(गंगा के संदर्भ में जून, 2008 में कानपुर आईआईटी के पूर्व प्रोफेसर गरूदास अग्रवाल ने उत्तरकाशी और दिल्ली में आमरण अनशन किया था। उनके आंदोलन के चलते उत्तराखण्ड सरकार ने जून, 2008 में मनेरी भाली द्वितीय चरण एवं पाला मनेरी परियोजना को निलंबित करने के आदेश जारी किए। जनवरी, 2009 में प्रोफेसर अग्रवाल ने दुबारा अनशन पर बैठने व हिंदू संतों व संगठनों के आंदोलित हो जाने के कारण केंद्र सरकार ने लोहारीनाग पाला परियोजना पर दिनांक 19 फरवरी, 2009 को काम रोकने का फैसला लिया।
प्रोफेसर जीडी अग्रवाल (स्वामी सानंद) के गंगा आंदोलन का उद्देश्य गंगा नदी को बांधने से बचाना और उसकी अविरल प्रवाह सुनिश्चित करना था। इस आंदोलन को संतों, विभिन्न सामाजिक संगठनों और पर्यावरणविदों ने लंबे समय से नदी की रक्षा के लिए शुरू किया था। इसी तरह, पर्यावरणविद प्रोफेसर जी.डी. अग्रवाल ने हरिद्वार के मातृ सदन में भागीरथी नदी पर बन रही लोहारीनाग पाला जलविद्युत परियोजना के विरोध में अनशन किया था। इस आंदोलन को ऐतिहासिक सफलता मिली, जब केंद्र सरकार ने गोमुख से 50 किलोमीटर दूर लोहारीनाग पाला जलविद्युत परियोजना को रद्द करने का फैसला लिया था। इसे करोड़ों गंगाभक्तों की जीत के रूप में देखा गया। मनोज गहतोड़ी का यह आलेख लोहारीनाग पाला जलविद्युत परियोजना के बंद करने के समय का है। ऐतिहासिक संदर्भ की वजह से फिर से प्रस्तुत कर रहे हैं - संपादक।)
कहते हैं कि दृढ़ इच्छाशक्ति और ईमानदारी हो तो किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। ऐसा ही एक पहाड़ सा लक्ष्य यानी गंगा को विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से बांधने, प्रवाह रोकने की योजनाओं को निरस्त करवाने और गंगा के अविरल प्रवाह को सुनिश्चित कराने का लक्ष्य लेकर पिछले लम्बे समय से मां गंगा की रक्षा के लिए संतों, विभिन्न सामाजिक संगठनों और चिंतकों ने आंदोलन छेड़ा हुआ था, विहिप के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल के नेतृत्व में विश्व हिन्दू परिषद सहित अनेक हिन्दुत्व निष्ठ संगठनों ने प्रचण्ड अभियान चलाया था और गंगा रक्षा आंदोलन ने देश भर में मां गंगा के अक्षुण्ण प्रवाह हेतु व्यापक जन-जागरण किया था।
इसी कड़ी में भागीरथी पर बन रही लोहारीनाग पाला जलविद्युत परियोजना का विरोध करते हुए हरिद्वार के मातृ सदन में प्रसिद्ध पर्यावरणविद प्रो. जी. डी.अग्रवाल ने अनशन किया। इस समूचे अभियान को ऐतिहासिक सफलता तब मिली जब केन्द्र सरकार ने गोमुख से 50 किलोमीटर दूरी पर बन रही लोहारीनाग पाला जलविद्युत परियोजना को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि इस पर हुआ खर्च इससे जुड़े सामाजिक और पर्यावरणीय पहलुओं के सामने नगण्य हैं। यानी गंगा के धार्मिक महत्व और उसके प्रति करोड़ों लोगों की आस्था के सामने आखिरकार सरकार को अपनी जिद्द छोड़नी पड़ी। इसे करोड़ों गंगाभक्तों की जीत के रूप में देखा जा रहा है।
रक्षाबन्धन के पावन पर्व पर केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन राज्यमंत्री जयराम रमेश ने मातृ सदन (हरिद्वार) पहुंचकर लोहारीनाग पाला परियोजना को रद्द किये जाने के फैसले को सबके सामने पढ़कर सुनाया। हालांकि यह निर्णय दो दिन पूर्व ही आ गया था, परन्तु प्रो. अग्रवाल ने केंद्रीय पर्यावरण राज्यमंत्री को यह कहकर वापस भेज दिया था कि उन्हें इस परियोजना को रह किये जाने का निर्णय लिखित रूप में चाहिए। जयराम रमेश फिर से केन्द्र सरकार का प्रो. गुरुदास अग्रवाल के नाम आधिकारिक सहमति पत्र लेकर आये थे। इस अवसर पर उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' भी उपस्थित थे। प्रो. अग्रवाल का यह अनशन 22 जुलाई से 24 अगस्त तक चला। इस अवधि में उन्होंने जल तक ग्रहण नहीं किया। केन्द्र सरकार के पत्र पर प्रो. अग्रवाल 90 प्रतिशत ही सहमत हुए इसलिए उन्होंने कि यह केवल फलाहार हो करेंगे। उनका अनशन सरकारी घोषणा पर ‘राष्ट्रीय गंगा बेसिन प्राधिकरण’ को 7 सितम्बर को आईआईटी कानपुर में होने वाली बैठक में अंतिम मुहर लगने के बाद ही खत्म होगा। केंद्रीय पर्यावरण एवं वन राज्यमंत्री जयराम रमेश एवं प्रदेश के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने संयुक्त रूप से प्रो. अग्रवाल को फल का रस पिलाया और फलाहार कराया। इस अवसर पर श्री जयराम रमेश ने कहा कि लोहारीनाग पाला जलविद्युत परियोजना को करोड़ों लोगों की आस्था का सम्मान करते हुए निरस्त किया गया है। उन्होंने यह भी बताया कि गोमुख से उत्तरकाशी तक गंगा के साथ-साथ 135 कि.मी. क्षेत्र को ईको-सेंसिटिव जोन' घोषित कर दिया गया है, साथ ही आईआईटी., कानपुर समेत देश के सात आईआईटी. संस्थानों को 'गंगा बेसिन मैनेजमेंट प्लान तैयार करने का काम सौंप दिया गया है।
मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि गंगा को पावन और निर्मल बनाये रखना सबकी नैतिक जिम्मेदारी है। उत्तराखण्ड देश का मस्तक है, यह केवल योजनाओं एवं भाषणों से उन्नत नहीं होना चाहिए। इस राज्य ने सम्पूर्ण देश को पानी और जवानी से मजबूती प्रदान की है। गंगा को निर्मल बनाए रखने के हर आंदोलन का केंद्र उत्तराखण्ड हो न हो, बल्कि जिन-जिन जगहों पर गंगा की स्थिति खराब है, वहां इसके बारे में चेतना जागृत होनी चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि वाराणसी, इलाहाबाद कानपुर में गंगा को बहुत तेजी से प्रदूषित किया जा रहा है। वहां भी लोगों को सावधान करने की जरूरत है। इस बीच 'गंगा मां की जय के जयकारों से मातृ सदन गूंज उठा। भारी जनसैलाब के साथ बड़ी मात्रा में संतों की उपस्थिति ने गंगा की रक्षा के लिए सबको एक मंच पर लाकर सामूहिक एकजुटता का दृश्य प्रस्तुत किया।
इस अवसर पर रामानंदाचार्य, स्वामी हंसदेवाचार्य, स्वामी रामदेव, स्वामी शिवानन्द, अखाड़ा परिषद् के राष्ट्रीय प्रवक्ता बाबा हठयोगी, स्वदेशी चिन्तक के. एन. गोविन्दाचार्य, महंत दुर्गादास, महंत शरदपुरी, गंगा बेसिन प्राधिकरण के सदस्य श्री राजेन्द्र सिंह, विश्व हिन्दू परिषद के केंद्रीय मंत्री श्री राजेन्द्र सिंह 'पंकज' एवं धर्माचार्य सम्पर्क प्रमुख श्री अशोक तिवारी 'सहित अनेक गणमान्य जन मौजूद थे ।
स्रोत - 5 सितम्बर 2010,पांचजन्य
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