मध्य प्रदेश

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कानून की दृष्टि में जल प्रदूषण
Posted on 16 Feb, 2010 08:42 AM - जल प्रदूषण निवारण नियंत्रण अधिनियम, 1974
- जल प्रदूषण निवारण नियंत्रण के लिए बोर्ड
- राष्ट्रीय अधिकरण का गठन
- जल प्रदूषण निवारण नियंत्रण उपकर अधिनियम, 1977
- जल प्रदूषण निवारण नियंत्रण उपकर नियमावली, 1978
- प्रदूषण की रोकथाम तथा नियंत्रण जल अधिनियम, 1974

पर्यावरण प्रदूषण से संबंधित अन्य नियम-कानून


- पर्यावरण संरक्षण नियम, 1981
देश में जल की उपलब्धता
Posted on 16 Feb, 2010 08:28 AM -देश की 24 थालों में लगभग 1929-87 घन किलोमीटर जल संसाधन हैं। जिनमें से लगभग 690 घन कि.मी. सतही जल का ही इस्तेमाल किया जा सकता है।

-पुनः आपूर्ति किये जाने योग्य भूमिगत जल स्रोतों की क्षमता 432 घन किलोमीटर है।
जल
Posted on 16 Feb, 2010 08:15 AM पृथ्वी पर पहला जीव जल में ही उत्पन्न हुआ था। जल इस युग में अनमोल है। ऐसा नहीं है कि इसी युग में पानी की अत्यधिक महत्ता प्रतिपादित की गई है, वरन हर युग में पानी का अपना महत्व रहा है। तभी तो रहीम का यह पानीदार दोहा हर एक की जुबान पर आज तक जीवित है-

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।
नर्मदा के जीव-जन्तु खतरे में
Posted on 14 Feb, 2010 04:51 PM जबलपुर। करीब 50 सालों से किए जा रहे शोध ने यह स्पष्ट कर दिया कि नर्मदा नदी में पाए जाने वाले मेंढक और मछलियों सहित अन्य जीव-जंतुओं की कई प्रजातियों का अस्तित्व ही नहीं बचेगा। नदी पर बांध, प्रदूषण, बसाहट, जंगलों की कटाई का सिलसिला यदि नहीं थमा तो अगले 25 सालों में इस नदी की जैव विविधता पूरी तरह खत्म हो जाएगी। इसमें 200 से ज्यादा प्रजातियां लुप्तप्राय कगार पर पहुंच चुकी हैं। जूलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया
जंगल खतरे में
Posted on 12 Feb, 2010 07:07 PM कच्चे माल के ऐसे संकट की हालत में सभी कंपनियां, चाहे निजी हों या सरकारी, बचे हुए घने जंगल के – बस्तर, उत्तर पूर्वी क्षेत्र और अंडमान जैसे-भंडारों में घुसने की होड़ लगा रही हैं। उन्हीं भंडारों के बल पर सरकार भी अपेक्षा रखती है कि नागालैंड के तुली तथा असम के (नवगांव) और कछार में स्थित हिंदुस्तान पेपर कार्पोरेशन की सरकारी मिलें कागज और गत्ते का उत्पादन बढ़ाकर 2,33,000 टन कर देंगी। ये मिलें कच्चे माल
न रहेगा बांस...
Posted on 12 Feb, 2010 06:51 PM जैसे-जैसे बांस की कमी बढ़ती जा रही है, बांसखोर मिलें छटपटाने लगी हैं, समस्याएं बढ़ रही हैं। वर्तमान वनों का अतिदोहन हो रहा है और सुदूरवर्ती जंगलों का शोषण बढ़ रहा है। भारतीय कागज निर्माता संघ के अध्यक्ष के अनुसार, “गिरे हुए वर्तमान उत्पादन के बावजूद वन-उपजों की मात्रा सीमित होती जाने के कारण कागज के कारखानों में आये दिन हड़बड़ देखने में आती है। मुख्य समस्या
सरकारी वन भूमि
Posted on 12 Feb, 2010 06:38 PM कहावत है-आंख से दूर, मन से दूर। पिछले चार-पांच सालों में सारा ध्यान आंखों के सामने चले समाजिक वानिकी कार्यक्रमों पर केंद्रित रहा है। इसमें भी खेतों और पंचायती जमीनों में पेड़ लगाने के काम पर ज्यादा बस चली है। लेकिन जो 7.5 करोड़ हेक्टेयर जंगल आंखों से दूर वन विभाग के नियंत्रण में है, उसकी हालत पर लोगों का ध्यान बिलकुल नहीं गया। बुरा हो उस उपग्रह का, जिसकी पैनी निगाह ने इन वनों की खस्ता हालत उघाड़कर
फिर भी दबदबा जारी है
Posted on 12 Feb, 2010 04:45 PM नई दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के श्री दिनेश कुमार का कहना है कि देश की कृषि-वन संवर्धन योजना में सफेदे के पेड़ों की प्रमुख भूमिका है। खेतों के बीच सफेदा लगाइए, वह तेज हवा को रोक लेता है, मिट्टी में नमी बढ़ाता है और तपन कम करके आसपास की फसलों को बल देता है। इन्हीं कारणों से गुजरात में गेहूं की पैदावार में 23 प्रतिशत और सरसों की पैदावार में 24 प्रतिशत वृद्धि हुई है। आंध्रप्रदेश में मूंगफ
सफेदे का जलस्रोतों पर प्रभाव
Posted on 12 Feb, 2010 02:39 PM उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ वन अधिकारी श्री एएन चतुर्वेदी, सफेदे द्वारा ज्यादा पानी खींच लिए जाने के बारे में कहते हैं कि “किसी भी जगह दूसरे पेड़ जितना पानी खींचते हैं, उतने ही सफेदे उतनी ही जगह पर और उतने ही क्षेत्र में उससे ज्यादा पानी खींच लेते हैं। देहरादून के केंद्रीय मृदा व जल संरक्षण शोध केंद्र के श्री आरके गुप्ता बताते हैं कि कम बारिश वाली जगहों पर सफेदे की जड़े ऊपरी सतह से बिलकुल भीतर इस कद
बदली प्राथमिकता
Posted on 12 Feb, 2010 11:46 AM विश्व बैंक के अधिकारी वाशिंगटन के अपने अनजान प्रशंसकों के लिए अपने बारे में चाहे जो प्रचार करते रहें, लेकिन यहां कम से कम इस मामले में उनकी साख गिरी है। ये अधिकारी निजी बातचीत में स्वीकार करते हैं कि उन्हें काफी सबक मिल गया है, इसलिए सामाजिक वानिकी के एक प्रमुख अंग के रूप में वे उजड़ चुके वन लगाने पर जोर देने लगे हैं ताकि ईंधन की पूर्ति हो सके। वे जोर देकर बताते हैं कि विश्व बैंक आजकल बंजर वन भूमि
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