गंगा की पवित्रता एवं रोग निवारण क्षमता का वैज्ञानिक रहस्य(Scientific secret of Ganga's purity and disease-preventing ability)

गंगा की रोग निवारण क्षमता का वैज्ञानिक रहस्य
गंगा की रोग निवारण क्षमता का वैज्ञानिक रहस्य

"नमामि गंगे तव पादपंकजं सुरासुरैर्वन्दितदिव्यरूपम। भुक्तिं च मुक्तिं च ददासि नित्यं भावानुसारेण सदा नराणाम " "हे गंगा माँ ! देवताओं और राक्षसों द्वारा वंदित आपके दिव्य चरण-कमलों को मैं नमन करता हूँ, जो मनुष्य को नित्य ही उसके भावानुसार भक्ति और मुक्ति प्रदान करते हैं।"

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने चुनाव जीतने के बाद दशाश्वमेध घाट वाराणसी से अपने पहले संबोधन में गंगा को पवित्र एवं स्वच्छ रखने तथा काशी को भारत की आध्यात्मिक राजधानी बनाने के लिए प्रत्येक भारतवासी के सहयोग के लिए आह्वान किया था। शायद बहुत से राजनीतिज्ञ श्री नरेंद्र मोदी जी की अभिव्यक्ति से सहमत न हों, लेकिन उनके इस कथन से उनकी दूरदर्शिता का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हिंदू धर्म की सांस्कृतिक परम्पराओं एवं विज्ञान का परस्पर संबंध दिखायी पड़ता है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार गंगा स्नान किसी भी व्यक्ति को उसके वर्तमान एवं पूर्व में किये गए दुष्कर्मों से मुक्त करके शुद्ध करता है और इसी कारण गंगाजल को पवित्र जल माना जाता है। 

आज भी लोग पवित्र गंगाजल के साथ देश विदेश का भ्रमण करते हैं क्योंकि यह पावन गंगाजल रोग निवारक विशेषता से परिपूर्ण है और शायद गंगाजल की यही विशेषता उसके लिए अभिशाप सिद्ध हो रही है। नित्य प्रतिदिन लाखों की संख्या में लोग श्रद्धा एवं पूजा के नाम पर गंगा को प्रदूषित करते रहते हैं और फिर भी गंगाजल अपनी शुद्धता कायम रखता है।आइये गंगाजल की पवित्रता एवं इसमें समायी रहस्यमयी शक्ति को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझते हैं।

गंगाजल की अद्वितीय शुद्धीकरण क्षमता के दो प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं :-

  • गंगाजल में जीवाणुओं एवं अन्य सूक्ष्म जीवों को नष्ट करने वाला विषाणु (वायरस) पाया जाता है जिसे विज्ञान की भाषा में बैक्टीरियोफाज अथवा रोगाणु भोजी कहते हैं। यह वायरस मनुष्य एवं अन्य प्राणियों के लिए हानिकारक नहीं होता है, तथा
  • गंगाजल में ऑक्सीजन सदैव उच्च मात्रा में घुला रहता है जिसकी वजह से गंगाजल दीर्घ समय तक रखने पर भी सड़ता नहीं है। इसके अतिरिक्त, गंगा प्रवाह के समय हिमालय पर्वत से अद्भुत खनिज लवण एवं अत्यंत लाभकारी औषधीय पौधों और जड़ी बूटियों की कुछ मात्रा गंगाजल में घुल जाती है। प्राचीन समय के ऋषि-मुनियों को वैज्ञानिक कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि उन्होंने अपनी आने वाली पीढ़ियों द्वारा भविष्य में गंगा की पवित्रता को सुरक्षित रखने के लिए इसे भगवान श्री शंकर से जोड़ा।

गंगा न सिर्फ हमारे लिए बल्कि अनगिनत जलीय एवं वन्य जीव-जंतुओं के लिए भी जीवनदायिनी है। आज भारत की एक तिहाई जनसंख्या गंगा किनारे वास करती है और उनके लिए गंगा नदी केवल पानी का स्रोत ही नहीं, अपितु मनुष्य-जनित अपशिष्ट कचरे को ग्रहण करने एवं ढोने की प्रणाली भी है। आज के समय में प्रतिदिन 9000 लाख लीटर घरेलू / औद्योगिक कचरा गंगा में फेंका जाता है जोकि बहुत बड़ा अनर्थ है। मनुष्य को पृथ्वी ग्रह पर सभ्य जानवर की संज्ञा दी गयी है जोकि गलत सिद्ध हो रही है। पृथ्वी के इस सभ्य जानवर ने सिर्फ गंगा जैसी पवित्र नदियों को ही नहीं अपितु सम्पूर्ण प्राकृतिक आवास को गहरी क्षति पहुंचायी है। भारत सरकार को इस अनर्थ को तुरंत रोकना होगा क्योंकि मनुष्य को प्राकृतिक संसाधनों को प्रदूषित करने का कोई अधिकार नहीं है। इस ग्रह पर जीव-जंतुओं एवं वनस्पतियों का भी बराबर का अधिकार है, अतः मनुष्य को स्वार्थ का त्याग करना होगा एवं प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित मात्रा में उपयोग करना होगा। इस संदर्भ में महात्मा गांधी एक बार कहा था कि पृथ्वी हर आदमी की जरूरत को पूरा करने के लिए पर्याप्त प्रदान करती है लेकिन एक आदमी के लालच को भी पूरा नहीं कर सकती ।

आजकल हम नित्य प्रति नयी-नयी बीमारियों के बारे में सुनते रहते हैं। ऐसे भी जीवाणु पैदा हो चुके हैं जिन पर एंटीबायोटिक दवाओं का भी असर नहीं होता और चिकित्सक लाचार दिखाई पड़ते हैं। अब हमें एक विकल्प की जरूरत है, और एक संभावित विकल्प जीवाणुभोजी चिकित्सा (बेक्टीरियोफाज थेरेपी) ही है। गंगाजल ऐसे बेक्टीरियोफाजों का स्रोत है जिसमें विविध किस्म के रोगाणुओं को नष्ट करने की क्षमता है। अतः इन बीमारियों के इलाज के लिए गंगाजल एक वरदान सिद्ध हो सकता है। हम सभी भारतवासियों को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के अभियान में योगदान करना होगा और आज से ही गंगा माँ की निर्मल एवं पवित्र छवि को मन में बसाकर संकल्प लेना होगा कि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक स्वच्छ एवं पवित्र गंगा देंगे।

लेखक-डॉ. राजेश कुमार (अनुसंधान सहायक) उत्तर क्षेत्रीय कार्यालय, चंडीगढ़ में कार्यरत हैं।

स्रोत-पर्यावरण एवं वन मंत्रालय

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