विष्णुगाड पीपलकोटी पनबिजली परियोजना से प्रभावित हाट गांव और वर्ल्ड बैंक

विष्णुगाड पीपलकोटी पनबिजली परियोजना, Pc-IWP
विष्णुगाड पीपलकोटी पनबिजली परियोजना, Pc-IWP

वर्ल्ड बैंक में शिकायत

उत्तराखंड के चमोली में भारत से जुड़ी एक ‘विष्णुगाड पीपलकोटी हाइड्रो पावर परियोजना’ मामले में, वर्ल्ड बैंक के इंस्पेक्शन पैनल ने 83 समुदायों की प्रार्थना को स्वीकार करते हुए, उसे दर्ज कर लिया है। विश्वबैंक की टीम दौरा भी कर चुकी है। ग्रामीणजनों को विश्वबैंक से न्याय की उम्मीद है। हाट गांव के ग्रामीणों का कहना है कि परियोजना के कारण हाट गांव में स्थित पुरातन लक्ष्मी नारायण मंदिर बर्बाद हो जाएगा, जो कि एक ‘फिजिकल कल्चरल रिसोर्स’ है, और जिसपर ग्रामीणों की आजीविका टिकी हुई है।

भू-घंसाव के कारण घरों में दरारें

हाट गांव के नरेन्द्र पोखरियाल कहते हैं कि हम गांव के लोगों के साथ हमेशा झूठ बोला गया। ‘विष्णुगाड पीपलकोटी हाइड्रो पावर परियोजना’ में  हमारा गांव ‘मक डपिंग’ के लिए चिन्हित किया गया। लगभग आधे गांव के लोगों को औने-पौने मुआवजा देकर निपटाया गया। बाकी गांव के लोगों को तो प्रभावित ही नहीं माना गया, जबकि अब उनके खेतों-घरों में दरारें आ रही हैं। कारण कि खेतों-घरों के नीचे सुरंग बन रही हैं। ‘विष्णुगाड पीपलकोटी हाइड्रो पावर परियोजना’ ‘रन आफ द रिवर’ प्रोजेक्ट है। यानी की सुरंग से पानी आगे ले जाकर टरबाइन चलाई जाएगी। खेतों-घरों के नीचे बनने वाली सुरंग की वजह से गांव के नीचे भू-घंसाव हो रहा है। भू-घंसाव के कारण घरों में दरारें पड़ रही हैं। धीरे-धीरे धंस रहे मकान दरकने लगे हैं। बढ़ते भू-धंसाव और बढ़ती दरारों की वजह से हाट गांव  खतरे की जद में है। और यह खतरा हर उस गांव को है, जिसके नीचे ‘विष्णुगाड पीपलकोटी हाइड्रो पावर परियोजना’ की टनलिंग हो रही है।

मक डंपिंग और हाट गांव

‘डाउन2अर्थ’ की रपट के अनुसार वर्ल्ड बैंक के इंस्पेक्शन पैनल ने उत्तराखंड के चमोली से जुड़ी एक ‘विष्णुगाड पीपलकोटी हाइड्रो पावर परियोजना’ विवाद मामले में 83 परिवारों की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया है। इस प्रार्थना में कहा गया था कि इस परियोजना के कारण हाट गांव में स्थित पुरातन लक्ष्मी नारायण मंदिर, जो कि एक फिजिकल कल्चरल रिसोर्स है, बर्बाद हो जाएग। ग्रामीणों की तरफ से वर्ल्ड बैंक के इंस्पेक्शन पैनल को भेजी गई प्रार्थना में कहा गया है कि हाट गांव में लक्ष्मी नारायण मंदिर की स्थापना 19वीं सदी में आदि शंकराचार्य ने किया था जिससे ग्रामीणों का एक पवित्र बंधन और विरासत वाला रिश्ता जुड़ा हुआ है। ऐसे में बरसात के दिनों में मिट्टी का मलबा मंदिर की दीवार को नुकसान पहुंचा सकता है। मंदिर की साइट की महत्वता के लिए ग्रामीणों की तरफ से भारतीय पुरातत्व विभाग के 2022 अध्ययन रिपोर्ट को भी प्रार्थना के साथ सबूत के तौर पर भेजा गया है। 

हाट गांव संकट में 

ग्रामीणों की इच्छा के विरुद्ध हाट गांव छोड़कर दूसरी जगह जाने के लिए विवश किया जा रहा है, जो सामाजिक ताना-बाना खराब कर रहा है। 92 परिवारों को प्रभावित करने वाली परियोजना से उनकी आजीविका खतरे में है, और उनकी शिकायतों को सुना ही नहीं जा रहा है। न हटने का बात पर ग्रामीणों के खिलाफ पर्जी मुकदमें दर्ज कर जेल डाला जा रहा है। परियोजना में जलवायु परिवर्तन से जनित आपदाओं और मौसमी घटनाओं का ध्यान नहीं रखा गया है।

12 जुलाई, 2022 को हुए वर्ल्ड बैंक  में हाट गांव की समस्या की जांच स्वीकृत की गई, 19 अगस्त, 2022 को विश्व बैंक के माध्यम से इनवेस्टिगेशन-रजिस्टर में समस्या को केस को दर्ज किया गया। 

हाट गांव की आपत्तियां

ग्रामीणों ने वर्ल्ड बैंक को अपनी आपत्ति में यह भी कहा है कि उन्हें डर है कि डैम बनने के बाद उनके ताजे पानी का स्रोत खत्म हो जाएगा। ‘विष्णुगाड पीपलकोटी हाइड्रो पावर परियोजना’ के लिए हाट गांव की पुरातन मंदिर वाली साइट को मक डंपिंग साइट बनाया गया है। ग्रामीणों की आपत्ति है कि मलबे की डंपिंग साइट की पहचान गलत जगह की गई है। इससे उन्हें और उस जगह को काफी नुकसान होगा। ग्रामीणों का आरोप है कि मक डंपिंग साइट के लिए अन्य संभावित साइटों की उपेक्षा की गई है बल्कि सुनवाई के दौरान उनके सुझावों को भी नहीं सुना गया है। 

क्या है परियोजना

विष्‍णुगाड-पीपलकोटी पनबिजली परियोजना: विश्‍वबैंक की मदद से अलकनंदा नदी पर 440 मेगावाट की एक हाइड्रो पावर परियोजना है। 

इसका निर्माण कार्य: इस परियोजना का निर्माण कार्य हाट गांव के निकट 140 हेक्‍टेयर भूमि पर चल रहा है।

विष्‍णुगाड-पीपलकोटी पनबिजली परियोजना का स्‍वामित्‍व और ठेका: इस परियोजना का स्‍वामित्‍व ‘टिहरी हाइड्रो पावर डिवेलपमेंट कॉरपोरेशन’ (टीएचडीसी) के पास है और निर्माण कार्य का ठेका मुंबई की एक निजी कंपनी को दिया गया है।

परियोजना का मुल्यांकन 

विष्‍णुगाड-पीपलकोटी परियोजना को पर्यावरण स्वीकृति में  इसे 2007 में मिली थी, जो अगस्त 2021 में समाप्त हो चुकी है। पर्यावरण मंत्रालय ने इसे नयी पर्यावरण स्वीकृति भी पकड़ा दी है। इस नई पर्यावरण स्वीकृति को चुनौती देते हुए एक याचिका भरत झुनझुनवाला और विमल भाई ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में इसे चुनौती देने के लिए एक याचिका दायर की गई। ट्रिब्यूनल से परियोजना के लाभ-हानि के मुल्यांकन की दरकार की गई है। ट्रिब्यूनल से प्रार्थना की गई है कि ‘विष्‍णुगाड पीपलकोटी परियोजना’ की लाभ-लागत आकलन किया जाए। इसमें पर्यावरणीय दुष्प्रभाव का मूल्य नहीं जोड़ा गया है, जैसे भूमि भूस्खलन, ब्लास्टिंग, जल की गुणवत्ता का ह्रास, नदी के सौंदर्य का ह्रास और जैव विविधता की हानि आदि महत्व के मुद्दों के आधार पर मुल्य़ांकन किया जाए।

13 हजार करोड़ की बांध योजना एक अच्छी बारिश नहीं झेल पाई 

करीब-करीब करीब 13,000 करोड़ रुपये की लागत से बनी तीस्ता-3 पनबिजली परियोजना का 60 मीटर ऊंचा बांध एक अच्छी बारिश में ही बह गया। इस परियोजना का काम पूरा होने में दो दशक लग गए। इसका फिलहाल का सबक यही है कि सरकार हिमालय में जल विद्युत परियोजनाओं के अंधाधुंध निर्माण के अपने कार्यक्रम का गंभीरता से पुनर्मूल्यांकन करे। अरुणाचल प्रदेश से कश्मीर तक हिमालय के पूरे इलाके में कई बांध बनाए गए हैं या बनाए जा रहे हैं। इस इलाके में केदारनाथ, सिक्किम आपदा के बाद, विभिन्न जल विद्युत परियोजनाओं पर पुनर्विचार करने का महत्वपूर्ण संकेत है।

 

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