जल स्रोत अभयारण्य विकास हेतु मार्गदर्शिका

जल स्रोत अभयारण्य विकास हेतु मार्गदर्शिका
पर्वतीय क्षेत्रों में जल स्रोत अभयारण्य का विकास
Posted on 04 Sep, 2015 03:14 PM

प्रस्तावना


1. जल के बिना जीवन असम्भव है। जल पीने, घरेलू कार्य तथा सिंचाई इत्यादि हेतु आवश्यक है। इसका उपयोग ऊर्जा उत्पादन के लिये भी होता है। जल की कमी एवं दुरुपयोग से खाद्यान्न सुरक्षा, मानव स्वास्थ्य एवं विकास कार्यों पर बुरा असर पड़ता है।
नाली गाँव में जल स्रोत अभयारण्य विकास
Posted on 03 Sep, 2015 03:36 PM

जल स्रोत के जल समेट क्षेत्र का समुचित संरक्षण व संवर्धन करने के साथ ही नौले व हैंडपम्प में पानी के प्रवाह में गुणात्मक परिवर्तन आया है। ग्रामवासियों के अनुसार वर्ष 2003 में उक्त नौले में वर्ष भर पानी बना रहा तथा इस वर्ष हैंडपम्प से औसतन 1200 लीटर पानी प्रतिदिन प्राप्त हुआ। जल समेट क्षेत्र में मलमूत्र विसर्जन करने पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने के साथ ही गाँव में पेयजल सम्बन्धित बीमारियाँ भी काफी कम हुई हैं।

नाली गाँव अल्मोड़ा जिले के धौला देवी ब्लॉक में अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ मार्ग पर दन्यां बाजार के निकट बसा एक छोटा सा गाँव है। इस गाँव में 17 हरिजन परिवार निवास करते हैं, इस गाँव के लिये पेयजल की कोई सरकारी योजना नही है। गाँववासी पानी की दैनिक जरूरतों की पूर्ति गाँव के निकट स्थित नौले से करते रहे हैं। ग्रामवासियों के अनुसार विगत 15 वर्षों से इस सदाबहार नौले का जल प्रवाह निरन्तर कम होता गया तथा वर्ष 1999 तक यह नौला गर्मियों में पूर्ण-रुप से सूख गया। इस नौले के सूखते ही गाँववासियों को पेयजल का गम्भीर संकट उत्पन्न हो गया तथा उन्हें पेयजल हेतु गाँव से डेढ़ किलोमीटर नीचे स्थित दूसरे स्रोत पर निर्भर होना पड़ा। इतनी दूर से पानी ढोने में महिलाओं को 2-3 घण्टे का समय लगने लगा। साथ ही साथ पानी ढोने से उनके सिर में निरन्तर दर्द रहने लगा।

गाँव में पानी की समस्या को दूर करने के लिये ग्राववासियों ने परती भूमि विकास समिति, नई दिल्ली व कस्तूरबा महिला उत्थान मण्डल, दन्या के साथ मिलकर विकल्प ढूँढ़ने प्रारम्भ किये। चूँकि इस गाँव के आस-पास कोई दूसरा उचित जल स्रोत उपलब्ध नहीं था इस कारण इस गाँव में केवल हैंडपम्प व बरसाती जल एकत्रण टैंक ही मुख्य समाधान निकले।

पड़ाई धारा संरक्षण एवं संवर्धन-एक पहल
Posted on 03 Sep, 2015 03:18 PM

वर्तमान में जल स्रोत के नियमित प्रबन्धन व रखरखाव से प्रत्येक परिवार को बिना इन्तजार किये शुद्ध पेयजल मिल रहा है तथा पानी के संग्रहण हेतु टैंक का प्रयोग करने से महिलाओं के समय की बचत हो रही है, साथ ही साथ पशुओं के पानी पीने की अलग से व्यवस्था करने से पशुओं को भी शुद्ध जल प्राप्त हो रहा है।

पड़ाई गाँव अल्मोड़ा जिले के धौलादेवी ब्लाक में स्थित एक छोटा से गाँव है जिसमें रहने वाले परिवारों की कुल संख्या 23 है। इस गाँव का एक मात्र जल स्रोत गाँव से तीन सौ मीटर नीचे की तरफ स्थित है। इस स्रोत पर पड़ाई के 23 परिवारों के अलावा निकटवर्ती गाँव खूना के 20 परिवार गर्मियों में पेजयल एवं अन्य घरेलू उपयोग हेतु निर्भर रहते हैं। ग्रामवासियों के अनुसार 50 वर्ष पूर्व यह स्रोत नौले के रूप में था जो कि भू-स्खलन से दब गया, जिसे बाद में खोद कर धारा बना दिया गया। किन्तु इस धारे की निरन्तर उपेक्षा एवं कुप्रबन्धन के कारण इसमें पानी का प्रवाह काफी कम हो गया था, जिससे गाँव में जल संकट काफी गहरा गया था। गाँव का एक परिवार जब अपने जानवरों को पानी पिलाकर लाता था तभी दूसरा परिवार अपने जानवरों को पानी पिलाने जा पाता था। स्रोत के आस-पास कीचड़ व गन्दगी हो जाने के कारण गर्मी के मौसम में अनेक बीमारियाँ फैल जाती थी।
जल स्रोत का उपयोग
Posted on 03 Sep, 2015 12:48 PM

1. शुद्ध पेयजल


स्वस्थ शरीर के लिये स्वच्छ व निर्मल जल अत्यधिक आवश्यक है। वर्तमान में जल-प्रदूषण एक गम्भीर समस्या का रूप ले चुकी है। अधिकतर जल स्रोत, नदी, नाले जल प्रदूषण से प्रभावित है। जिसका स्पष्ट प्रभाव गर्मी व बरसात के दिनों में दिखाई पड़ता है जबकि अधिकतर गाँव पानी से फैलने वाली बीमारियों जैसे-पीलिया, पेचिश, टाइफाइड, हैजा आदि रोगों से पीड़ित रहते हैं।
जल स्रोत का जीर्णोद्धार व रखरखाव
Posted on 03 Sep, 2015 12:33 PM
उत्तरांचल में जल स्रोत की भौगोलिक संरचना के आधार पर विभिन्न प्रकार के जल संग्रहण ढाँचे हैं। लम्बे समय से इन स्रोतों की उपेक्षा व कुप्रबन्धन के कारण अधिकतर जल स्रोतों की स्थिति दयनीय हो गई है तथा अधिकतर जल स्रोत प्रदूषित हो गये हैं। इन स्रोतों से स्वच्छ जल का निरन्तर प्रवाह बनाये रखने के लिए इन स्रोतों का जीर्णोद्धार व रख-रखाव अति आवश्यक है।

1. नौले

जल स्रोत संरक्षण से आबाद हुई बंजर भूमि
Posted on 03 Sep, 2015 11:52 AM

आर्थिक स्तर में सुधार के साथ ही गाँववासियों का वनों व जल स्रोतों के संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ी फलस्वरूप ग्रामवासियों ने वर्ष 1998 में अपनी सम्पूर्ण सिविल भूमि पर वन पंचायत का गठन किया। वर्तमान में सभी ग्रामवासी वन पंचायत संगठन के अन्तर्गत अपने वनों का प्रबन्धन सुचारू रूप से कर रहे हैं।

छियोड़ी गाँव नैनीताल जिले के कोश्यिा-कुटौली तहसील में समुद्र तल से 1700 मीटर की ऊँचाई पर बसा है। इस गाँव में पहुँचने के लिए अल्मोड़ा-नैनीताल मोटर मार्ग में स्थित सुयाल खेत से 6 कि.मी. की सीधी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है इस कारण यह गाँव हर प्रकार से उपेक्षित रहा है। वर्तमान में गाँव में कुल 33 परिवार निवास करते हैं जबकि लगभग इतने ही परिवार गाँव में मूलभूत सुविधाओं की कमी, पेयजल संकट व आय स्रोतों की कमी के कारण गाँव से स्थाई रूप से पलायन कर चुके हैं। स्थानीय निवासी परम्परागत खेती व पशुपालन में अपना जीविकोपार्जन करते हैं। गाँव में निजी भूमि के अतिरिक्त 60 हेक्टेयर सिविल वन भूमि है। किन्तु सिविल वन भूमि की कोई प्रबन्धन व्यवस्था न होने के कारण अधिकतर भूमि वृक्ष विहीन होने लगी थी। वर्ष 1995 में स्थानीय स्वयंसेवी संस्था ‘चिराग’ ने गाँववासियों के साथ मिल कर सिविल वनों के संरक्षण एवं संवर्धन का कार्य प्रारम्भ किया।
जल समेट क्षेत्र (Recharge Zone) का उपचार
Posted on 01 Sep, 2015 03:34 PM
जल स्रोत समेट क्षेत्र की कोई प्रबन्धन व्यवस्था न होने के कारण इन क्षेत्रों पर जैविक दबाव निरन्तर बढ़ा है। इन क्षेत्रों से वानस्पतिक आवरण के ह्रास के साथ ही भूमि में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा में कमी आई है तथा निरन्तर चराई व आग के कारण भू क्षरण की दर बढ़ी है परिणामस्वरूप अधिकतर वर्षा का जल भूमि की सतह से बह जाता है। वर्षा के जल का भूमि में अवशोषण बहुत कम हो जाने के कारण जल स्रोत का जल चक्र प्रभाव
स्रोत अभयारण्य विकास (Spring Sanctuary Development)
Posted on 01 Sep, 2015 12:14 PM
प्राकृतिक जल स्रोतों के घटते प्रवाह को बढ़ाने के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि जल स्रोत के ऊपरी क्षेत्र में पड़ने वाली सभी प्रकार की भूमि (आरक्षित वन, पंचायती वन, सिविल व निजी भूमि) में पशु चुगान व मानव हस्तक्षेप पूर्ण रूप से बंद करके उक्त भूमि का संरक्षण व संवर्धन किया जाए। जल समेट क्षेत्र में मानव हस्तक्षेप पूर्णरूप से बन्द करके उस क्षेत्र में वर्षा के जल का अवशोषण बढ़ाने के लिए किये गये उपचारों क
जल स्रोत का जल समेट क्षेत्र
Posted on 01 Sep, 2015 10:50 AM
जल स्रोत का जल समेट वह भूक्षेत्र है जिसमें पड़ने वाली वर्षा के अवशोषण से उस स्रोत का पानी प्रवाह निर्धारित होता है। किसी भी स्रोत के जल प्रवाह को निर्धारित करने वाले अनेक कारक होते हैं जिनको मुख्यतः निम्न भागों में बाँटा जा सकता हैः
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