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सूखा और बाढ़
कोसी: पुरानी कहानी, नया पाठ
Posted on 24 Aug, 2012 12:11 PMभारत यायावर द्वारा संपादित फणीश्वरनाथ रेणु के चुनिंदा रिपोर्ताज रचनाओं के संग्रह से ‘पुरानी कहानी : नया पाठ’ रिपोर्ताज लिया गया है। रेणु रिपोर्ताज के काफी बड़े आयाम में बाढ़ फैला हुआ है। बाढ़ उनके जेहन में ऐसे फैला हुआ था कि रेणु घंटों-घंटों संस्मरण सुनाते रह सकते थे। ‘पुरानी कहानी : नया पाठ’ में रेणु ने कोसी की बाढ़ कथा को रिपोर्ताज के रूप में प्रस्तुत किया है।
बंगाल की खाड़ी में डिप्रेशन–तूफान–उठा!हिमालय की किसी चोटी का बर्फ पिघला और तराई के घनघोर जंगलों के ऊपर काले-काले बादल मंडराने लगे। दिशाएं सांस रोके मौन-स्तब्ध!
कारी-कोसी के कछार पर चरते हुए पशु-गाय, बैल, भैंस-नदी में पानी पीते समय कुछ सूंघकर भड़के, आंतकित हुए। एक बूढ़ी गाय पूंछ उठाकर आर्त-नाद करती हुई भागी। बूढ़े चरवाहे ने नदी के जल को गौर से देखा। चुल्लू में लिया-कनकन ठंडा! सूवा-सचमुच, गेरुआ पानी!
गेरुआ पानी अर्थात पहाड़ का पानी-बाढ़ का पानी?
जवान चरवाहों ने उसकी बात को हंसी में उड़ा दिया। किंतु जानवरों की देह की कंपकंपी बढ़ती गयी। वे झुंड बांधकर कगार पर खड़े नदी की ओर देखते और भड़कते। फिर धरती पर मुँह नहीं रोपा किसी बछड़े ने भी।
डायन कोसी
Posted on 23 Aug, 2012 11:08 AMफणीश्वरनाथ रेणु मुंशी प्रेमचंद के बाद के काल के सबसे प्रमुख रचनाकार हैं। मैला आंचल, परति परिकथा सहित कई उपन्यासों के रचनाकार रेणु रिपोर्ताज भी लिखते थे। उनके प्रसिद्ध रिपोर्ताज में बाढ़ पर ‘जै गंगे’ (1947), ‘डायन कोसी’ (1948), ‘अकाल पर हड्डियों का पुल’ तथा ‘हिल रहा हिमालय’ आदि प्रमुख हैं। ‘डायन कोसी’ इनमें सर्वाधिक चर्चित माना गया है। इसका कई भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है। लगभग 65 साल पहले लिखा गया रेणु का ‘डायन कोसी’ रिपोर्ताज बाढ़ और कोसी के कई अनसुलझे पहलुओं को समझने में मदद करता है।
हिमालय की किसी चोटी की बर्फ पिघली या किसी तराई में घनघोर वर्षा हुई और कोसी की निर्मल धारा में गंदले पानी की हल्की रेखा छा गई।
बांधों से आई बाढ़ की आफत
Posted on 17 Aug, 2012 12:31 PMआजकल बाढ़ प्राकृतिक होने की बजाय मानव निर्मित ज्यादा दिखाई देने लगी है। बाढ़ से बचने के लिए हमें नदियों के जल-भर
न बरखा, न खेती
Posted on 10 Aug, 2012 10:45 AMभारत एक कृषि प्रधान देश है और यहां की 70 प्रतिशत जनता कृषि से जुड़ी हुई है। भारतीय कृषि मानसून आधारित कृषि है। कृषि के लिए पानी की कोई भी व्यवस्था कर ली जाए लेकिन आसमान से वर्षा के रूप में ही पानी हमें मिलता है। इस बार कमजोर मानसून की वजह से सारी भविष्यवाणियां धरी की धरी रह गई हैं और देश में खतरे की घंटी बजनी शुरू हो गई है। जहां एक तरफ लोग गर्मी से बेहाल हुए हैं वहीं दूसरी ओर बारिश कम होने से फडरना सूखे के जिक्र से
Posted on 09 Aug, 2012 03:35 PMजीडीपी में 14 फीसद का योगदान करनेवाले कृषि क्षेत्र की सरकार को कोई खास परवाह नहींसूखे के कगार पर खेत-खलिहान
Posted on 08 Aug, 2012 12:08 PMदेश को हासिल होने वाली कुल सालाना बरसात में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की हिस्सेदारी लगभग 75 फीसद तक होती है। दूसरी ओर, भारत के कुल सालाना कृषि उत्पादन में खरीफ की फसलों का योगदान 53 फीसद होता है। ऐसे में जाहिर है कि अगर यह मानसून डगमगाता है तो देश की नाजुक खाद्य टोकरी में हलचल शुरू हो जाती है। देश के 83 फीसद क्षेत्र पर सामान्य से कम वर्षा हुई है। मोटे तौर पर हालात सूखे जैसे बन रहे हैं।अकाल की आहट
Posted on 07 Aug, 2012 12:34 PMमानसून और भारतीय कृषि का संबंध पारंपरिक है। पर हर बार होता यही है कि हमारी खेती और किसानी से जुड़ी पूरी अर्थव्यवस्था मानसून की मेहरबानी की मोहताज रहती है। जलवायु चक्र में बदलाव और देश की अर्थव्यवस्था के साथ जीवनशैली में आए पिछले कुछ दशकों के परिवर्तन ने इस मोहताजी के आगे के संकट भी सतह पर ला दिए हैं। यही कारण है कि मानसून की लेट-लतीफी से पैदा हुई समस्याओं और आशंकाओं ने प्रकृति के साथ हमारे स
सूखे और बाढ़ की दोहरी मार, ये है बिहार
Posted on 03 Aug, 2012 10:02 AMकोसी, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कमला बलान, महानंदा और अघवारा नदी समूह की अधिकांश नदियां नेपाल से निकलती हैं। इन
कृषि जागरूकता की अधूरी पहल
Posted on 01 Aug, 2012 05:19 PMराज्य सरकारें भी कृषि को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाओं की घोषणा करती रही है। परंतु यह योजनाएं जो एक पहल के
कमजोर मानसून ने बढ़ाई सरकार की चिंता
Posted on 01 Aug, 2012 05:00 PMउत्तराखंड में कमजोर मानसून के चलते सूखे की ओर इशारा कर रहा है। राज्य सरकार ने जिलों से फसलों का ब्यौरा मांगा है।