सूखा और बाढ़

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Previously drought-prone areas are now facing floods (Image: Needpix)
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अकाल मंडराने लगा है
Posted on 23 Jul, 2012 03:38 PM शिवराम की एक कविता है अकाल। उसकी कुछ लाइनें हैं
‘रूठ जाते हैं बादल/ सूख जाती हैं नदियाँ /सूख जाते हैं पोखर-तालाब/ कुएँ-बावड़ी सब/ सूख जाती है पृथ्वी/ बहुत-बहुत भीतर तक / सूख जाती है हवा / आँखों की नमी सूख जाती है / हरे भरे वृक्ष / हो जाते हैं ठूँठ /डालियों से /सूखे पत्तों की तरह /झरने लगते हैं परिंदे/ कातर दृष्टि से देखती हैं /यहाँ-वहाँ लुढ़की / पशुओं की लाशें’
सूखे के छह कारण
Posted on 23 Jul, 2012 10:54 AM

महाराष्ट्र अकेला ऐसा राज्य है जो कृषि के मुकाबले उद्योगों को पानी उपलब्ध कराने को ज्यादा प्राथमिकता देता है। इसलिए सिंचाई योजनाएं बनती हैं तो उनका पानी शहरों में उद्योगों की जरूरतों पर खर्च कर दिया जाता है। अमरावती जिले में ही, जो सबसे ज्यादा सूखाग्रस्त इलाका है, प्रधानमंत्री राहत योजना के तहत अपर वर्धा सिंचाई प्रोजेक्ट बनाया गया, लेकिन जब यह बनकर तैयार हुआ तो राज्य सरकार ने निर्णय लिया कि इसका पानी सोफिया थर्मल पावर प्रोजेक्ट को दे दिया जाए।

फिर से एक बार सूखे के दिन हैं। इसमें नया कुछ भी नहीं है। हर साल दिसंबर और जून के महीनों में हम सूखे से जूझते हैं फिर कुछ महीने बाढ़ से। यह हर साल का क्रमिक चक्र बन चुका है। लेकिन इसका कारण प्रकृति नहीं है जिसके लिए हम उसे दोष दें। ये सूखा और बाढ़ हम मनुष्यों के ही कर्मों का नतीजा है। हमारी लापरवाहियों का, जिनके कारण हम पानी और जमीन की सही देखभाल नहीं करते। हमारी लापरवाही के कारण ही ये प्राकृतिक आपदाएं पिछले कुछ सालों में विकराल रूप लेती रही हैं। इस सालों में महाराष्ट्र का एक बड़ा हिस्सा सूखे की चपेट में आया है जिसके कारण बड़े पैमाने पर किसानों की फसलें चौपट हुई हैं और वे आत्महत्या के लिए विवश हुए हैं। किसानों की मदद के नाम पर मुख्यमंत्री और पैसा चाहते हैं और विपक्ष इस पर अपनी सियासत करता है।
ओलम्पिक मशाल बनाम भोपाल का बुझता चिराग
Posted on 13 Jul, 2012 04:29 PM

सैंकड़ों करोड़ रुपए खर्च होने बाद भी सरकारी व ट्रस्टों का चिकित्सा तंत्र सही इलाज नहीं कर पा रहा है। प्रायः लक्षण

Bhopal gas tragedy
माजुली का हीरो जिंदा है
Posted on 04 Jul, 2012 11:12 AM

सोलह वर्ष बाद आज भी हमें इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पाया है कि माजुली को बचाने के लिए दूसरा कोई उपाय क्या है? संजय लिखते हैं ‘‘हमें लोगों के इस हौसले और शक्ति का पूरा एहसास है जिसे ब्रह्मपुत्र ने सुरक्षित रखा है।’’ माजुली के अस्तित्व के लिए संघर्श कर रहे लोगों के लिए यह पंक्तियां आज भी उनका हौसला बढ़ाती हैं। क्योंकि अहसास जगाने वाला माजुली का वह हीरो उनके दिलों में अब भी जिंदा है।

इस वर्ष ब्रह्मपुत्र नदी में आई बाढ़ ने जैसी तबाही मचाई है वैसी कल्पना कभी असमवासियों ने नहीं की थी। पानी के विकराल रूप ने सबसे ज्यादा माजुली द्वीप पर बसे 1.6 लाख वासियों को प्रभावित किया है। जो जिंदगी और मौत के दरम्यान खुद को बचाने की कशमकश में घिरे हुए हैं। सबके मन मस्तिष्क में बस एक ही प्रश्न घूम रहा है ‘यदि ऐसा होता तो क्या होता? और इन प्रश्नों में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि ‘यदि आज संजय जीवित होते तो क्या होता? परंतु संजय के जीवित रहने की आशा तो 15 वर्ष पहले ही (4 जुलाई) को उस समय समाप्त हो गई जब उल्फा विद्रोहियों ने उनका अपहरण करके उसी माजुली द्वीप में कत्ल कर दिया जिसे तबाही से बचाने के लिए वह दिन रात संघर्ष कर रहे थे।
बुंदेलखंडः फटती धरती, कांपते लोग
Posted on 04 Jan, 2012 04:22 PM

नदियों और पहाड़ों में रात-दिन अंधाधुंध खनन हो रहा है, बड़ी-बड़ी मशीनों से धरती छलनी की जा रही

एल-मोमेन्ट्स एवं पारम्परिक तकनीकों द्वारा विभिन्न प्रत्यागमन काल के लिए आंकलित बाढ़ की तुलना
Posted on 29 Dec, 2011 11:37 PM विभिन्न प्रकार की जल संसाधन परियोजनाओं/जलविज्ञानीय संरचनाओं जैसे कि बाँध, स्पिलवे, सड़क एवं रेलवे पुल, पुलिया, शहरी निकासी तन्त्र तथा विभिन्न संरचनात्मक उपायों जैसे कि बाढ़ क्षेत्र का निर्धारण, बाढ़ सुरक्षा परियोजनाओं का आर्थिक मूल्यांकन इत्यादि के लिए बाढ़ परिमाण एवं उनकी आवृत्ति सम्बन्धित सूचना की आवश्यकता होती है। सत्रहवीं शताब्दी में वैज्ञानिक जलविज्ञान की शुरूआत के समय से ही वैज्ञानिकों एवं अ
कुदरत बहाये, हम रोकें नदी !!
Posted on 18 Dec, 2011 12:39 PM ’’गर फुर्सत मिले तो पानी की तहरीरों को पढ़ लेना।
हरेक दरिया हजारों साल इक अफसाना सा लिखता है।’’

river
प्रकृति से बढ़ती छेड़छाड़ का नतीजा है विनाश
Posted on 21 Nov, 2011 12:21 PM

पेड़ों की अंधाधुंध कटाई मिट्टी खिसकने की प्रमुख वजह है। बरसात के मौसम में पहली बारिश होते ही यह मिट्टी अपने साथ आसपास के इलाके को समेटते हुए नीचे गिरने लगती है। जिससे इलाके को बंजर बनना और पहाड़ियां खिसकना शुरू होती हैं, विनाश की एक अलग किस्म की कहानी है। प्रकृति की गोद में बसे खूबसूरत राज्य सिक्किम में भूकंप से बड़े पैमाने पर होने वाला विनाश प्रकृति से बढ़ती छेड़छाड़ और खतरे की चेतावनियों की अनदेखी का नतीजा है। इस राज्य में इतनी तीव्रता का भूकंप भले 18 सितंबर को पहली बार आया, भूविज्ञानिकों ने इसकी चेतावनी कोई 10 साल पहले ही दे दी थी।

प्रकृति की गोद में बसे खूबसूरत राज्य सिक्किम में भूकंप से बड़े पैमाने पर होने वाला विनाश प्रकृति से बढ़ती छेड़छाड़ और खतरे की चेतावनियों की अनदेखी का नतीजा है। इस राज्य में इतनी तीव्रता का भूकंप भले 18 सितंबर को पहली बार आया, भूविज्ञानिकों ने इसकी चेतावनी कोई 10 साल पहले ही दे दी थी।प्रोफेसर रोजर बिलहाम, विनोद के. गौड़ और पीटर मोलनार नामक भूविज्ञानिकों ने वर्ष 2001 में ‘जर्नल साइंस’ में ‘हिमालय सेशमिक हाजार्ड’ शीर्षक अपने शोधपत्र में कहा था कि इस बात के एकाधिक संकेत मिले हैं कि हिमालय के इस इलाके में एक बड़ा भूकंप कभी भी आ सकता है। उससे लाखों लोगों का जीवन खतरे में पड़ सकता है। उन्होंने कहा था कि हिमालय के छह क्षेत्रों में रिक्टर स्केल पर आठ या उससे ज्यादा के भूकंप आने का अंदेशा है।

दार्जिलिंग-सिक्किम रेंज भी इनमें शामिल है। इस बात का प्रबल अंदेशा है कि हिमालय के जिन इलाकों में बीते
बाढ़ की बिरुदावली
Posted on 03 Oct, 2011 09:47 AM

जिस बाढ़ ने इलाके की अर्थव्यवस्था को पलीता लगा दिया हो उसकी भरपाई डेढ़ करोड़ देकर पूरी नहीं की

कहीं सूखा कहीं सैलाब, वाह रे आब
Posted on 22 Sep, 2011 09:55 AM देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं जो साफ पेयजल से महरूम हैं कहीं सूखे की वजह से भुखमरी की नौबत है तो कहीं सैलाब से कोहराम मचा है। पानी की कमी नहीं है लेकिन खराब जल प्रबंधन की वजह से मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं। सरकार हवाई योजनाएं बनाकर चुप बैठी है। निरंतर बढ़ते जलसंकट की पड़ताल कर रहे हैं शेखर।

जल-दोहन इसी तरह से जारी रहा तो आने वाले समय में भारत को अनाज और पानी के संकट को झेलने के लिए अभी से तैयार हो जाना चाहिए। जाहिर है कि जब जल संकट बढ़ेगा तो खेती पर इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा। अनाजों के उत्पादन में कमी आएगी। इस वजह से अनाज संकट पैदा होगा और भूख का एक नया चेहरा उभरकर सामने आएगा। एक बड़ा तबका जो आज भरपेट भोजन कर पाता है उसके लिए पेट भर खाना मिलना मुश्किल हो जाएगा। भुखमरी की जो समस्या पैदा होगी उससे फिर निपटना आसान नहीं होगा।

क्या धरती पर पानी के बिना जिंदगानी संभव है? अगर नहीं, तो पानी की इतनी बड़ी बर्बादी क्यों हो रही है। भारत में जलसंकट लगातार दस्तक दे रहा है और सरकार की तंद्रा टूट नहीं रही है। भारत में बारिश का अस्सी फीसद पानी बर्बाद हो जाता है। आलम यह है कि कुछ इलाके तो सैलाब से घिरे रहते हैं और कुछ सूखे से। जनजीवन की हानि दोनों ही स्थितियों में होती है। ऐसे में यह सवाल लगातार उठ रहा है कि देश के जल प्रबंधन को लेकर क्या और कैसे किया जाए। फिर देश के कई हिस्सों में सूखे ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। और कई इलाके बाढ़ से तबाह हैं। कई इलाके ऐसे हैं जहां कम बारिश हुई है। इस वजह से वहां खेती बुरी तरह प्रभावित हुई है। 1991 से शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण के बाद भी कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए काफी अहम है।
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