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सूखा और बाढ़
बुंदेलखंड की स्थिति
Posted on 06 Apr, 2013 11:33 AMगौरवशाली ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के लिए विख्यात बुंदेलखंड प्राकृतिक संसाधनों से भी प्रचुर रहा है परंतु मानवीय हस्तक्षेपों के कारण सामान्य समस्याएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।सूखे बुंदेलखंड में नहीं मिलेगा पानी
Posted on 19 Mar, 2013 11:34 AMइंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटिरियोरोलॉजी इंस्टीट्यूट का अध्ययन कहता है कि वर्ष 2100 तक बुंदेलखंड अंचल में श
गोचर का प्रसाद बांटता लापोड़िया-भाग 1
Posted on 14 Nov, 2012 09:23 AMअनुपम जी द्वारा लिखी ‘गोचर का प्रसाद बांटता लापोड़िया’ पुस्तिका की मूल प्रति यहां पीडीएफ के रूप में संलग्न है। पूरी किताब पढ़ने के लिए इसे डाउनलोड कर सकते हैं।
जयपुर अजमेर रोड पर स्थित एक छोटा से गांव लापोड़िया ने तालाबों के साथ-साथ अपना गोचर भी बचाया और इन दोनों ने मिलकर यानि तालाब और गोचर ने लापोड़िया को बचा लिया। आज गांव की प्यास बुझ चुकी है। छः-छः साल के अकाल के बाद भी लापोड़िया की संतुष्ट धरती में हर तरफ हरियाली होती है।
तबाही के निशान
Posted on 08 Nov, 2012 03:20 PM बिहार हर साल बाढ़ का दंश झेलता है लेकिन स्थिति फिर भी जस की तस बनी हुई है। आबादी बेहाल है। बाढ़ की प्रलंयकारी लीला में हर साल एक लाख घर बह जाते हैं। बिहार में बाढ़ ने पिछले 31 सालों में 69 लाख घरों को क्षति पहुंचाया है। हाल में केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने बाढ़ का आकलन करने के लिए विशेषज्ञों की एक कमेटी बनाई थी लेकिन उसमें बिहार को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया जबकि देश के कुल बाढ़ग्रस्त इलाकों का 17 फीसदी हिस्सा बिहार में पड़ता है।बिहार ने बाढ़ की एक और विभीषिका झेल ली। बाढ़ का पानी लौट चुका है और तबाही के निशान शेष रह गए हैं। ठेकेदारों और अफसरों की कमाऊ जमात ने एक बार फिर बाढ़ राहत के नाम करोड़ों के वारे-न्यारे किए और अगली बाढ़ से सुरक्षा के नाम पर तैयारियां शुरू हो गई हैं। यह हर साल का किस्सा है जो एक बार फिर दोहराया जा रहा है। बाढ़ की मार झेल चुके लोग ध्वस्त हो चुके मकानों को किसी तरह खड़ा करने में जुटे हैं और सरकार तबाही के लिए नेपाल को कोस रही है। इस राष्ट्रीय आपदा का स्थायी समाधान सिर्फ चर्चाओं तक सीमित रहा है। नदियों किनारे बसे लोगों के लिए तबाही उनकी नियति बन चुकी है। चार साल पहले कोसी ने कहर ढाया था तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी उसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किया था लेकिन राहत और पुनर्वास के प्रयास नहीं के बराबर हुए। कोसी क्षेत्र के हजारों एकड़ उपजाऊ खेतों में अभी तक बालू के ढेर पड़े हैं। इन खेतों में अब फसल नहीं होती। आपदा में क्षतिग्रस्त लाखों घर पुनर्निर्माण की राह देख रहे हैं।बदस्तूर जारी बाढ़ से बर्बादी
Posted on 29 Sep, 2012 04:58 PMसरकारी आंकड़ों के मुताबिक, कोसी त्रासदी में 2,36,632 घर ध्वस्त हुए लेकिन सरकार पुनर्वास की उचित व्यवस्था नहीं कर
खेत खलिहानों में सूखे के संकेत ने देश भर में बढ़ाई चिंता
Posted on 27 Sep, 2012 12:58 PMखेत खलिहानों में सूखे के संकेत किसानों की पेशानी पर चिंता की लकीरों के रूप में दिखने लगे हैं। देश के उत्तरी, पश्चिमी हिस्सों व कर्नाटक सूखे जैसे हालात की आहट सुन रहा है और किसान व पशुपालक संकट में आने लगे हैं। अनेक भागों में पेयजल का संकट खड़ा हो रहा है जबकि फल, सब्जी, दाल व चीनी के दाम बढ़ने लगे हैं। चारे की कमी ने पशुपालकों की दिक्कते बढ़ा दी हैं। देश भर से मिली जानकारी के मुताबिक पंजाब, हरियाणाहमारी स्कूली शिक्षा का हिस्सा बने आपदा प्रबंधन
Posted on 05 Sep, 2012 03:59 PMआपदा ज्यादातर मानवीय ही होती है। भूकंप, बाढ़ और अतिवृष्टि जैसी परिस्थितियों में प्राथमिक विद्यालय ही आश्रय बनते हैं। दूसरा बड़ा आश्रय पंचायत भवन होता है। ये दोनों ही आशिंक रूप से आश्रय के केंद्र होते हैं। ऐसी परिस्थिति में इनसे जुड़े कर्मचारी स्वतः ही स्वयंसेवक हो जाते हैं। जरूरी है कि हम अपने प्राथमिक स्कूलों के अध्यापक और पंचायत कर्मियों को आपदा प्रबंधन के गुर सिखाएं। साथ ही आपदा प्रबंधन हमारधारा से ध्वस्त होती नागरिकता
Posted on 30 Aug, 2012 12:04 PMमालदा के पंचानंदपुर और मुर्शिदाबाद के धुलियान कस्बों को कभी विकसित इलाका माना जाता था। लेकिन अब उनका अस्तित्व ही नहीं है। मालदा में 1980 से अब तक 4816 एकड़ जमीन नदी में समा चुकी है। मालदा जिले से 40 हजार परिवार विस्थापित हो चुके हैं। 1995 के बाद से 26 गांव पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं। इन गांवों में स्थित 100 प्राइमरी स्कूलों और 15 हाईस्कूलों का अब कहीं पता नहीं।
नाम: मंजूर आलम। उम्रः 52 साल। पताः खटियाखाना चक (द्वीप), हमीदपुर। कहने को तो यह हमीदपुर पश्चिम बंगाल मालदा जिले में पड़ना चाहिए। लेकिन बीच गंगा में नदी के इस द्वीप का पता कुछ भी नहीं है। मंजूर आलम ने 1979 में इस द्वीप के जिस छोर पर अपना घर बनाया था, वह जगह अब 15 किलोमीटर दूर निकल गई है। अब तक चार बार विस्थापित होकर नया आशियाना जोड़ते-जोड़ते अपना पता भी खो बैठा है मंजूर आलम। मालदा जिले में कालियाचक थ्री ब्लॉक के हमीदपुर ग्राम पंचायत इलाके में मंजूर आलम जैसे लगभग दो लाख लोगों में से लगभग हरेक की दास्तान है- जाएं तो कहां जाएं। नौ साल पहले तक ये सभी लोग पश्चिम बंगाल के नागरिक थे। लेकिन गंगा नदी में कटान के चलते उनका मूल गांव कटकर झारखंड की सीमा से जा लगा था।