पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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समस्या की जड़
Posted on 07 Sep, 2015 03:49 PM

(क) भूजल में आर्सेनिक की उपस्थिति

सुरक्षित क्या है
Posted on 06 Sep, 2015 12:42 PM
1. वर्तमान में, भारत में आर्सेनिक की निर्धारित सीमा क्या निश्चित हुई है?
बांग्लादेशः आर्सेनिक का प्रकोप
Posted on 06 Sep, 2015 11:34 AM
1. बांग्लादेश में आर्सेनिक की समस्या की उत्पत्ति कैसे हुई ?
आर्सेनिक: भयावह विस्तार
Posted on 06 Sep, 2015 10:45 AM
संसद में केन्द्रीय जल संसाधन मन्त्रालय से जुलाई 2004 में पानी में आर्सेनिक (संखिया) और फ्लोराइड के दूषण के विस्तार पर एक सवाल पूछा गया। मन्त्रालय ने जवाब दिया कि आर्सेनिक से पश्चिम बंगाल के आठ जिले- मालदा, दक्षिण 24-परगना, उत्तर 24-परगना, नादिया, हुगली, मुर्शिदाबाद, बर्धमान और हावड़ा प्रभावित हैं। इनके अलावा बिहार में सिर्फ एक भोजपुर जिला अत्यधिक आर्सेनिक से प्रभावित माना जाता है।
बंगाल की महाविपत्ति (Arsenic: Bengal 's disaster)
Posted on 05 Sep, 2015 04:44 PM
यदि आर्सेनिक (संखिया) के प्रदूषण पर बलिया ने अंकुश नहीं लगाया तो उसका भी वही हाल होगा जो पश्चिम बंगाल का हुआ है। ‘डाउन टू अर्थ’ ने अपने 15 अप्रैल 2003 के अंक में बंगाल में आर्सेनिक के फैलते प्रकोप का वर्णन किया है, जिसके कुछ अंश यहाँ दिये गए हैं…
आर्सेनिक का कहर (Arsenic havoc)
Posted on 05 Sep, 2015 01:48 PM
भारतवासी जिस भूजल को पीते हैं, उसमें जहरीला आर्सेनिक (संखिया) आखिर किस हद तक फैल चुका है? दिल्ली में एक डाॅ.
पर्वतीय क्षेत्रों में जल स्रोत अभयारण्य का विकास
Posted on 04 Sep, 2015 03:14 PM

प्रस्तावना


1. जल के बिना जीवन असम्भव है। जल पीने, घरेलू कार्य तथा सिंचाई इत्यादि हेतु आवश्यक है। इसका उपयोग ऊर्जा उत्पादन के लिये भी होता है। जल की कमी एवं दुरुपयोग से खाद्यान्न सुरक्षा, मानव स्वास्थ्य एवं विकास कार्यों पर बुरा असर पड़ता है।
पेड़ों के साथ बन रहे हैं पानी के जंगल
Posted on 04 Sep, 2015 11:38 AM जिस पानी को हम स्रोत नदी या जमीन के अंदर से निकालकर पीते और नाना प्रकार से उपयोग करते हैं, उसे क्या हम पैदा कर सकते हैं? यह सवाल जितने सरल शब्दों में किया जा सकता है, इसका उत्तर उतना ही कठिन है।
नाली गाँव में जल स्रोत अभयारण्य विकास
Posted on 03 Sep, 2015 03:36 PM

जल स्रोत के जल समेट क्षेत्र का समुचित संरक्षण व संवर्धन करने के साथ ही नौले व हैंडपम्प में पानी के प्रवाह में गुणात्मक परिवर्तन आया है। ग्रामवासियों के अनुसार वर्ष 2003 में उक्त नौले में वर्ष भर पानी बना रहा तथा इस वर्ष हैंडपम्प से औसतन 1200 लीटर पानी प्रतिदिन प्राप्त हुआ। जल समेट क्षेत्र में मलमूत्र विसर्जन करने पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने के साथ ही गाँव में पेयजल सम्बन्धित बीमारियाँ भी काफी कम हुई हैं।

नाली गाँव अल्मोड़ा जिले के धौला देवी ब्लॉक में अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ मार्ग पर दन्यां बाजार के निकट बसा एक छोटा सा गाँव है। इस गाँव में 17 हरिजन परिवार निवास करते हैं, इस गाँव के लिये पेयजल की कोई सरकारी योजना नही है। गाँववासी पानी की दैनिक जरूरतों की पूर्ति गाँव के निकट स्थित नौले से करते रहे हैं। ग्रामवासियों के अनुसार विगत 15 वर्षों से इस सदाबहार नौले का जल प्रवाह निरन्तर कम होता गया तथा वर्ष 1999 तक यह नौला गर्मियों में पूर्ण-रुप से सूख गया। इस नौले के सूखते ही गाँववासियों को पेयजल का गम्भीर संकट उत्पन्न हो गया तथा उन्हें पेयजल हेतु गाँव से डेढ़ किलोमीटर नीचे स्थित दूसरे स्रोत पर निर्भर होना पड़ा। इतनी दूर से पानी ढोने में महिलाओं को 2-3 घण्टे का समय लगने लगा। साथ ही साथ पानी ढोने से उनके सिर में निरन्तर दर्द रहने लगा।

गाँव में पानी की समस्या को दूर करने के लिये ग्राववासियों ने परती भूमि विकास समिति, नई दिल्ली व कस्तूरबा महिला उत्थान मण्डल, दन्या के साथ मिलकर विकल्प ढूँढ़ने प्रारम्भ किये। चूँकि इस गाँव के आस-पास कोई दूसरा उचित जल स्रोत उपलब्ध नहीं था इस कारण इस गाँव में केवल हैंडपम्प व बरसाती जल एकत्रण टैंक ही मुख्य समाधान निकले।

पड़ाई धारा संरक्षण एवं संवर्धन-एक पहल
Posted on 03 Sep, 2015 03:18 PM

वर्तमान में जल स्रोत के नियमित प्रबन्धन व रखरखाव से प्रत्येक परिवार को बिना इन्तजार किये शुद्ध पेयजल मिल रहा है तथा पानी के संग्रहण हेतु टैंक का प्रयोग करने से महिलाओं के समय की बचत हो रही है, साथ ही साथ पशुओं के पानी पीने की अलग से व्यवस्था करने से पशुओं को भी शुद्ध जल प्राप्त हो रहा है।

पड़ाई गाँव अल्मोड़ा जिले के धौलादेवी ब्लाक में स्थित एक छोटा से गाँव है जिसमें रहने वाले परिवारों की कुल संख्या 23 है। इस गाँव का एक मात्र जल स्रोत गाँव से तीन सौ मीटर नीचे की तरफ स्थित है। इस स्रोत पर पड़ाई के 23 परिवारों के अलावा निकटवर्ती गाँव खूना के 20 परिवार गर्मियों में पेजयल एवं अन्य घरेलू उपयोग हेतु निर्भर रहते हैं। ग्रामवासियों के अनुसार 50 वर्ष पूर्व यह स्रोत नौले के रूप में था जो कि भू-स्खलन से दब गया, जिसे बाद में खोद कर धारा बना दिया गया। किन्तु इस धारे की निरन्तर उपेक्षा एवं कुप्रबन्धन के कारण इसमें पानी का प्रवाह काफी कम हो गया था, जिससे गाँव में जल संकट काफी गहरा गया था। गाँव का एक परिवार जब अपने जानवरों को पानी पिलाकर लाता था तभी दूसरा परिवार अपने जानवरों को पानी पिलाने जा पाता था। स्रोत के आस-पास कीचड़ व गन्दगी हो जाने के कारण गर्मी के मौसम में अनेक बीमारियाँ फैल जाती थी।
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