सिंचाई खुद के बनाए तालाब से पीने के लिए हैं कुएं और हैंडपंप

पानी बचाने के लिए इस तरह के छोटे तालाब बना लिए हैं बरलाई के लोगों ने
हर व्यक्ति को हर रोज 145 लीटर पानी चाहिए। खेती के लिए और भी ज्यादा पानी चाहिए। अभी मिल भी रहा है। लेकिन कब तक? क्योंकि जमीन का पानी धीरे-धीरे सूख रहा है। बरसात के दिन घट रहे हैं। संकेत साफ है। अगर आज से ही पानी बचाना शुरु करेंगे तो निश्चित ही कल सूखा नहीं रहेगा। दैनिक भास्कर अपने पाठकों के जरिए जल सत्याग्रह अभियान में जुटा है ऐसे जल सैनिकों के जज्बे और जुनून को आगे बढ़ाने में। विश्व जल दिवस के मौके पर आइए मिलते हैं इनसे। खेती के तौर तरीके हों या रोजमर्रा के काम। कैसे छोटी-छोटी आदतों में बदलाव लाकर अपने क्षेत्रों को जल संकट से उबार सकते हैं, पढ़िए कुछ ग्राउंड रिपोर्ट.. एक किसान ने किया जल संकट से निबटने का प्रयास और उसकी सफलता पूरे गांव के लिए बन गई प्रेरणा। कभी बूंद-बूंद पानी के लिए तरसने वाले बरलाई के लोगों ने अपने स्तर पर तालाबों को विकसित किया और जल संकट को खत्म कर दिया। अब यहां फसलें लहलहा रही हैं। मनासा तहसील मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर स्थित बरलाई में गंभीर जल संकट था। 1992 में गांव के मोहनलाल पाटीदार ने बारिश का पानी रोकने के लिए 1 एकड़ में तालाब बनाया और इसी पानी से बेहतर फसलें प्राप्त की। उनकी सफलता देख गांव में तालाब बनाने की होड़ मच गई। देखते ही देखते गांव में करीब 250 तालाब बनाए गए। इससे जल संकट से गुजर रहे गांव की सूरत ही बदल गई।

गांव के ही विष्णु पाटीदार बताते हैं 15 हैक्टेयर जमीन पर आठ लाख की लागत से तीन तालाब बनाए गए। उन्हें 30 हजार फीट पाइप लाइन डालकर कुएं से जोड़ दिया। इसके अलावा अनेक किसानों ने सरकार की खेत-तालाब योजना से भी तालाब खुदवाए हैं। तालाबों का कैचमेंट एरिया इतना अच्छा है कि बारिश का 80 फीसदी पानी रोका जा रहा है। जिससे एक हजार एकड़ से अधिक भूमि की सिंचाई हो रही है। साथ ही हैंड पंप, ट्यूबवैल और कुओं में भी पर्याप्त पानी रहने लगा है। अब लोगों ने अपनी आदतों में बदलाव कर लिया है। वे सिंचाई के लिए पानी तालाब से ही ले रहे हैं। अन्य स्रोतों का उपयोग पीने के पानी के लिए हो रहा है।

आसपास के गांवों ने ली प्रेरणा


• बरलाई के ग्रामीणों से प्रेरणा लेकर आसपास के गांवों ने तालाब खुदवाए हैं।
• देवरान के सरपंच प्रहलाद पाटीदार ने बताया देवरान, पालड़ा, भमेसर, सिंघाड़िया पिपल्या, हतुनिया, भगोरी, बासनिया, तलाऊ, राजपुरा, कराड़िया सहित कई गांवों में भी तालाब खुदवाए गए हैं। हर गांव में लगभग 50 से 60 तालाब बनवाए गए हैं।
• तीन हजार की आबादी वाले इसगांव में अब भू-जल स्तर भी बढ़ गया है।
• पानी बचाने के साथ खेती के नए तरीके भी अपनाए जा रहे हैं जिससे पानी की खपत कम हो और पैदावार अच्छी मिल सके।

खेती के लिए भूजल स्रोतों पर निर्भरता खत्म की और तालाब में इकट्ठे किए गए बरसाती पानी से ही फसलें उगा रहे हैं।

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