सुवेश यादव

सुवेश यादव
सलिल बिना सागर
Posted on 30 Aug, 2015 12:49 PM
सावन भादों क्वाँर औ, बीत गया मधुमास।
पनघट बैठी बावरी, रटती रही पियास।।

दीन हीन यजमान सी, नदिया है लाचार।
याचक से तट पर खड़े, हम निर्लज्ज गँवार।।

बगिया में अब शेष है, केवल ऊँची मेड़।
कहाँ गए मनभावने, वे बातूनी पेड़।।

चादर छोटी हो रही, शहर रवा रहे गाँव।
हुए नयी तकनीक के, इतने लंबे पाँव।।

नदियों का संबल दिया, सागर का विश्वास।
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