झाला-कोटी जलविद्युत परियोजना के विरोध का केन्द्र अगुण्डा गाँव है। इसके आसपास कोटी, तितरूणा, आदि गाँव है। झाला कोटी जल विद्युत परियोजना का निर्माण अमेरिकन कम्पनी बार्कले को सौंपा गया है। नदी बचाओ अभियान की ओर से सुरेश भाई के नेतृत्व में जब उनसे परियोजना की डीपीआर मांगी तो उन्होंने बहुत आनाकानी के बाद में लगभग 300 पेज वाली डीपीआर अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध करवायी। इस डीपीआर को हिन्दी भाषा में उपलब्ध करवाने के लिये कम्पनी को लोगों ने निर्देश दिये हैं।
31 जुलाई को टिहरी के जिलाधिकारी डॉ. रंजीत कुमार सिन्हा से भिलंगना ब्लॉक के अगुण्डा, कोटी, थाती, रगस्या, आगर गाँव के ग्राम प्रधानों ने नई टिहरी में मुलाकात की थी। साथ में क्षेत्र के जाने माने समाज सेवी बिहारी लाल और नदी बचाओ अभियान के सुरेश भाई की पहल से यह बैठक जिलाधिकारी के साथ इसलिये रखी गयी थी कि ग्रामीणों के परियोजना विरोधी तर्क को प्रशासन भली-भाँती समझ ले और इसका प्रस्ताव स्थगित करने हेतु शासन को भेज देवें। इसी माँग को ध्यान में रखकर ग्रामीणों ने जिलाधिकारी के माध्यम से माननीय प्रधानमंत्री जी तथा उतराखंड के मुख्यमंत्री जी को ज्ञापन भी भिजवाया था। ज्ञापन में लिखा गया है कि इस क्षेत्र में जितनी भी सिंचाई नहरें हैं, इससे बिजली बनाने के लिये राज्य सरकार को ग्रमीणों का सहयोग करना चाहिये। वास्तव में यदि ग्रामीणों की मांग पर गौर किया जाय तो भिलंगना ब्लॉक जिसकी आबादी लगभग 1 लाख से भी कम है यहाँ कुल 6 मेगावाट बिजली की ही आवश्यकता है, जिसे केवल धर्मगंगा के सिरहाने पर 13 किमी के अन्तर्गत मौजूदा 6 सिंचाई नहरों से ही उत्पादित किया जा सकता है। यह बात जिलाधिकारी के समक्ष भी उठायी गयी है।सन 2002 में धर्मगंगा में भयानक बाढ़ आयी थी, जिसके कारण अगुण्डा गांव में 1 दर्जन लोग मरे थे। दुखः की बात यह है कि इस भयानक बाढ़ एवं भूस्खलन की घटना के बाद भी प्रस्तावित जल विद्युत परियोजना के निर्माण करने की साइड भी यहीं से चयन की गई है। यहाँ लोग इस बात के लिये पहले ही जागरूक हैं कि छोटी पनबिजली से स्थानीय लोगों को अधिक लाभ है, और बड़ी सुरंग आधारित परियोजना से उनकी खेती, जंगल, चारागाह, सिंचाई नहरें, आदि बर्बाद होती हैं। उन्हें यह जानकारी उतराखंड प्रदेश में चलायी जा रही नदी बचाओ की मुहिम हो या गंगा बचाने के लिये देश भर में हुये प्रचार-प्रसार के कारण उनमें यह जागरूकता आयी है। विनाशकारी परियोजना विरोधी जागरूकता केवल इतने ही तक सीमित नहीं है बल्कि इस क्षेत्र में पहले बिहारी लाल जी जैसे समाज सेवी द्वारा एक छोटी नहर से बिजली बनाकर आज से 20 वर्ष पहले भिलंगना में उदाहरण प्रस्तुत किया जा चुका है। उनकी इस सीख से जागरूक होकर उनके ही सहयोग से भिलंगना ब्लॉक के गेंवाली गांव में लोगों ने बिजली बनायी है। इसके बाद जखाणा और अगुण्डा में इं. योगेश कुमार ने ग्रामीणों का साथ देकर 40-40 किलोवाट की बिजली परियोजनायें बनायी है। इं. योगेश कुमार को भी इस क्षेत्र में प्रवेश करवाने का काम बिहारी लाल जी ने किया था। ऐसे उदाहरण जिस क्षेत्र में लोंगों ने तैयार किये हों, वहाँ बाहर से आकर कोई कम्पनी कह दे कि बिजली बनाकर लोगों का विकास कर देगी भला उनकी इस बात को कौन सुनने वाला है।
इस क्षेत्र की राजनीति में चुनकर आये विधायक भी इसी सोच को बढ़ावा देते रहे हैं। पूर्व विधायक बलवीर सिंह नेगी हमेशा से ही छोटी पनबिजली परियोजनाओं के ही समर्थक रहे हैं। छोटी पन बिजली का लोक विज्ञान यहाँ के गाँव वालों ने नई टिहरी में जाकर 31 जुलाई को जिलाधिकारी को समझा दिया था। जिलाधिकारी डॉ. रंजीत कुमार सिन्हा गाँव के पंचायत प्रतिनिधियों की इस बात से पूर्ण संतुष्ट नहीं हुये, उन्होंने आश्वासन दिया कि वे अगुण्डा गाँव में आकर ग्रामीणों को परियोजना के समर्थन में संतुष्ट कर देंगे। क्योंकि जिलाधिकारी ने कहा कि राज्य सरकार बिजली बनाकर प्रदेश का हित करना चाहती है। उन्होंने कहा कि वे विरोधी रुख को गांव में आकर समझेंगे।
जिलाधिकारी और ग्रामीणों के विचार में यही अंतर लगता है कि बिजली पैदा करने का अर्थ ही यह है कि राज्य सरकार को माला-माल बनाना और ग्रामीण तो उजड़ते रहते है। इस प्रकार लोगों की चिंता जिलाधिकारी से मिलने के बाद गाँव को बचाने की अधिक सताने लगी। इसी दिन 31 जुलाई को ही नई टिहरी में पत्रकारों के समक्ष भी पंचायत प्रतिनिधियों ने परियोजना के विनाशकारी पक्ष को रखा है। ग्रामीणों ने समाज सेवी बिहारी लाल जी के पहल पर बांध विरोध के लिये ग्राम स्वराज्य समिति का गठन किया है। इस समिति का संयोजक जयप्रकाश राणा को बनाया गया है और प्रत्येक ग्राम सभा का प्रधान इसमे अपने-अपने ग्राम स्तर के लिये संयोजक के रूप में काम करते हैं।
झाला-कोटी जलविद्युत परियोजना के विरोध का केन्द्र अगुण्डा गाँव है। इसके आसपास कोटी, तितरूणा, आदि गाँव है। झाला कोटी जल विद्युत परियोजना का निर्माण अमेरिकन कम्पनी बार्कले को सौंपा गया है। नदी बचाओ अभियान की ओर से सुरेश भाई के नेतृत्व में जब उनसे परियोजना की डीपीआर मांगी तो उन्होंने बहुत आनाकानी के बाद में लगभग 300 पेज वाली डीपीआर अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध करवायी। इस डीपीआर को हिन्दी भाषा में उपलब्ध करवाने के लिये कम्पनी को लोगों ने निर्देश दिये हैं। अब तक इस डीपीआर का जितना भी अध्ययन किया गया है, वह पूर्ण रूप से फर्जी और मनगढ़ंत तरीके से परियोजना क्षेत्र की स्थिति को समझे बिना तैयार हुई है। परियोजना डीपीआर में इस क्षेत्र में आयी बाढ़ का कोई इतिहास नहीं है। पानी की उपलब्धता के आंकड़े मौजूदा हालात से मेल नहीं खाते इस क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसके बारे में कोई विवरण नहीं है। परियोजना की साइट झाला से अगुण्डा की ओर है और इसका नाम झाला-कोटी रखा गया है। ऐसे कई फर्जी उदाहरण डीपीआर में हैं। परियोजना निर्माण के बाद उत्पादित बिजली से स्थानीय लोगों को कोई लाभ नहीं मिलेगा। इसकी कुल 12 प्रतिशत रॉयल्टी राज्य सरकार को भुगतान होनी है, तथा शेष बिजली की खपत कम्पनी के अपने मुनाफे के रूप में की जानी है।
यह क्षेत्र घनसाली विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यहाँ के भाजपा विधायक भीमलाल आर्य कहीं भी ग्रामीणों के छोटे-बड़े आन्दोलनों को सहयोग दे रहे हैं। एक बार उनकी चर्चा कांग्रेस में जाने की भी थी, जिसे उन्होंने बाद में नकार दिया। उनका चेहरा भी आजकल आन्दोलनकारी के रूप में उभर कर सामने आ रहा है। विधायक ने भी इस बीच अगुण्डा गाँव के आसपास के गाँवों में जाकर ग्रामीणों के साथ परियोजना का विरोध प्रारम्भ किया है। जिलाधिकारी से ग्रामीणों की मुलाकात के बाद विधायक इतने सक्रिय हो गये कि 28 अगस्त को जब झाला-कोटी परियोजना की सर्वे टीम को अगुण्डा के ग्रामीणों ने बंधक बना दिया था तो विधायक ने तहसीलदार घनसाली के माध्यम से ग्रामीणों का पक्ष लेकर सर्वे टीम को वापस बुला दिया। उन्होंने सर्वे टीम को यह भी हिदायत दी कि बिना गाँव की अनुमति के वे गाँव में प्रवेश नहीं करेंगें। सर्वे टीम ने भी गाँव वालों को लिखकर दिया कि वे गांव वालों की अनुमति के बिना गाँव में प्रवेश नहीं करेंगे।
झाला-कोटी जलविद्युत परियोजना का विरोध करने वाले गाँव वालों को कोई न कोई सहारा चाहिये था, एक तरफ जहाँ विधायक स्वयं ही उनके पक्ष में खड़े हो गये, इसके कारण प्रभावितों को विरोध का जायज रास्ता साफ दिखाई देने लगा है। दूसरी तरफ उतराखंड में नदियों को बचाने के लिये मुहिम छेड़े हुये सुरेश भाई, बिहारी लाल और उनके साथ कई पर्यावरणविदों का एक साथ में आना दोनों से, गाँव वालों को मजबूती मिलने का अहसास भी उन्हें हुआ है। इसी दौरान उपजिलाधिकारी घनसाली ने भी 6 सितम्बर को टिहरी के जिलाधिकारी के परियोजना प्रभावित क्षेत्र में पहुँचने की सूचना दे डाली। लोगों में काफी सुगबुगाहट थी कि जिलाधिकारी भी उनकी बात सुनकर परियोजना को यहाँ से हटा देंगे। प्रभावित गाँव के लोगों ने विधायक भीमलाल आर्य के साथ मिलकर एक रणनीतिक योजना पर पहले ही हस्ताक्षर कर दिये थे, जिस पर प्रस्तावित परियोजना से प्रभावित अगुण्डा गाँव की ग्राम प्रधान मीना देवी, कोटी के ग्राम प्रधान दिनेश भट्ट, थाती के ग्राम प्रधान सुन्दर नाथ, रगस्या के ग्राम प्रधान पन्नालाल, तितरूणा के ग्राम प्रधान कीर्ति सिंह रावत के हस्ताक्षरों के अलावा विधायक ने भी अपना समर्थन देकर जिलाधिकारी को 6 सितम्बर की बैठक में, बैठते ही पत्र सौंप दिया। इस पत्र में परियोजना को ग्रामीणों ने पूर्ण रूप से नकार दिया। जिलाधिकारी के साथ प्रभागीय वनाधिकारी, अधिशासी अभियंता सिंचाई, पावर कॉर्पोरेशन, परियोजना प्रबंधक उरेड़ा, खंड विकास अधिकारी भिलंगना, तहसीलदार घनसाली, उपजिलाधिकारी आदि कई अधिकारियों को साथ लेकर जन सुनवाई करने आये थे, जिसे लोगों ने सुनने से इन्कार कर दिया था। इस घटना से जिलाधिकारी डॉ. रंजीत कुमार सिन्हा को अंगुण्डा आना काफी ना गंवार लगा। उन्हें विधायक जैसे प्रतिष्ठित जन प्रतिनिधि के पत्र में तमाम प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर न काफी महसूस हुये, इसी बीच उन्होंने बैठक में उपस्थित लगभग 400 लोगों को बताये बिना प्रस्तावित परियोजना स्थल तक अपनी गाड़ी में बैठकर सीधे जाने लगे, जिसका ग्रामीणों ने डटकर विरोध किया। उपस्थित गाँव वालों ने सड़क पर बैठ कर डीएम साहब की गाड़ी आगे नहीं बढ़ने दी, ग्रामीण तब तक सड़क पर बैठे रहे जब तक वे वापस नहीं गये। लोगों ने यह सब काम शान्तिपूर्ण तरीके से किये। सुरेश भाई ने मौका स्थल पर जिलाधिकारी को कहा भी कि जब क्षेत्र के प्रतिनिधि लिखकर दे रहे हैं तो, यह काम जबरदस्ती कैसे हो सकता है। जिलाधिकारी ने इस बात पर तब गौर किया जब ग्रामीणों के साथ 2 घंटे तक उलझना पड़ा। विधायक भीमलाल आर्य भी सड़क के बीच में धरने पर लोगों का सहयोग कर रहे थे। अंत में यहां ग्रामीणों को एक बड़ी जीत हासिल हुई, जिसमें जिलाधिकारी ने यहाँ उपस्थित पत्रकारों को बताया कि वे ग्रामीणों की भावनाओं को शासन तक पहुँचायेंगे।
उतराखंड में इस तरह की विनाशकारी बिजली पारियोजनाओं का पहले से विरोध हो रहा है, लेकिन विधायक कहीं नजर नहीं आते हैं। यह पहला आन्दोलन है जहाँ विधायक भी अपने क्षेत्र के प्रभावितों की मद्द करने आगे आया है। यह लगभग तय है कि यहाँ पर इतने कड़े विरोध के कारण परियोजना निर्माण करना कम्पनी के लिये टेढ़ी खीर है। इस क्षेत्र के ग्राम प्रधानों ने भी एक मिसाल बना दी है, जिसके द्वारा वे एनओसी नहीं देंगे। 6 सितम्बर की इस घटना से पहले भी यहाँ के ग्रामीणों ने मुखर रूप से निर्माण ऐजेंसी को यहाँ से कई बार बाहर खदेड़ा है इसके अलावा कभी उन्हें परियोजना समर्थकों को फटकार लगानी पड़ी तो, कभी ज्ञापन भेजा और अब जिलाधिकारी को भी परियोजना की सुनवाई करने से रोक दिया गया है।
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