यहाँ थी वह नदी

जल्दी से वह पहुँचता चाहती थी
उस जगह जहाँ एक आदमी
उसके पानी में नहाने जा रहा था
एक नाव
लोगों का इंतजार कर रही थी
और पक्षियों की कतार
आ रही थी पानी की खोज में

बचपन की उस नदी में
हम अपने चेहरे देखते थे हिलते हुए
उसके किनारे थे हमारे घर
हमेशा उफनती
अपने तटों और पत्थरों को प्यार करती
उस नदी से शुरू होते थे दिन
उसकी आवाज
तमाम खिड़कियों पर सुनाई देती थी
लहरें दरवाजों को थपथपाती थीं
बुलाती हुईं लागातार
हमें याद है
यहाँ थी वह नदी इसी रेत में
जहाँ हमारे चेहरे खिलते थे
यहाँ थी वह नाव इंतजार करती हुई

अब वहाँ कुछ नहीं है
सिर्फ रात को जब लोग नींद में होते हैं
कभी-कभी एक आवाज सुनाई देती है रेत से।

1976

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