जल देवताओं को अति प्रिय है
अघ्र्य उनको अत: दिया जाता।
स्नान जलाशय में करके
सूरज को अघ्र्य दिया जाता।।
जल बिना नहीं करते हैं हम
देवी न देवता का पूजन।
शंकरजी को जल चढ़ा चढ़ा
करते उनका पूजन अर्चन।।
दुर्गा गणेश की मृण्मूर्ति
सादर कई दिन पूजी जाती।
फिर सर, सरिता सागर जल में
विधि सहित विसर्जित की जाती।।
जल भरा कुंभ शुभ होता है
देखे से ही मन हो प्रसन्न।
आरंभ शुभ कलश यात्रा से
होते कुछ धार्मिक आयोजन।।
होता है जन्म शिशु का जब
तुरंत जल से नहलाते हैं।
और अंतिम संस्कार में भी
शव को पहले नहलाते हैं।।
मंदिर दर्शन करने जाते
करके स्नान शुद्ध होकर।
देवालय में प्रवेश करते
हम फिर से हाथ पाँव धोकर।।
घर में कोई पूजा हो तो
जल भरा कलश स्थापित कर।
पूजा से पहले करते हैं
आचमन जरा सा जल लेकर।।
जल पाणिग्रहण में हाथों पर
डालते समंत्र वर-वधू के।
फिर कन्या पक्ष पूजता है
जल से पखार पाँव उनके।।
सरिता में या कि सरोवर में
पूर्वों पर लोग नहाते हैं।
जल की पावनता पाकर ही
तीर्थों पर पुण्य कमाते हैं।।
जल भरा घड़ा कंधे पर रख
फिर उसमें भेद किया जाता।
गिरते जल से जल रही चिता
का चक्कर लगा लिया जाता।।
कर चिता भष्म से अस्थि चयन
सरिता, सिंधु में बहा देते।
अंतिम अवशेष मनुज का-
सलिल राशि को अर्पण कर देते।।
जन्म से मृत्यु पर्यंत, और
परलोक वास होने पर भी।
हिंदू संस्कृति के संस्कार
सब पूरे होते जल से ही।।
मृत मानव के जीवात्मा को
की जाती जलांजलि अर्पण।
पुरखों को श्राद्ध पक्ष में हम
जल देकर करते हैं तर्पण।।
जल भाई हमारी संस्कृति का
है रहा सनातन अंग अभिन्न
संस्कृति में जल का यह महत्व
मत होने देना छिन्न-भिन्न।।
जल तो प्रतीक है शुचिता का
जल है प्रतीक निर्मलता का।
जल जुड़ा संस्कारों से है
जल है प्रतीक पावनता कर
इसकी शुचिता निर्मलता को
हम बना सर्वदा रहने दें।
हो नष्ट न इसकी पावनता
जल नहीं प्रदूषित होने दें।।
अघ्र्य उनको अत: दिया जाता।
स्नान जलाशय में करके
सूरज को अघ्र्य दिया जाता।।
जल बिना नहीं करते हैं हम
देवी न देवता का पूजन।
शंकरजी को जल चढ़ा चढ़ा
करते उनका पूजन अर्चन।।
दुर्गा गणेश की मृण्मूर्ति
सादर कई दिन पूजी जाती।
फिर सर, सरिता सागर जल में
विधि सहित विसर्जित की जाती।।
जल भरा कुंभ शुभ होता है
देखे से ही मन हो प्रसन्न।
आरंभ शुभ कलश यात्रा से
होते कुछ धार्मिक आयोजन।।
होता है जन्म शिशु का जब
तुरंत जल से नहलाते हैं।
और अंतिम संस्कार में भी
शव को पहले नहलाते हैं।।
मंदिर दर्शन करने जाते
करके स्नान शुद्ध होकर।
देवालय में प्रवेश करते
हम फिर से हाथ पाँव धोकर।।
घर में कोई पूजा हो तो
जल भरा कलश स्थापित कर।
पूजा से पहले करते हैं
आचमन जरा सा जल लेकर।।
जल पाणिग्रहण में हाथों पर
डालते समंत्र वर-वधू के।
फिर कन्या पक्ष पूजता है
जल से पखार पाँव उनके।।
सरिता में या कि सरोवर में
पूर्वों पर लोग नहाते हैं।
जल की पावनता पाकर ही
तीर्थों पर पुण्य कमाते हैं।।
जल भरा घड़ा कंधे पर रख
फिर उसमें भेद किया जाता।
गिरते जल से जल रही चिता
का चक्कर लगा लिया जाता।।
कर चिता भष्म से अस्थि चयन
सरिता, सिंधु में बहा देते।
अंतिम अवशेष मनुज का-
सलिल राशि को अर्पण कर देते।।
जन्म से मृत्यु पर्यंत, और
परलोक वास होने पर भी।
हिंदू संस्कृति के संस्कार
सब पूरे होते जल से ही।।
मृत मानव के जीवात्मा को
की जाती जलांजलि अर्पण।
पुरखों को श्राद्ध पक्ष में हम
जल देकर करते हैं तर्पण।।
जल भाई हमारी संस्कृति का
है रहा सनातन अंग अभिन्न
संस्कृति में जल का यह महत्व
मत होने देना छिन्न-भिन्न।।
जल तो प्रतीक है शुचिता का
जल है प्रतीक निर्मलता का।
जल जुड़ा संस्कारों से है
जल है प्रतीक पावनता कर
इसकी शुचिता निर्मलता को
हम बना सर्वदा रहने दें।
हो नष्ट न इसकी पावनता
जल नहीं प्रदूषित होने दें।।
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Post By: RuralWater