उत्तराखंड

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पनचक्की से पूरी होंगी ऊर्जा जरूरतें
Posted on 05 Jan, 2013 11:09 AM उत्तराखंड का परंपरागत जल प्रबंधन मनुष्य की सामुदायिक क्षमता और आत्मनिर्भरता का बेहतरीन उदाहरण है। जल, अन्य प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग और प्रबंधन को और अधिक सरलीकृत करने हेतु इसमें ग्रामीणों के सहयोग लेने की और अधिक आवश्यकता आन पड़ी है। हिमालय की कठिन परिस्थितियों में यहां के निवासियों ने प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की टिकऊ विधियां तो विकसित की लेकिन सरकारी हस्तक्षेप ने इन विधियों को इनसे दूर कर दिया। भारत के हिमालय क्षेत्र के गांवों में ही लगभग दो लाख घराट यानी पनचक्कियां मौजूद हैं। इसी तरह विश्वभर के पहाड़ी क्षेत्रों में बीस लाख पनचक्कियां तीसरी, चौथी सदी से लोगों की सेवा कर रही हैं। इन पनचक्कियों से गेहूं पिसाई एवं अन्य तरीके के काम लिए जाते रहे हैं। अब इन पनचक्कियों के जरिए पिसाई के अलावा ऊर्जा ज़रूरतों को भी पूरा करने का काम लिए जाने की तकनीक विकसित होने पर इनका महत्व बढ़ रहा है। इन घराटों को ग्रामीण क्षेत्र के कारखाने के रूप में भी इस्तेमाल किए जाने से कई जगह इनको समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है। इन घराटों में छिटपुट तकनीकी सुधार से ही इन मिलों की क्षमता में यहां काफी हद तक वृद्धि की सकती है वहीं इससे ऊर्जा उत्पादन एवं लेथ मशीन चलाने जैसे काम लिए जा सकते हैं। इससे पिसाई के साथ-साथ अन्य अभियांत्रिक कामों को भी इन पनचक्कियों द्वारा अंजाम दिया जा सकता है।
संकट में जल योद्धा बनीं बसंती
Posted on 18 Dec, 2012 03:28 PM उत्तराखंडवासियों के लिए जीवनदायिनी मानी जाने वाली कोसी नदी और क्षेत्र के वनों पर मंडराते खतरे के बादल हटाने के लिए बसंती के अभियान ने रंग दिखाया।

अल्मोड़ा को पानी की जरूरत कोसी नदी से पूरी होती है। कोसी वर्षा पर निर्भर नदी है। गर्मियों में अक्सर इस नदी में जल का प्रवाह कम हो जाता है। उस पर से वन क्षेत्र में आई कमी से स्थिति बेहद गंभीर हो जाती है। बसंती इन तमाम समस्याओं को देख-समझ रही थीं। उन्हें महसूस हुआ कि अगर जंगलों की कटाई नहीं रोकी गई और जंगलों में लगने वाली आग को फैलने से नहीं रोका गया तो दस वर्ष में कोसी का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। ऋषि कश्यप ने सहस्त्राब्दी पहले पानी और जंगलों के बीच सहजीवी रिश्ते की बात प्रतिपादित की थी। कहने का मतलब यह है कि अगर जंगल रहेंगे तभी नदी का अस्तित्व भी रहेगा। उत्तराखंड में कोसी नदी जीवनरेखा पानी जाती है लेकिन जंगलों की बेतहाशा कटाई और शहरीकरण ने पानी संग्रह करने के कई परंपरागत ढांचों को बर्बाद कर दिया। कई जल स्रोत सूख गए। इसका असर हुआ कि शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक में जल संकट की स्थिति पैदा हो गई। लोगों की प्यास बुझाना मुश्किल होने लगा। हालांकि विपदा की इस घड़ी में बसंती नामक एक जल योद्धा ने नदी जल संरक्षण की कमान संभाली और जंगलों की रक्षा का प्रण किया।
basanti
उत्तराखण्ड नदी बचाओ अभियान यात्रा
Posted on 28 Nov, 2012 02:08 PM देहरादून। 21 नवंबर 2012 से उत्तराखण्ड नदी बचाओ अभियान सहित अन्य संगठनों द्वारा जल, जंगल, जमीन स्वराज यात्रा प्रारंभ की जायेगी जो नौ दिसंबर दिल्ली राजघाट में समाप्त होगी। पत्रकारों से वार्ता करते हुए सुरेश भाई ने कहा है कि प्रदेश में विगत दस सालों में उद्योग और उर्जा परियोजनाओं के नाम पर 25 हजार हेक्टेयर की भूमि अधिग्रहीत हो चुकी है और किसान खेती से बेदखल हो गये हैं। खेती छोटे किसानों के लिए अलाभका
कस्तूरी बनी मृग की दुश्मन
Posted on 27 Oct, 2012 03:40 PM उत्तराखंड में हुए भौगोलिक और पर्यावरणीय बदलावों ने कस्तूरी मृग समेत कई दुर्लभ वन्यजीवों के अस्तित्व पर संकट उत्पन्न कर दिया है। रही-सही कसर शिकारियों ने पूरी कर दी है।
टाइम बम बनतीं हिमालयी झीलें
Posted on 27 Oct, 2012 10:03 AM यह ग्लोबल वार्मिंग का असर है या क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कि अब ऊंचाई पर बर्फबारी नहीं, बारिश होने लगी है। हिमालयी क्षेत्रों की ग्लेशियर निर्मित झीलें राहत नहीं बल्कि आफत बन चुकी हैं।

उत्तराखंड राज्य में एक बड़ी समस्या झीलों में होना वाला ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट भी है। कुछ समय पहले तक यहां के ऊंचाई वाले स्थानों पर अधिक बारिश नहीं होती थी लेकिन अब यहां अक्सर बरसात होती है जिससे फ्लैश फ्लड का खतरा बढ़ गया है। इस तरह की बाढ़ में अब तक कितने ही घर, खेत और पशु तबाह हो चुके हैं। यहां तक कि गांवों का नामोनिशान तक मिट गया है। हिमालयी सदानीरा नदियां कभी भी तबाही बन सकती हैं। हिमालयी क्षेत्रों से सफेद बर्फ की चादर की जगह अब काले बादल खतरे के रूप में मंडराने लगे हैं। उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र की तमाम ग्लेशियर निर्मित झीलों की पारिस्थितिकी बदलने से राज्य के ऊपरी इलाकों में तबाही का खतरा बढ़ रहा है। ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स (जीएलओएफ) की घटनाओं में अचानक बढ़ोतरी हो गई है। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से मौसम में आए बदलाव ने भी क्षेत्र के पारिस्थितिकी को बड़े हद तक प्रभावित किया है। वैज्ञानिक यह स्पष्ट कर चुके हैं कि सिर्फ आर्कटिक या अंटार्कटिक ही नहीं, हिमालय के ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहे हैं। कभी पूरा उत्तराखंड राज्य हरे-भरे पहाड़ों से आच्छादित था लेकिन धीरे-धीरे स्थितियां बदल रही हैं। तमाम सदानीरा नदियां एवं प्राकृतिक जलस्रोतों में बदलाव आ रहे हैं उत्तराखंड की ग्लेशियर युक्त पर्वत श्रृंखलाएं व इससे जुड़ी घाटियां वाटर बैंक के रूप में जानी जाती हैं। इस क्षेत्र के 917 ग्लेशियर 3,550 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं।
संकट में काजीरंगा और कार्बेट अभ्यारण्य
Posted on 15 Oct, 2012 05:39 PM देश में अभ्यारण्यों की दुर्दशा देखने के बाद सर्वोच्च न्यायालय को दखल देना पड़ा है। कभी-कभार बाढ़ और आग से होने वाले नुकसान के अलावा भी कई मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। शिकारियों की घुसपैठ और पर्यटन एजेंसियों की दखलंदाजी ने संकट को और गहरा किया है। काजीरंगा और जिम कार्बेट अभ्यारण्यों के कुप्रबंधन का जायजा ले रहे हैं शेखर पाठक।
भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र में प्रस्तावित जल विद्युत परियोजना को ग्रामीणों ने नकारा
Posted on 08 Oct, 2012 05:05 PM

झाला-कोटी जलविद्युत परियोजना के विरोध का केन्द्र अगुण्डा गाँव है। इसके आसपास कोटी, तितरूणा, आदि गाँव है। झाला कोटी जल विद्युत परियोजना का निर्माण अमेरिकन कम्पनी बार्कले को सौंपा गया है। नदी बचाओ अभियान की ओर से सुरेश भाई के नेतृत्व में जब उनसे परियोजना की डीपीआर मांगी तो उन्होंने बहुत आनाकानी के बाद में लगभग 300 पेज वाली डीपीआर अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध करवायी। इस डीपीआर को हिन्दी भाषा में उपलब्ध करवाने के लिये कम्पनी को लोगों ने निर्देश दिये हैं।

31 जुलाई को टिहरी के जिलाधिकारी डॉ. रंजीत कुमार सिन्हा से भिलंगना ब्लॉक के अगुण्डा, कोटी, थाती, रगस्या, आगर गाँव के ग्राम प्रधानों ने नई टिहरी में मुलाकात की थी। साथ में क्षेत्र के जाने माने समाज सेवी बिहारी लाल और नदी बचाओ अभियान के सुरेश भाई की पहल से यह बैठक जिलाधिकारी के साथ इसलिये रखी गयी थी कि ग्रामीणों के परियोजना विरोधी तर्क को प्रशासन भली-भाँती समझ ले और इसका प्रस्ताव स्थगित करने हेतु शासन को भेज देवें। इसी माँग को ध्यान में रखकर ग्रामीणों ने जिलाधिकारी के माध्यम से माननीय प्रधानमंत्री जी तथा उतराखंड के मुख्यमंत्री जी को ज्ञापन भी भिजवाया था।
हिमालय नीति जन संवाद
Posted on 08 Oct, 2012 02:46 PM जन संवाद के प्रथम दिवस के अवसर पर देश और दुनिया के परिदृश्य में हिमालय की भूमिका के विषय पर विचारकों ने प्रतिभागियों के मन और बुद्धि को झकझोरने वाले विचार व्यक्त कर बहुत गंभीरतापूर्वक आज की परिस्थिति को समझकर दिशा तय करने में सावधानी बरतने की ओर इशारा किया है। उन्होंने आज की वैश्विक साम्राज्यवादी ताकतों के बल पर नीति-नियन्ताओं की कमजोरी को भी उजागर किया है। 27-28 सितम्बर 2012 को उत्तराखंड राज्य की राजधानी देहरादून में हिमालय नीति जन संवाद का आयोजन किया गया है। इस अवसर पर हिमालय लोक नीति विषय पर चर्चा केन्द्रित रही है। इसमें लगभग 75 लोगों ने भाग लिया है। जन संवाद में अधिकांश वही लोग उपस्थित रहे जिन्होंने सन 2010 से हिमालय लोकनीति के मसौदे को तैयार किया था। गौरतलब है कि हिमालय राज्यों में विशेषकर उत्तराखंड ने चिपको, रक्षासूत्र, नदी बचाओ, हिमालय बचाओ के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का उदाहरण जो देश और दुनिया के सामने प्रस्तुत किया है उसी के अनुरुप उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, हिमांचल के सामाजिक कार्यकर्ताओं, महिलाओं, किसानों, पंचायत प्रतिनिधियों ने मिलकर नवम्बर 2010 में एक हिमालय नीति की कल्पना की थी।
सभी प्रभावितों के लिये पुनर्वास नीति एक हो!
Posted on 29 Sep, 2012 02:35 PM नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले के समय भी पुर्नवास कि स्थिति भी बहुत खराब थी। जगह-जगह पुनर्वास के लिए आन्दोलन चल रहे थे। वादियों ने अगले दिन ही 30 अक्टूबर 2005 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई। लगभग 7 वर्ष से चल रहे मुकदमें में 40 से ज्यादा आदेशों द्वारा विस्थापितों के पुनर्वास की प्रक्रिया आगे बढ़ी साथ ही टिहरी बांध का जलाशय अभी भी 820 मीटर से ऊपर भरने की इजाजत नहीं है। उत्तराखंड में भागीरथी पर बने टिहरी बांध पर सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे मुकदमें की अंतिम सुनवाई चालू हो गई है। माननीय न्यायाधीश ने अक्टूबर 2005 से चल रहे एन0 डी0 जुयाल व शेखर सिंह बनाम भारत सरकार, टीएचडीसी व अन्य मुकदमें में अंतिम सुनवाई की शुरुआत करते हुये 22-8-2012 को पहले वादियों से उनके सभी मुद्दों पर बिंदुवार जानकारी चाही जिनको बांध का जलाशय के पूरा भरने से पहले बांध प्रयोक्ता, टिहरी जलविद्युत निगम को पूरा करना चाहिये। जिनके लिए उन्हें तीन हफ्ते का समय दिया गया था।
सुंदर तितलियां बनीं संदेह का सबब
Posted on 28 Sep, 2012 10:50 AM हिमालय क्षेत्र में पतंगों एवं तितलियों का विस्तार चौंकाने वाला है। हिमालय में पतंगों के विस्तार संबंध
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