मंगलेश डबराल

मंगलेश डबराल
दुख की नदियाँ
Posted on 10 May, 2015 03:54 PM
उत्तराखण्ड की नदियों में जैसे-जैसे पानी कम हो रहा है, उनकी विनाशकारी क्षमता बढ़ती जा रही है। यह एक विरोधाभासी और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। नदी-घाटियों से सटकर सड़कें बनाए जाने और दूसरे निर्माणों से होने वाले कटान की मिट्टी आमतौर पर दोनों तरफ से नदियों में गिरती है, उन्हें उथला और सँकरा बनाती है। इसके नतीजे में जरा सी बरसात होते ही नदियाँ उफनने लगती हैं, दोनों
पानी की रात
Posted on 18 Oct, 2013 03:46 PM
लोग जो अपनी चिंताओं से छूटने आए थे वहां
एक शाम उन सबने कहा
पानी बढ़ रहा है
नदी अपनी बगल में फैले जंगल जैसी
प्रलापों से भरी नींद जैसी नदी में
पेड़ों से गिरता अँधेरा बहता था
किनारे पर औरतें शोकगीत गाती खड़ी रहीं
बूढ़े खाँसते रहे तेज हवा में
नौजवानों के चेहरों पर कितनी धूल
कितने पैवंद लहूलुहान देहों पर
स्याह पानी भरता हुआ उनकी आत्मा के खोखल में
यहाँ थी वह नदी
Posted on 18 Oct, 2013 03:44 PM
जल्दी से वह पहुँचता चाहती थी
उस जगह जहाँ एक आदमी
उसके पानी में नहाने जा रहा था
एक नाव
लोगों का इंतजार कर रही थी
और पक्षियों की कतार
आ रही थी पानी की खोज में

बचपन की उस नदी में
हम अपने चेहरे देखते थे हिलते हुए
उसके किनारे थे हमारे घर
हमेशा उफनती
अपने तटों और पत्थरों को प्यार करती
उस नदी से शुरू होते थे दिन
उसकी आवाज
आयोवा
Posted on 18 Oct, 2013 03:43 PM
(रे-ह्योन हाम के लिए)
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इस शहर का नाम
एक नदी का नाम है
शहर का सन्नाटा नदी की आवाज है
दिन में शहर के चौराहे, पुल और पार्क
चुपचाप पानी में उतरते हैं
किताबें, कपड़े, गृहस्थी का सामान और
हैमबरगर बेचती दूकानें
पानी में स्थिर पड़ी रहती हैं
खिलौनों की एक दूकान
कुछ देर नदी के तल में सो जाती है

शाम को जब रोशनियाँ जलती हैं
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