पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

Term Path Alias

/sub-categories/books-and-book-reviews

जल स्रोत का उपयोग
Posted on 03 Sep, 2015 12:48 PM

1. शुद्ध पेयजल


स्वस्थ शरीर के लिये स्वच्छ व निर्मल जल अत्यधिक आवश्यक है। वर्तमान में जल-प्रदूषण एक गम्भीर समस्या का रूप ले चुकी है। अधिकतर जल स्रोत, नदी, नाले जल प्रदूषण से प्रभावित है। जिसका स्पष्ट प्रभाव गर्मी व बरसात के दिनों में दिखाई पड़ता है जबकि अधिकतर गाँव पानी से फैलने वाली बीमारियों जैसे-पीलिया, पेचिश, टाइफाइड, हैजा आदि रोगों से पीड़ित रहते हैं।
भारत के संरक्षित वन क्षेत्र
Posted on 01 Sep, 2015 04:19 PM

किसी देश की सम्पन्न्ता उसके निवासियों की भौतिक समृद्धि से अधिक वहाँ की जैव विविधता से आँकी जाती है। भारत में भले ही विकास के नाम पर बीते कुछ दशकों में हरियाली को अन्धाधुन्ध उजाड़ा गया हो, लेकिन हमारी वन सम्पदा दुनियाभर में अनूठी और विशिष्ठ है। वृक्ष हमारे ऐसे मित्र हैं जो जन्म से मृत्यृ तक हमें कुछ-न-कुछ देते रहते हैं। बच्चे के पालने से लेकर मरणोपरान्त चिता तक हम लकड़ी के लिये वृक्षों पर आश्रित

Reserve forests of India
स्रोत अभयारण्य विकास (Spring Sanctuary Development)
Posted on 01 Sep, 2015 12:14 PM प्राकृतिक जल स्रोतों के घटते प्रवाह को बढ़ाने के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि जल स्रोत के ऊपरी क्षेत्र में पड़ने वाली सभी प्रकार की भूमि (आरक्षित वन, पंचायती वन, सिविल व निजी भूमि) में पशु चुगान व मानव हस्तक्षेप पूर्ण रूप से बंद करके उक्त भूमि का संरक्षण व संवर्धन किया जाए। जल समेट क्षेत्र में मानव हस्तक्षेप पूर्णरूप से बन्द करके उस क्षेत्र में वर्षा के जल का अवशोषण बढ़ाने के लिए किये गये उपचारों क
जल स्रोत का जल समेट क्षेत्र
Posted on 01 Sep, 2015 10:50 AM जल स्रोत का जल समेट वह भूक्षेत्र है जिसमें पड़ने वाली वर्षा के अवशोषण से उस स्रोत का पानी प्रवाह निर्धारित होता है। किसी भी स्रोत के जल प्रवाह को निर्धारित करने वाले अनेक कारक होते हैं जिनको मुख्यतः निम्न भागों में बाँटा जा सकता हैः
उत्तरांचल में जल स्रोतों की स्थिति
Posted on 01 Sep, 2015 09:52 AM

उत्तरांचल के मध्य हिमालयी क्षेत्रों के अधिकतर जनसंख्या बाहुल्य ग्रामों में तो वर्ष भर जल स्रोतो

गंगा
Posted on 30 Aug, 2015 01:16 PM विष्णु पदी धवला विमला शिव शीश जटा बिच शोभित गंगा।
पांव धरे जिस राह भगीरथ दौड़ पड़ी उस ओरही गंगा।
पाप हरे सब जीवन के दुख दूर करे यह पावन गंगा।
दूषित नित्य किया हमने यह सोचत ही नित रोवत गंगा।।

गोमुख से निकसी विकसी हिम शीतल निर्मल पावन गंगा।
तोड़ शिला करती नित नर्तन पर्वत-पर्वत अल्हड़ गंगा।
खेत धरा पर नेह बहा करती निधि वैभव पूरित गंगा।
जल भरा कलश स्थापित कर
Posted on 30 Aug, 2015 12:56 PM जल देवताओं को अति प्रिय है
अघ्र्य उनको अत: दिया जाता।
स्नान जलाशय में करके
सूरज को अघ्र्य दिया जाता।।

जल बिना नहीं करते हैं हम
देवी न देवता का पूजन।
शंकरजी को जल चढ़ा चढ़ा
करते उनका पूजन अर्चन।।

दुर्गा गणेश की मृण्मूर्ति
सादर कई दिन पूजी जाती।
फिर सर, सरिता सागर जल में
विधि सहित विसर्जित की जाती।।
सलिल बिना सागर
Posted on 30 Aug, 2015 12:49 PM सावन भादों क्वाँर औ, बीत गया मधुमास।
पनघट बैठी बावरी, रटती रही पियास।।

दीन हीन यजमान सी, नदिया है लाचार।
याचक से तट पर खड़े, हम निर्लज्ज गँवार।।

बगिया में अब शेष है, केवल ऊँची मेड़।
कहाँ गए मनभावने, वे बातूनी पेड़।।

चादर छोटी हो रही, शहर रवा रहे गाँव।
हुए नयी तकनीक के, इतने लंबे पाँव।।

नदियों का संबल दिया, सागर का विश्वास।
×