जा आवश्यकताएं तेजी से बढ़ने का अनुमान है। क्योंकि यहां पर आबादी में औद्योगिकीकरण में और प्रति व्यक्ति खपत में तेजी से वृद्धि हो रही है। जलवायु परिवर्तन के आलोक में, भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के विकास में वृद्धि की है और अपने उत्सर्जनों में कमी करने के विशेष लक्ष्यों और उद्देश्यों के साथ एक व्यापक नीतिगत ढ़ांचा विकसित किया है। जीएचजी न्यूनीकरण और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन पर कार्य करते हुए विकास के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) बनायी गयी है और उसे आठ मिशनों को समान अनुपात में सौंपा गया है।
भारत ने विभिन्न वित्तीय साधनों का प्रयोग किया है जो जीवाश्म ईंधन पर सहायता में कमी करके, कार्बन पर कर लगाकर और विभिन्न आरई परियोजनाओं को सहायता प्रदान करके आरई विकसित करने के लिए प्रोत्साहनों के रूप में कार्य करते हैं। भारत में नवीकरणीय ऊर्जा की व्यापक संभावना है जिसमें सौर, पवन, बायोमास और जल ऊर्जा शामिल हैं, जिनकी जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा नीतियों के कारण व्यापकता बढ़ रही है। इस प्रकार भारत के आरई के लक्ष्य में संवर्धन से जीएचजी उत्सर्जनों में कमी के साथ-साथ भविष्य में ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने और समृद्धि के लिए अधिक सुरक्षा और स्वतंत्रता प्राप्त हो सकेगी।
लेखक पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में कंसल्टेंट हैं।
स्रोत - हिन्दी पर्यावरण पत्रिका, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
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