Posted on 15 Oct, 2013 01:39 PMवहां नहीं है नदी लिया है बदल अपना रास्ता उसने। घाट है सिर्फ, पुराना सीढ़ियाँ जिसकी मिट्टी में दबी हैं पर बजिद है वह यही है तीर्थ उसका। जहाँ चाहे नदी बहती रहे वह तरा था यहीं चाहे डुबकी-भर ही सही।
Posted on 15 Oct, 2013 01:38 PM(1) नदी ने जो सहा नदी जानती है उसके दो किनारे हैं उनका शासन भी वह मानती है जहाँ भी वह जाती है उन्हें अपने साथ पाती है (2) नदी तो बहती है, बहेगी वह थिर क्यों रहेगी
(3) नदी को समुद्र से जा मिलने की इच्छा है तीव्र इच्छा
Posted on 15 Oct, 2013 01:37 PMबाढ़ में बहते जाते हैं पुरखों के संदूक सारा माल-मता औजार हमारे मामूली रोजगार के कागज-पत्तर जिनमें थे हारों के दुखों के हाल जिन्हें कोई दर्ज नहीं करता कला कर्म की भाषा के धंधे और इतिहास जिनसे बेखबर रहते हैं हर कहीं गाफिल एक से
पानी में दिखता है कभी तेज बहाव में छटपटाता हुआ कोई बेमानी मगर उसकी छटपटाहट बिलकुल निरुपाय
Posted on 10 Oct, 2013 10:15 AMएक नदी बाल्यावस्था लांघ अल्हड़ यौवन का स्पर्श मात्र ही कर पाई थी कि बाँध दी गई उन्मुक्तता उसकी यह समझाकर कि इस प्रकार कल्याण कर पाएगी वो जन जीवन का नदी सहर्ष स्वीकार करती है इस बंधन को बिना विचारे आगत क्या है किन्तु यह क्या उसके संगी साथी झरने, प्रपात,नन्ही धाराएं सभी तो लुप्त हो गए
Posted on 05 Oct, 2013 03:09 PMनदी बिलकुल शांत कभी नहीं हो पाती चाहकर भी कोई न कोई आवाज या सन्नाटा गूँजता हुआ-सा उसके तट पर उसके मझधार में किसी चट्टान से नीरव टकराते उसके जल में।
नदी बहती है धरातल पर सूखकर रेत के नीचे थमकर प्रतिपल जाती हुई अपने विलय की ओर फिर थी उच्छल धूप अँधेरे लू-लपट सुख की झूलती हुई डालों दुःख के खिसकते-ढहते ढूहों से हर सर्वनाम को लीलता हुआ
Posted on 05 Oct, 2013 03:07 PMशाम देर गए घर लौटना है काम से उसे, जंगल में पछिया गई चिड़िया को और सुनसान के गले में पड़ी हँसुली-सी ईब को। कौन लौटता है : वह या ईब या सिर्फ उसका घर सरककर पास आ जाता है।
Posted on 05 Oct, 2013 03:05 PMवहीं से लौटना होगा घर वहीं से फूटेगी ईब वहीं से होगा एक शुभारंभ। वहीं से कारीगर गारे से भरेगा दरारें वहीं से जलघास टटोलेगी अतल वहीं से वह करेगी स्वीकार।