मनोहर अरोरा

मनोहर अरोरा
हिमालय बेसिन में हिमाच्छादित क्षेत्र के अपक्षय से वायुताप का संबंध
Posted on 30 Mar, 2012 03:25 PM माध्य वायु ताप के प्रयोग से हिमाच्छादित क्षेत्र (एस.सी.ए) के अपक्षय के मूल्यांकन के लिए एक प्रणाली की रूपरेखा तैयार की गई तथा इसका परीक्षण किया गया। चूँकि हिम का अपक्षय हिमाच्छादित क्षेत्र तथा उसके आसपास की जलवायु की दशाओं का एक संचयी प्रभाव होता है, अतः एक निकटवर्ती स्टेशन के संचयी माध्य ताप (सी.टी.एम) को एस.सी.ए के अपक्षय को दर्शाना चाहिए। पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में अवस्थित सतलुज बेसिन (22,305 व
हिमनदीय बेसिन से आने वाले जल प्रवाह पर ऋतु परिवर्तन के प्रभाव
Posted on 30 Mar, 2012 03:15 PM वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों के निरंतर बढ़ती मात्रा के परिणाम स्वरूप पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हो रही है। हिमनदों के द्रव्यमान, आयतन, क्षेत्रफल व लम्बाई में होने वाली कमी को स्पष्ट तौर पर निरंतर गर्म होती ऋतु का संकेतक माना जा सकता है। हिमनदों से आने वाला जल प्रवाह स्थानीय जल संसाधनों में महत्वपूर्ण योगदान करता है। इस प्रपत्र में गढ़वाल हिमालय में स्थित डोकरयानी हिमनद से अलग-अलग ऋतु परिवर्तन परि
जल सस्य-कर्तन तथा प्रबंधन- एक वस्तुस्थिति अध्ययन
Posted on 01 Feb, 2012 01:56 PM भारत में ज्यादातर कृषि-भूमि वर्षा पर निर्भर करती है। यह वर्षा मानसून के महीनों में ही प्राप्त होती है। यदि इस मौसम में प्राप्त अत्यधिक जल का संरक्षण तथा नियंत्रण किया जा सके तो क्षेत्र की कई समस्यायें जैसे कि तलछट हानि, सूक्ष्म जलवायु आदि के सुधार में लाभकारी सिद्ध होगा। इस प्रपत्र में पंजाब के होशियारपुर जिले में बलोवल सोंखरी क्षेत्र के लिये सस्य कर्तन संरचना की योजना का वस्तुस्थिति अध्ययन किया ग
एल-मोमेन्ट्स एवं पारम्परिक तकनीकों द्वारा विभिन्न प्रत्यागमन काल के लिए आंकलित बाढ़ की तुलना
Posted on 29 Dec, 2011 11:37 PM विभिन्न प्रकार की जल संसाधन परियोजनाओं/जलविज्ञानीय संरचनाओं जैसे कि बाँध, स्पिलवे, सड़क एवं रेलवे पुल, पुलिया, शहरी निकासी तन्त्र तथा विभिन्न संरचनात्मक उपायों जैसे कि बाढ़ क्षेत्र का निर्धारण, बाढ़ सुरक्षा परियोजनाओं का आर्थिक मूल्यांकन इत्यादि के लिए बाढ़ परिमाण एवं उनकी आवृत्ति सम्बन्धित सूचना की आवश्यकता होती है। सत्रहवीं शताब्दी में वैज्ञानिक जलविज्ञान की शुरूआत के समय से ही वैज्ञानिकों एवं अ
गंगोत्री हिमनद के गलित अपवाह के विलम्बित अभिलक्षण
Posted on 22 Dec, 2011 11:17 AM हिमालय के अधिकांश बेसिनों के काफी क्षेत्रों में हिम एवं हिमनदों से आच्छादित क्षेत्र होता है। इनसे निकलने वाली नदियों में, मौसम के अनुसार, मई के महीने में हिमनदों के पिघलने से अपवाह का प्रारम्भ होता है। हिमनदों से गलित अपवाह उस समय अपवाह को बढ़ाता है जब नदियों में अपवाह कम होता है इस प्रकार यह जल उपलब्धता में आने वाली कमी की पूर्ति करता है। हिमनद से पिघलता हुआ पानी पिघलने के कुछ अन्तराल बाद हिमनद क
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