मध्य प्रदेश

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जल के वैदिक और पौराणिक लोकाख्यान (भाग 2)
Posted on 25 Jan, 2010 01:13 PM

यूनानी सभ्यता विश्व की प्राचीनतम् सभ्यताओं में से एक है। जीथस उनका प्रथम यूनानी देवता है। यूनानीयों के अनुसार आरम्भ में केवल रिक्तता थी यानी शून्य था। उस शून्य में से तीन अमर देवों का उदय हुआ। जीया अर्थात भूमि माता, टारटरस अर्थात पाताल लोक का स्वामी और ईरोस अर्थात प्रेम का देवता, जिसने समूची दैवी और सांसारिक सृष्टि के उदय की प्रेरणा दी। जीया के साथ एक अद्भुत संयोग हुआ, उसने बिना पुरुष के यूरेनस

जल के वैदिक और पौराणिक लोकाख्यान
Posted on 25 Jan, 2010 11:54 AM

अभी तक हमने जल की आदिम मिथकीय अवधारणाओं को देखा, अब हम हमारे वैदिक और पौराणिक लोकाख्यानों की भी जाँच पड़ताल कर लें। सारे संसार में जल की मिथकीय अवधारणएँ अपने मूल मौलिक रूप में प्रचलित रही हैं। भारत में जल के बारे में बहुत गहरे में सोचा गया है। जल क्या है? इसकी उत्पत्ति कैसे हुई? इस बारे में जनजातीय मिथक बहुत ज्यादा कुछ नहीं कहते।

जल की मिथकीय अवधारणा (भाग 2)
Posted on 25 Jan, 2010 09:48 AM

गोंड मिथकथाओं का आविर्भाव लिंगोपेन की लम्बी गाथा से होता है। उसमें भी जल और कमल की युति का जिक्र आता है। पहले भगवान वर्षों जल के ऊपर कमल पत्ते पर शयन करते रहे। हजारों-लाखों वर्ष बीत जाने के पश्चात एक दिन भगवान के हाथ में फोड़ा उठा। फोड़ा बढ़ा, पका और फुटा। उससे महादेव और पार्वती का जन्म हुआ। आगे चलकर महादेव ने जल पर धरती, वनस्पति और जीवों का निर्माण किया।

नियंत्रण हाथ में रखना चाहते हैं नौकरशाह
Posted on 23 Jan, 2010 04:54 PM राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) का लेखा-जोखा के तहत हम नरेगा की केंद्रीय समिति के सदस्य प्रो. ज्यां द्रेज से बातचीत यहां प्रस्तुत कर रहे हैं। उनका ई-मेल इंटरव्यू किया है वाई.एन.झा ने.
संदर्भः
Posted on 23 Jan, 2010 04:29 PM


1. वायु पुराण/अ.-27/श्लोक-18 से 22 तक

2. ‘मानव’ शब्द का प्रयोग भारतीय परम्परा के अनुसार भारत भूमि पर जन्में ‘मनु’ का अपत्य (सन्तान) = मानव।

3. 225-266.

पंचगव्य-सफेद गाय का मूत्र, काली गाय का गोबर, लाल गाय का दूध, सफेद गाय का दही तथा कपिला गाय का घी- इन पाँच ‘गव्यों’ का यौगिक ‘पंचगव्य’ कहलाता है। यह ‘महापातक नाशक’ है-

उपसंहार
Posted on 23 Jan, 2010 04:26 PM

‘जल’ के ऊपर लिखने के लिए इतना अधिक मौजूद है कि एक स्वतंत्र ग्रन्थ लिखा जा सकता है। किन्तु समय और कलेवर की सीमा विवश कर रही है कि मैं अपने आलेख को यहीं समाप्त कर दूँ।

परिशिष्ट-2 - जल के आध्यात्मिक प्रयोग
Posted on 23 Jan, 2010 04:24 PM

‘जल’ के केवल भौतिक उपयोग नहीं होते, बल्कि कुछ ऐसे उपयोग भी हैं जो सत्य होते हुए भी अविश्वसनीय हैं। इन्हें आध्यात्मिक प्रयोग कहा जा सकता है।

परिशिष्ट-1 - जलरूप देवता
Posted on 23 Jan, 2010 04:20 PM

आपो ह्यायतनं विष्णोः, स च एवाम्भसां पतिः।
तस्मादप्सु स्मरेन्नित्यं, नारायणमघापहम्।।

‘जल’ विष्णु का निवास स्थान (अथवा जल ही उनका स्वरूप) है। विष्णु ही ‘जल’ के स्वामी हैं। इस कारण सदैव, जल में पापापहारी विष्णु का स्मरण करना चाहिए।

-ब्रह्मपुराण, 60/34

आपो देवगणाः प्रोक्ता, आपः पितृगणास्तथा।
तस्मादप्सु जलं देयं,पितृणां हितभिच्छता।।

(3)‘जल-माहात्म्य’
Posted on 23 Jan, 2010 04:17 PM

शिव-पार्वती के विवाह के समय, जबकि ब्रह्माजी हवन कर रहे थे, अचानक वे कामातुर हो गये। उनके मन में ग्लानि उत्पन्न हुई और वे अपराधबोध से दुखी हो गये। ब्रह्माजी उठकर मण्डप से बाहर निकल आये।

भगवान शिव समझ गये। उन्होंने ब्रह्मा को ‘निष्पाप’ करने के उद्देश्य से अपने पास बुलाया। फिर बोले- ‘पृथ्वी और जल, पापियों के पाप को नष्ट करने में सहायक होते हैं। मैं इनका ‘सार सर्वस्व’ निकालूँगा।’

(2)‘जल ने ब्रह्म हत्या ली’
Posted on 23 Jan, 2010 04:13 PM

‘स्कन्द पुराण’ के माहेश्वर-केदारखण्ड के पन्द्रहवें अध्याय में एक प्राचीन आख्यान दिया हुआ है। तदनुसार देवासुर-संग्राम के पश्चात् जबकि ‘देवगुरु’ बृहस्पतिजी इन्द्र की अवहेलना से दुखी होकर उन्हें छोड़कर अन्यत्र चले गये थे, इन्द्र का पौरोहित्य विश्वरूप नामक महर्षि करते थे। विश्वरूप ‘त्रिशिरा’ थे, जब कोई यज्ञ या अनुष्ठान करते तब अपने एक मुख से देवताओं का, दूसरे से दैत्यों का और तीसरे से मनुष्यों का आ

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