Posted on 26 Jun, 2013 02:57 PM यदि भविष्य में इस प्रकार के प्राकृतिक आपदा से बचना है तो इसकी तैयारी अभी से करनी होगी। विकास अच्छी बात है, परंतु इसके कुछ मानक तय होने चाहिए। दीर्घकालिक विकास की नीतियों को तय किये जाने की आवश्कता है। इसके लिए आवश्यक है कि समस्त हिमालयी क्षेत्रों में भारी निर्माण और दैत्याकार जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण पर प्रतिबंध लगाया जाए। हिमालयी क्षेत्र में बेतहाशा खनन और सड़क निर्माण के नाम पर विस्फोट ना किए जाएं। कब-कब किन हालात में आपदाएं आई हैं इसका आकंड़ा जुटाया जाए। सबसे जरूरी यह है कि आपदा प्रबंधन विभाग को पुनर्जीवित करने के लिए राज्य सरकार और केन्द्र मिलकर पुख्ता नीति बनाए।उत्तराखंड में बीते सप्ताह कुदरत का जो क़हर टूटा उसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी। तबाही का ऐसा खौ़फनाक मंजर पहले नहीं देखा गया। हांलाकि 1970 में चमोली जिले में गौनाताल में बादल के फटने से डरावने हालात बन गए थे, लेकिन इस प्रकार की क्षति नहीं हुई थी क्योंकि इसकी भविष्यवाणी अंग्रेजों ने 1894 में ही कर दी थी और तब नीचे की बस्तियों को सुरक्षित स्थानों में बसा दिया गया था। उस दौर में आज के जैसे परिवहन और संचार के नवीनतम उपकरण मौजूद नहीं थे, परंतु अंग्रेज अधिकारियों के बीच गजब का समन्वय और प्लानिंग थी। जिसके चलते 1970 के हादसा में आज की तरह जानमाल की अधिक क्षति नहीं हुई थी। लेकिन इस बार के हादसे ने कई सवालों को जन्म दे दिया है। केदारनाथ त्रासदी से ठीक दो दिन पूर्व मौसम विभाग ने प्रशासन को चेतावनी दी थी कि अगले 24 घंटों में भारी बारिश हो सकती है तो क्यों नहीं देहरादून से सतर्कता बरती गई? कुल कितने यात्री उस दौरान केदारनाथ में थे ये डाटा भी राज्य सरकार के पास नहीं हैं। तो ऐसे में हताहतों का अंदाजा लगाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
Posted on 26 Jun, 2013 02:28 PMउत्तराखंड में हुई त्रासदी के बारे में आप जान ही गए होंगे। हमारे 24.6.13 के प्रेस नोट में सारी स्थितियां हमने लिखी है। जन आन्दोलन के राष्ट्रीय समन्वय, एनएपीएम से जुड़े माटू जनसंगठन (2001 से उत्तराखंड में गंगाघाटी और यमुनाघाटी में बड़े बांधों के विरोध में पर्यावरण संरक्षण व जनहक के लिए कार्यरत 1989 से टिहरी बांध के खिलाफ संघर्षरत साथियों के साथ) और इसके साथियों ने अपनी ओर से कुछ-कुछ सहयोग तीर्थयात्रियों के लिए किया है।
हमें लगता है की जहां सरकारें और अनेक तरह के संगठन इस आपदा के बाद पुनर्निर्माण और सहयोग के काम में लग रहे हैं। हमारी भूमिका इस सब पर नजर रखते हुए, दूरस्थ इलाकों में लोगों व गांवों स्थिति, जरूरतों का सही जायजा लेना छूटे हुए स्थान व लोगों को सरकारी व राहत दिलाने का होगा। इस समय हमारी भूमिका शायद यही सही रहेगी।
Posted on 26 Jun, 2013 02:04 PMभागीरथीगंगा, अलकनंदागंगा और उनकी सहायक नदियों प्रमुख रूप से अस्सीगंगा, भिलंगना, बिरहीगंगा, मंदाकिनी, पिडंरगंगा नदियों के किनारे के होटल, दुकानें, घर आदि गिरे, पहाड़ दरके, सड़के टूटी जिससे हजारों की संख्या में वाहन बह गए कई स्थानों पर नदी में तेजी से गाद की मात्रा आई जो बाढ़ के साथ बस्तियों में घुसी, अनियंत्रित तरह से बनी पहाड़ी बस्तियां बही।