जल शुद्धिकरण प्रोजेक्ट | Water Purification Techniques in Hindi

रिवर्स ऑसमोसिस
रिवर्स ऑसमोसिस


दिन-प्रतिदिन बढ़ते औद्योगीकरण तथा अधिक कृषि उत्पादन के लिए अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के प्रयोग से जल प्रदूषित होता जा रहा है। आज प्रत्येक व्यक्ति पेयजल की जलगुणवत्ता के प्रति सजग हो गया है। प्रस्तुत अध्ययन में जल शुद्धिकरण हेतु उपलब्ध विभिन्न तकनीकों एवं बाजार में उपलब्ध वाटर प्योरिफायर खरीदने से पहले विभिन्न जानकारियों पर भी प्रकाश डाला गया है तथा विभिन्न वाटर प्योरिफायर की क्षमता के बारे में भी जानकारी दी गई है।

साफ पेयजल की पर्याप्त जलापूर्ति मानव जीवन की प्राथमिक आवश्यकता है। आज भी विश्व में लाखों लोग इससे वंचित है। नदियों, झीलों तथा तालाबों का जल प्राकृतिक, मानवीय तथा अन्य प्रकार के अपशिष्टों से प्रदूषित हो गया है। दिन-प्रतिदिन बढ़ते औद्योगीकरण तथा अधिक कृषि उत्पादन के लिए रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के प्रयोग से भी जल प्रदूषित होता जा रहा है।

जल शुद्धिकरण हेतु उपलब्ध आधुनिक तकनीकें (Advanced techniques available for water purification)

 

 

सारांश:

दिन-प्रतिदिन बढ़ते औद्योगीकरण तथा अधिक कृषि उत्पादन के लिये अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के प्रयोग से जल प्रदूषित होता जा रहा है। आज प्रत्येक व्यक्ति पेयजल की जल गुणवत्ता के प्रति सजग हो गया है। प्रस्तुत अध्ययन में जल शुद्धिकरण हेतु उपलब्ध विभिन्न तकनीकों एवं बाजार में उपलब्ध वाटर प्युरीफायर खरीदने से पहले विभिन्न जानकारियों पर भी प्रकाश डाला गया है तथा इनकी क्षमता के बारे में भी जानकारी दी गई है।

 

Abstract


Water is getting polluted due to increase in industrialization and indiscriminate use of more and more fertilizers and pesticides to increase agricultural yield. Nowadays, everybody is aware about the quality of drinking water. In the present study, various techniques available for water purification have been discussed as such one should have optimum knowledge about different water purifiers available in the market before buying a water purifier. Capabilities of the purifiers have also been discussed in this paper.

प्रस्तावना


साफ पेयजल की पर्याप्त जलापूर्ति मानव जीवन की प्राथमिक आवश्यकता है। आज भी विश्व में लाखों लोग इससे वंचित हैं। नदियों, झीलों तथा तालाबों का जल प्राकृतिक, मानवीय तथा अन्य प्रकार के अपशिष्टों से प्रदूषित हो गया है। दिन-प्रतिदिन बढ़ते औद्योगीकरण तथा अधिक कृषि उत्पादन के लिये रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के प्रयोग से भी जल प्रदूषित होता जा रहा है। विश्वभर में ताजे एवं शुद्ध जल के स्रोतों को केवल अत्यधिक दोहन तथा निम्न स्तर के प्रबंधन से ही खतरा नहीं है। अपितु पारिस्थतिक तंत्र के गिरते स्तर से बहुत अधिक खतरा है। जल प्रदूषण के प्रमुख कारणों में, अनुपचारित अपशिष्ट का निस्सरण औद्योगिक इकाइयों से अनुपचारित निस्सरण, कृषि क्षेत्रों से बहिःस्राव कृत्रिम जैविक पदार्थ के प्रयोग में वृद्धि सम्मिलित हैं। ऐसी परिस्थिति में जल के शुद्धिकरण हेतु सस्ती एवं टिकाऊ तकनीक की आवश्यकता है।

 

 

जल के शुद्धिकरण हेतु उपलब्ध तकनीकें

आज बाजार में जल के शुद्धिकरण हेतु विभिन्न तकनीकें उपलब्ध हैं, परंतु एक आम नागरिक को इस बात की जानकारी नहीं है कि कौन सी तकनीक किस प्रकार की अशुद्धि को दूर करने में सक्षम है। प्रत्येक तकनीक जल शुद्धिकरण में एक विशेष महत्व रखती है। जल के शुद्धिकरण हेतु कुछ प्रचलित तकनीकों का वर्णन निम्नलिखित है:

 

 

फिल्ट्रेशन

फिल्ट्रेशन जल शुद्धिकरण में सबसे सामान्य प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में निलम्बित ठोस बड़े माइक्रोऑर्गेनिज्म पेपर तथा कपड़े के बारीक-बारीक टुकड़े धूल के कण इत्यादि को जल से अलग किया जाता है। घरेलू स्तर पर इन फिल्टरों में विशेष पदार्थ की झिल्ली या कार्टरिज का प्रयोग किया जाता है। तथा इसे बंद तंत्र में स्थापित किया जाता है। बाजार में विभिन्न साइजों के फिल्टर उपलब्ध हैं, ये हैं : माइक्रोफिल्टर तथा अल्ट्राफिल्टर (मेम्ब्रेन)। माइक्रोफिल्टर 0.04 से 1.0 माइक्रोमीटर साइज के कणों तथा माइक्रोब्स को जल से अलग करता है तथा कार्टरिज के रूप में उपलब्ध है। इन कार्टरिज की आकृति ट्यूबलर, डिस्क प्लेट, स्पाइरल तथा खोखले फाइबर के रूप में होती है। अल्ट्रा फिल्ट्रेशन में 0.005 से 0.10 माइक्रोऑर्गेनिज्म तथा निलम्बित ठोस को दूर किया जाता है। अल्ट्राफिल्टर मेम्ब्रेन के रूप में होते हैं। इन फिल्टरों को भी ट्यूबलर डिस्क प्लेट स्पाइरल तथा खोखले फाइबर के रूप में स्थापित किया जाता है। किसी भी फिल्टर से फास्फोरस, नाइट्रेट तथा भारी धातुओं के आयनों को जल से अलग नहीं किया जा सकता है। फिल्टर का प्रयोग नगर पालिका/नगर निगम स्तर पर किया जाता है।

 

 

रिवर्स ऑसमोसिस


रिवर्स ऑसमोसिस प्रक्रिया का प्रयोग आज सबसे अधिक लोकप्रिय होता जा रहा है। रिवर्स ऑसमोसिस वह प्रक्रिया है जिसमें जल को एक प्रेशर द्वारा एक अर्धपारगम्य झिल्ली से पार कराया जाता है। इस प्रक्रिया की विशेषता यह है कि यह जल में उपस्थित लगभग सभी अकार्बनिक आयनों, गंदलापन तथा बैक्टीरिया एवं पैप्योजन के साथ-साथ पेस्टीसाइड्स तथा भारी धातुओं को भी जल से दूर कर देती है। इस पद्धति में नैनो फिल्टर का प्रयोग किया जाता है। आजकल आर.ओ. फिल्टर सबसे अधिक प्रचलित एवं विकसित फिल्टर के रूप में माना जा रहा है। परंतु यह तकनीक बहुत अधिक खर्चीली है। क्योंकि इस पद्धति में प्रयोग होने वाले फिल्टरों की कीमत साधारण वाटर फिल्टर की अपेक्षा बहुत अधिक होती है। साथ ही साथ इस प्रक्रिया में जल शुद्धिकरण में बहुत अधिक जल का दुरुपयोग होता है।

 

 

नैनो पद्धति


नैनो पद्धति आवधिक सूखे या जहाँ जल संदूषण व्याप्त है, त्रस्त दुनिया के क्षेत्रों के लिये एक सुरक्षित पीने के पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये जवाब हो सकता है। कार्बन नैनोट्यूब जल शोधन प्रणाली में पारंपरिक सामग्री की जगह कैसे ले सकता है, इस विषय पर भारत में भी शोधकर्ताओं के अध्ययन एवं अनुसंधान चल रहे हैं। मुम्बई में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा नई जल शोधन प्रौद्योगिकियों की लगातार जाँच की जा रही हैं। परंतु विकासशील देशों के लिये सरल, सस्ती एवं टिकाऊ तकनीक स्थापित करने की आवश्यकता है जो आर्थिक रूप से भी व्यवहारिक हो। वैज्ञानिकों ने मानव बाल की मोटाई के खरबवें हिस्से से भी कम मोटाई के कार्बन नैनो टयूब, खोखले कार्बन फाइबर विकसित किये हैं। इन कार्बन नैनो ट्यूब की यह विशेषता है कि ये ट्यूब अपने अंदर केवल अति सूक्ष्म अणुओं जैसे जल के अणु को तो पार होने देगी, परंतु वायरस, बैक्टीरिया, विषैली धातुओं के आयनों तथा बड़े कार्बनिक अणुओं को पार नहीं होने देंगी। अनुसंधान दल का कहना है कि इस पद्धति के आधार पर विकसित किया गया फिल्टर सिस्टम अत्यधिक सक्षम होगा तथा जल (बगैर किसी बदबू) उच्च बहाव के साथ से फिल्टर से निकलेगा। सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस तंत्र को चलाने हेतु विद्युत उर्जा की खपत अन्य पारम्परिक मेम्ब्रेन तकनीक को चलाने में खपत उर्जा की अपेक्षाकृत भी कम होगी।

Fig-1

 

 

जल का विसंक्रमण


जल में उपस्थित अवांछनीय बैक्टीरिया विभिन्न प्रकार के रोगों को जन्म देता है जल को असंक्रमित करने हेतु कुछ रसायनों जैसे क्लोरीन डाइऑक्साइड, क्लोरामीन, ओजोन आदि का प्रयोग किया जाता है। परंतु क्लोरीन तथा इसके अन्य यौगिकों के प्रयोग से अन्य पदार्थ ट्राइहैलोमिथेन तथा हैलोएसिटिक एसिड उत्पन्न हो जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिये अत्यधिक हानिकारक होते हैं। ओजोन का प्रयोग बहुत कम किया जाता है। अल्ट्रावॉयलेट लाइट का प्रयोेग असंक्रमण के लिये सबसे अधिक लोकप्रिय है। इस प्रक्रिया में जल में उपस्थित बैक्टीरिया को निष्क्रिय कर दिया जाता है।

Fig-2

जल शोधक


अधिकांशतः पेयजल आपूर्ति का कार्य प्रत्येक शहर में नगरपालिका/नगर निगम द्वारा किया जाता है। परंतु जल शुद्धिकरण के बारे में अल्पज्ञान एवं संसाधनों की कमी के कारण नगरपालिका/नगर निगम अपना दायित्व पूर्ण रूप से नहीं निभा पाते हैं। यह स्थिति पूरे देश में बनी हुई है। यही कारण है कि आज अधिकांश लोग अपने घर में जल शोधक लगाकर शुद्ध जल प्राप्त कर रहे हैं।

आज बाजार में उपलब्ध जल शोधकों में उपरोक्त बतायी गई तकनीकों के प्रयोग के अनुसार कम्पनियाँ बड़ी-बड़ी कीमतें वसूल रही हैं। परंतु आवश्यकता यह जानने की है कि क्या हमें इन सब तकनीकों वाले जल शोधक की जरूरत है। इसके लिये हमें यह ज्ञात होना चाहिए कि हमारे जल में क्या-क्या अशुद्धियाँ विद्यमान हैं। उसी के अनुसार हमें जल शोधक चुनना चाहिए। किसी जल शोधक को प्रयोग में लाने से पहले हमें अपने जल का जलगुणता परीक्षण कराकर यह जानने की आवश्यकता है कि हमारे जल में किस रासायनिक अवयव की अशुद्धि है या अधिकता है। उसी के अनुसार हमें जल गुणता वैज्ञानिक के साथ वार्तालाप के बाद तय करना होगा कि किस प्रकार का जल शोधक लगाने की आवश्यकता है अगर आप के पेयजल में धूल, मिट्टी इत्यादि के सूक्ष्मकण, गंदलापन है, तो आप साधारण वाटर फिल्टर का प्रयोग कर शुद्ध जल प्राप्त कर सकते हैं। यदि आपके जल में उपरोक्त के साथ बैक्टीरिया सूक्ष्म जीवाणु आदि की भी अशुद्धि है तो आप फिल्टर तथा यू.वी. जल शोधक का प्रयोग कर सकते हैं। परंतु यदि आपके जल में भारी धातुएँ जैसे कि कैडमियम, निकिल, आयरन, आर्सेनिक, फ्लोराइड इत्यादि तथा कठोरता है या कीटनाशक (पेस्टीसाइड्स) इत्यादि की अशुद्धियाँ हैं तो आप आर.ओ. फिल्टर का इस्तेमाल कर शुद्ध जल प्राप्त कर सकते हैं।

निष्कर्ष


दिन प्रतिदिन जल गुणवत्ता में गिरावट से आज प्रत्येक व्यक्ति पेयजल की गुणवत्ता के प्रति सजग हो गया है। आज बाजार में विभिन्न कम्पनियाँ उपरोक्त बताई गई तकनीकों के प्रयोग के अनुसार बड़ी-बड़ी कीमतें वसूल रही हैं। आवश्यकता इस बात की है कि एक आम आदमी को यह जानकारी होनी चाहिए कि पीने योग्य पानी में क्या-क्या होना चाहिये तथा कितनी मात्रा में होना चाहिये।

संदर्भ
1. वेबसाइट http://compare india.in.com/products water-purifiers.

2. शर्मा मुकेश कुमार, वाटर प्युरिफायर-तकनीकी लेख, जल चेतना, सितम्बर (2011) 33-36.

3. नैनोट्यूब द्वारा जल शुद्धिकरणः क्या नैनो प्रौद्योगिकी पानी की समस्या का हल है? एक लेख वाटर डाइजेस्ट में वाल्यूम-3, नं. 2 पेज 100.

सम्पर्क


मुकेश कुमार शर्मा, बबीता शर्मा, राकेश गोयल एवं बीना प्रसाद, Mukesh Kumar Sharma, Babita Sharma, Rakesh Goel & Beena Prasad
राष्ट्रीय जलविज्ञान सस्थान, रुड़की 247667, National Institute of Hydrology, Roorkee 247 667 (Uttarakhand)

भारतीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान पत्रिका, 01 जून, 2012


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