नर्मदा के जीव-जन्तु खतरे में

जबलपुर। करीब 50 सालों से किए जा रहे शोध ने यह स्पष्ट कर दिया कि नर्मदा नदी में पाए जाने वाले मेंढक और मछलियों सहित अन्य जीव-जंतुओं की कई प्रजातियों का अस्तित्व ही नहीं बचेगा। नदी पर बांध, प्रदूषण, बसाहट, जंगलों की कटाई का सिलसिला यदि नहीं थमा तो अगले 25 सालों में इस नदी की जैव विविधता पूरी तरह खत्म हो जाएगी। इसमें 200 से ज्यादा प्रजातियां लुप्तप्राय कगार पर पहुंच चुकी हैं। जूलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जेडएसआई) द्वारा संभवत: यह सबसे लंबा शोध कार्य है।

प्रजातियां विलुप्ति की ओर


वैज्ञानिकों ने नर्मदा घाटी में 2422 विभिन्न प्रजातियों को चिह्नित किया। इसमें 665 कशेरूकीय (रीढ़ वाले), 1757 अकशेरूकीय प्राणी (बिना रीढ़ वाले) हैं। ये सभी प्राणी कुल 40 प्रकार के प्राणी समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसमें 155 प्रकार की मछलियां, 115 प्रकार के मेंढक, 62 प्रकार के उभयचर, 345 प्रकार के पक्षी और 88 प्रकार के स्तनधारी जीव हैं। इनमें से 200 से ज्यादा प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी हैं। इनमें मछलियां, स्तनधारी, पक्षी और तितलियां भी शामिल हैं।

यहां हुए सर्वे


वर्ष 1960 में जेडएसआई के तत्कालीन डायरेक्टर डॉ. एस. खजूरिया ने शोध कार्य शुरू किया। बाद में इसमें और भी जंतु शास्त्री जुड़ते गए। सर्वे के दौरान नर्मदा घाटी के 23 जिलों के 98796 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को शामिल किया गया था। इसमें नर्मदा समेत उसकी 41 सहायक नदियों, नर्मदा घाटी में मौजूद पांच राष्ट्रीय उद्यान और 13 सेंचुरी शामिल हैं।

नर्मदा में जैव विविधता तेजी से कम हो रही है। यदि यही रफ्तार रही तो आने वाले 25 सालों में यहां पाई जाने वाली अधिकांश जीव प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी।
-डॉ. कैलाशचंद्रा, शोधकर्ता, डायरेक्टर, जेडएसआई

बांध प्रमुख वजह


नर्मदा पर बनाए जा रहे बांध मछलियों व अन्य जलीय जीवों के लिए सबसे बड़ा खतरा साबित हो रहे हैं। शोध के अनुसार महशीर प्रजाति की मछली जून में बारिश शुरू होते ही पानी के बहाव की विपरीत दिशा में तेजी से आगे बढ़ती है। उसके बाद ऊपरी क्षेत्र में प्रजनन करने के बाद पानी के बहाव के साथ नीचे आती हैं। बांध बन जाने से वह अपने प्रजनन केंद्रों तक नहीं पहुंच पा रही हैं। इससे इसकी संख्या तेजी से घट रही है।

नष्ट होने के कारण


शोध के दौरान यह बात सामने आई है कि लगातार बढ़ते प्रदूषण, बिगड़ते ईको सिस्टम और कम होते जंगलों के कारण जीवों के प्राकृतिक आवास नष्ट होते जा रहे हैं। उनके प्राकृतिक स्थानों पर बढ़ते मानवीय दखल के कारण जीवों के स्वभाव में परिवर्तन आ रहा है।

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Post By: tridmin
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