राजेश जोशी

राजेश जोशी
टूटी खिड़की से हरसूद
Posted on 02 Jan, 2015 04:44 PM
कैसा लगता है अपने ही हाथों बनाए घर को एक दिन अपने ही हाथों से तोड़
नदियाँ, भाग-2
Posted on 18 Oct, 2013 03:49 PM
किसी भी दिशा में जाऊँ
कोई न कोई नदी और कभी-कभी तो कई नदियाँ
रास्ते में मिलती थीं

कितनी ही नदियां थीं जिन्हें मैं उनके पानी के रंग से
घाट के पत्थरों से, अगल-बगल के पेड़ों से
और उनके नाम से जानता था
उनके जन्म लेने की और बाद में जीवन की हजारों कहानियाँ थीं

उनके जीवन में भी हमारी ही तरह दुःख थे
पहाड़ों की ओट होकर वे भी कई बार रोती थीं
पानी
Posted on 19 Sep, 2013 04:12 PM
पानी कई-कई बार हमें अपनों से दूर ले गया
उसने हमारी कागज की नावें ही नहीं
सचमुच की नावें और जहाज डुबा दिये
हमारे खिलौने छीन लिये
बेशकीमती चीजें लूट लीं
और कहीं भीतर अपने तलघट में छिपा दिया
बेघरबार कर दिया हमारे बच्चों को
हमारे खेतों को तहस-नहस कर डाला
हमें भूख के हाथों बिलबिलाता हुआ छोड़ दिया
वह हमारी स्त्रियों और बच्चों को
चुरा कर ले गया
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