Posted on 18 Oct, 2013 03:49 PMकिसी भी दिशा में जाऊँ कोई न कोई नदी और कभी-कभी तो कई नदियाँ रास्ते में मिलती थीं
कितनी ही नदियां थीं जिन्हें मैं उनके पानी के रंग से घाट के पत्थरों से, अगल-बगल के पेड़ों से और उनके नाम से जानता था उनके जन्म लेने की और बाद में जीवन की हजारों कहानियाँ थीं
उनके जीवन में भी हमारी ही तरह दुःख थे पहाड़ों की ओट होकर वे भी कई बार रोती थीं
Posted on 18 Oct, 2013 03:46 PMलोग जो अपनी चिंताओं से छूटने आए थे वहां एक शाम उन सबने कहा पानी बढ़ रहा है नदी अपनी बगल में फैले जंगल जैसी प्रलापों से भरी नींद जैसी नदी में पेड़ों से गिरता अँधेरा बहता था किनारे पर औरतें शोकगीत गाती खड़ी रहीं बूढ़े खाँसते रहे तेज हवा में नौजवानों के चेहरों पर कितनी धूल कितने पैवंद लहूलुहान देहों पर स्याह पानी भरता हुआ उनकी आत्मा के खोखल में
Posted on 18 Oct, 2013 03:44 PMजल्दी से वह पहुँचता चाहती थी उस जगह जहाँ एक आदमी उसके पानी में नहाने जा रहा था एक नाव लोगों का इंतजार कर रही थी और पक्षियों की कतार आ रही थी पानी की खोज में
बचपन की उस नदी में हम अपने चेहरे देखते थे हिलते हुए उसके किनारे थे हमारे घर हमेशा उफनती अपने तटों और पत्थरों को प्यार करती उस नदी से शुरू होते थे दिन उसकी आवाज
Posted on 18 Oct, 2013 03:43 PM(रे-ह्योन हाम के लिए) 1 इस शहर का नाम एक नदी का नाम है शहर का सन्नाटा नदी की आवाज है दिन में शहर के चौराहे, पुल और पार्क चुपचाप पानी में उतरते हैं किताबें, कपड़े, गृहस्थी का सामान और हैमबरगर बेचती दूकानें पानी में स्थिर पड़ी रहती हैं खिलौनों की एक दूकान कुछ देर नदी के तल में सो जाती है
Posted on 18 Oct, 2013 03:42 PMनदी का जाना पता नहीं चला। किनारे के मंदिर में भगवान बस्ती में लोग आकाश में तारे घोंसलें में पक्षी रहे आए जब नदी में नदी नहीं रही रात में रात सन्नाटे में सन्नाटा रहा। सुबह सूरज ने देखा लोगों ने दोनों किनारे एक-दूसरे में जाकर उसे ढूँढ़ते रहे खामोश।