राजदेव सिंह

राजदेव सिंह
हिमनदीय बेसिन से आने वाले जल प्रवाह पर ऋतु परिवर्तन के प्रभाव
Posted on 30 Mar, 2012 03:15 PM वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों के निरंतर बढ़ती मात्रा के परिणाम स्वरूप पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हो रही है। हिमनदों के द्रव्यमान, आयतन, क्षेत्रफल व लम्बाई में होने वाली कमी को स्पष्ट तौर पर निरंतर गर्म होती ऋतु का संकेतक माना जा सकता है। हिमनदों से आने वाला जल प्रवाह स्थानीय जल संसाधनों में महत्वपूर्ण योगदान करता है। इस प्रपत्र में गढ़वाल हिमालय में स्थित डोकरयानी हिमनद से अलग-अलग ऋतु परिवर्तन परि
जलवायु परिवर्तन और जल संसाधन पर इसका प्रभाव : एक विवेचन
Posted on 19 Jan, 2012 04:59 PM तीव्र औद्योगिकीकरण और शहरीकरण की वजह से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य गैसें, जो वातावरण में तो नगण्य मात्रा में हैं, परन्तु विकिरण की दृष्टि से काफी सक्रिय हैं, दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही चली जा रही है। इन गैसों के सांद्रण की वृद्धि पर समुचित नियंत्रण न रखा गया तो इसकी वजह से वायुमंडल की रचना में क्रमिक परिवर्तन होगा, जो पूरे विश्व के जलवायु और जल चक्र को प्रभावित कर सकता है। फलस्वरूप, जल संसा
नेश निदर्शन प्राचलों का भू-आकारिकी द्वारा निर्धारण
Posted on 05 Jan, 2012 04:09 PM दो प्राचल नेश निदर्शन अक्सर उपयोग में आने वाला एक तात्कालिक एकक जलालेख है। इस निदर्शन के प्रयोग के लिए इसके प्राचलों का निर्धारण आवश्यक होता है जिन्हें अक्सर पूर्व में मापे गए वर्षा-बहाव के आंकड़ों से ज्ञात किया जाता है। परन्तु जब आंकड़ें पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होते तब इन प्राचलों को जलग्रहण क्षेत्र के माप सकने वाले भू-आकारिकी स्थिरांकों से संबंधित करके निकाला जा सकता है। इस अध्ययन में को
कृष्णा एवं पेनार प्रवहण क्षेत्रों (उप क्षेत्र-3 एच) के लिए बाढ़ आंकलन के सूत्र का विकास
Posted on 04 Jan, 2012 03:03 PM बाढ़ आंकलन की आधुनिक तकनीकों के विकसित हो जाने के उपरान्त भी उन क्षेत्रों के लिए जहां विस्तृत मात्रा में आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, अभियन्ताओं द्वारा विशेष रूप से लघु तथा मध्यम संरचनाओं के अभिकल्पन के लिए अनुभविक सूत्रों का प्रयोग किया जाता है। यद्यपि अधिकतर अनुभविक सूत्र जैसे की डिकेन का सूत्र, रीव का सूत्र, लिली का सूत्र आदि विभिन्न प्रत्यागमन काल की बाढ़ का आंकलन करने में सक्षम नहीं है।
मारकोडारट प्रमेय पर आधारित ‘नैश-माडल’ द्वारा एकक जलालेख का निर्धारण
Posted on 04 Jan, 2012 02:57 PM जल संसाधनों की विभिन्न योजनाएं बनाने, उनका अभिकल्प और उचित उपयोग के लिए बाढ़ का ठीक-ठीक ज्ञात होना बहुत आवश्यक है इसके लिए एकक जलालेख सिद्धांत एक बहुत प्रचलित तकनीक है। इस तकनीक में बाढ़ जलालेख की गणना की जाती है। प्रमापी आवाह क्षेत्र के लिए एकक जलालेख की गणना करने की अनेक विधियाँ है, जिन्हें दो भागों में विभाजित किया जाता है।
जल के क्षेत्र में नवीनतम तकनीकों का प्रयोग
Posted on 28 Dec, 2011 04:20 PM

पृथ्वी पर जीवन की मुख्य आवश्यकताओं में जल का स्थान प्रमुख है। विभिन्न प्रतिस्पर्धात्मक क्षेत्रों जैसे-शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, जनसंख्या वृद्धि, एवं मानव के रहन-सहन स्तर में परिवर्तन के कारण जल की मांग में निरंतर होने वाली वृद्धि से स्वच्छ जल स्रोतों की गुणवत्ता एवं जल उपलब्धता में निरंतर कमी हो रही है। इसके अतिरिक्त सामयिक एवं कालिक आधार पर देश में वर्षा की अत्यधिक परिवर्तनीयता के कारण विभिन्न
वड़ोदरा शहर के भूजल में पेस्टीसाइड प्रदूषण की समस्या
Posted on 27 Dec, 2011 03:49 PM जल में बढ़ते प्रदूषण का मुख्य कारण जनसंख्या में निरंतर वृद्धि से बढ़ता शहरीकरण, औद्योगिकरण तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए ज्यादा से ज्यादा उर्वरकों एवं कीटनाशकों (पेस्टीसाइड्स) का प्रयोग है। गुजरात प्रदेश के वड़ोदरा शहर के भूजल के नमूने पूर्व मानसून तथा पश्च मानसून अवधि में 2008-09 तथा 2009-10 में एकत्रित किए गए तथा इन नमूनों का भौतिक रासायनिक प्राचालों के मानों तथा पेस्टीसाइड्स की मात्रा का भ
सिंचाई जल उपयोग की दक्षता बढ़ाने के लिए मृदा नमी आंकलन की तकनीक
Posted on 24 Dec, 2011 04:15 PM भारत के सिंचित कृषि क्षेत्र में पानी का बेहतर उपयोग न होना एक चिन्ता का विषय है। अन्य क्षेत्रों में पानी की बराबर बढ़ती माँग के कारण सन् 2025 तक सिंचाई क्षेत्र में पानी की वर्तमान हिस्सेदारी 84% से घटकर 74% तक होने का अनुमान है। इसलिए सिंचाई जल उपयोग की दक्षता के वर्तमान स्तर में सुधार लाना सिंचाई के निर्धारण में उपयोग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मृदा नमी की माप और उसका सिंचाई के निर्धारण म
विभिन्न प्रकार की मृदाओं की विशिष्ट जल धारण क्षमता
मृदाओं में अन्तःस्यन्दन दरों का मापन
Posted on 22 Dec, 2011 10:31 AM जलविज्ञानीय अध्ययनों के लिए विभिन्न प्रकार की मृदाओं एवं भूमि उपयोगों की स्थिति में अन्तःस्यन्दन ज्ञान जरूरी है। अन्तःस्यन्दन दर मृदा में जल के प्रवेश कर सकने की अधिकतम दर को निर्धारित करती है। अन्तःस्यन्दन दर प्रारंभ में बहुत तेजी से कम होती है फिर कुछ समय के पश्चात यह एक स्थिर दर पर पहुंच जाती है। यह दर पूर्वगामी मृदा नमी एवं प्रपुण्ज घनत्व में परिर्वतन से
×