पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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हे सलिले
Posted on 25 Oct, 2013 03:26 PM हे सलिले !
कहाँ सवेग
बही जाती हो
रुको तनिक
क्षण भर तो सोचो
और कहाँ तक
प्रवाहित होंगी

हे तरंगिणी !
नव जीवन
सांसों में
स्पन्दन
पुण्य अमर
अक्षय फल
तुम से ही है

हे सद्नीरे !
क्यों हो विवश
विष वाहक बन
स्वयं घुटन ढो
पग पग पर
मौन उदास
छली जाती हो

हे सरिते !
नदियाँ, भाग-2
Posted on 18 Oct, 2013 03:49 PM किसी भी दिशा में जाऊँ
कोई न कोई नदी और कभी-कभी तो कई नदियाँ
रास्ते में मिलती थीं

कितनी ही नदियां थीं जिन्हें मैं उनके पानी के रंग से
घाट के पत्थरों से, अगल-बगल के पेड़ों से
और उनके नाम से जानता था
उनके जन्म लेने की और बाद में जीवन की हजारों कहानियाँ थीं

उनके जीवन में भी हमारी ही तरह दुःख थे
पहाड़ों की ओट होकर वे भी कई बार रोती थीं
पानी की रात
Posted on 18 Oct, 2013 03:46 PM लोग जो अपनी चिंताओं से छूटने आए थे वहां
एक शाम उन सबने कहा
पानी बढ़ रहा है
नदी अपनी बगल में फैले जंगल जैसी
प्रलापों से भरी नींद जैसी नदी में
पेड़ों से गिरता अँधेरा बहता था
किनारे पर औरतें शोकगीत गाती खड़ी रहीं
बूढ़े खाँसते रहे तेज हवा में
नौजवानों के चेहरों पर कितनी धूल
कितने पैवंद लहूलुहान देहों पर
स्याह पानी भरता हुआ उनकी आत्मा के खोखल में
यहाँ थी वह नदी
Posted on 18 Oct, 2013 03:44 PM जल्दी से वह पहुँचता चाहती थी
उस जगह जहाँ एक आदमी
उसके पानी में नहाने जा रहा था
एक नाव
लोगों का इंतजार कर रही थी
और पक्षियों की कतार
आ रही थी पानी की खोज में

बचपन की उस नदी में
हम अपने चेहरे देखते थे हिलते हुए
उसके किनारे थे हमारे घर
हमेशा उफनती
अपने तटों और पत्थरों को प्यार करती
उस नदी से शुरू होते थे दिन
उसकी आवाज
आयोवा
Posted on 18 Oct, 2013 03:43 PM (रे-ह्योन हाम के लिए)
1

इस शहर का नाम
एक नदी का नाम है
शहर का सन्नाटा नदी की आवाज है
दिन में शहर के चौराहे, पुल और पार्क
चुपचाप पानी में उतरते हैं
किताबें, कपड़े, गृहस्थी का सामान और
हैमबरगर बेचती दूकानें
पानी में स्थिर पड़ी रहती हैं
खिलौनों की एक दूकान
कुछ देर नदी के तल में सो जाती है

शाम को जब रोशनियाँ जलती हैं
नदी नहीं रही
Posted on 18 Oct, 2013 03:42 PM नदी का जाना
पता नहीं चला।
किनारे के मंदिर में भगवान
बस्ती में लोग
आकाश में तारे
घोंसलें में पक्षी रहे आए
जब नदी में नदी नहीं रही
रात में रात
सन्नाटे में सन्नाटा रहा।
सुबह सूरज ने देखा
लोगों ने
दोनों किनारे
एक-दूसरे में जाकर उसे
ढूँढ़ते रहे खामोश।

नदियाँ, भाग-1
Posted on 18 Oct, 2013 03:40 PM इछामती और मेघना
महानंदा
रावी और झेलम
गंगा, गोदावरी
नर्मदा और घाघरा
नाम लेते हुए भी तकलीफ होती है

उनसे उतनी ही मुलाकात होती है
जितनी वे रास्ते में आ जाती हैं

और उस समय भी दिमाग
कितना कम पास जा पाता है
दिमाग तो भरा रहता है
लुटेरों के बाजार के शोर से।

1996

पुल
Posted on 18 Oct, 2013 03:39 PM नदी स्थिर है
पुल बह रहा है-

दोनों कुल जोड़ने वाला पुल
बह रहा है
ठीक नदी की विपरीत दिशा में

आत्महत्या करने जा रहा पुल
उद्गम-चट्टानों से कूदकर
टूट जाएगा

और पुल पर चढ़ा मैं
जो तुम तक पहुँचना चाहता हूँ
और मुझ जैसे दूसरे मैं
पुल के साथ

तब नदी बहेगी
पुल के टुकड़ों को वक्ष पर लादकर
खून की लकीरें उभारती?
नदियाँ मेरे काम आईं
Posted on 18 Oct, 2013 03:38 PM जहाँ भी गया मैं
नदियाँ मेरे काम आईं

भटका इतने देस-परदेस
देर-सबेर परास्त हुआ पड़ोस से
इसी बीच चमकी कोई आबेहयात
मनहूस मोहल्ला भी दरियागंज हुआ

पैरों के पास से सरकती लकीरें
समेटती रही दीन और दुनिया
काबिज हुई मैदानों, बियाबानों में
जमाने की मददगार
किनारे तोड़कर घर-घर में घुसती रही

सिरहाने को फोड़ती सुर सरिता
वहाँ तो अब भी इंद्रावती
Posted on 18 Oct, 2013 03:36 PM वहाँ तो अब भी इंद्रावती
शालवनों के लिए
गुनगुनाती हुई

सारी-सारी रात सुलगते पहाड़
पूरा धरती के बचपन को फिर से
सोचते हुए

और तमाम सागरतटों का शोर
इस रात को इस कदर
बेचैन करवटों में फेंकते हुए

यह कैसा शायर होना
चौकन्ना और डरा
अपने कल होने में
सारी रात छिपता हुआ।

1995

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