मध्य प्रदेश

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सम्पन्न ‘हवेली’ क्षेत्र का केन्द्र है-बम्हनी बंजर
Posted on 08 Mar, 2010 09:39 AM ‘हवेली’ क्षेत्र के 45-50 गाँवों के केन्द्र बम्हनी बंजर में, जिसे ब्राह्मणी बंजर भी माना जाता है, 40 एकड़ का सागर तालाब है और थाने के सामने लमती तालाब से आज भी लोग दाल पकाने के लिए पानी ले जाते हैं। इनके अलावा यहाँ बबूरा, परसा, पुच्छा और बड़ा तालाब सरीखे एक सदी से भी अधिक पुराने अनेकों प्राकृतिक तालाब हैं। बंजर नदी के कछार के इस क्षेत्र में सतही पानी के उपयोग के कारण इस क्षेत्र में फ्लोरोसिस की शिक
खिचड़ी से बने तालाब
Posted on 08 Mar, 2010 09:33 AM सन् 1890 का भीषण अकाल पूरे गोंडवाने में आज भी याद किया जाता है। उस दौर में यहाँ असंख्य तालाब बनाए गए थे जिनमें मजदूरी की तरह खिचड़ी बाँटी जाती थी। छिंदवाड़ा की सौंसर तहसील में तब का बना एक तालाब आज भी काम कर रहा है। बालाघाट में भी ऐसे कई तालाब मौजूद हैं। उस दौर में एक अंग्रेज इंजीनियर सर सॅफ कॉटन थे जिन्हें पानी की बड़ी परियोजनाएँ बनाने में महारत हासिल थी। इस वजह से ही उन्हें ‘सर’ की उपाधि दी गई थ
सुख देने वाली नर्मदा के किनारे बसा-मंडला
Posted on 08 Mar, 2010 09:29 AM गोंडवाले के दूसरे इलाकों की तरह मंडला जिले में भी कुएँ, तालाब, बावड़ियाँ और झिरियाँ ही पानी के मुख्य स्रोत रहे हैं। स्थानों के नामों में ताल, तलाई, सागर आदि का होना वहाँ जलस्रोत होने का ही संकेत है। भौगोलिक और पैदावार के हिसाब से मंडला के आसपास तथा बम्हनी बंजर, अंजनिया और नैनपुर के बीच के त्रिकोणाकार इलाके को हवेली क्षेत्र कहा जाता है। यह मैदानी और अच्छी फसलों वाला इलाका है जहाँ ढीमर, काछी और कुर्
जबलपुर कभी ‘नो फेन्स सिटी’ था
Posted on 04 Mar, 2010 03:47 PM अंग्रेज सिपाहियों के जबलपुर आते समय उन्हें दी जाने वाली जरूरी हिदायतों में से एक हुआ करती थी कि यह ‘नो फेन्स सिटी’ यानि पंखा रहित शहर है। दरअसल तब शहर को ठंडा बनाए रखने का काम शहर के 52-56 तालाब और असंख्य कुएँ, बावड़ियाँ करती थीं। इनमें से सिर्फ 22-24 तालाब ही 386 हैक्टेयर में फैले थे। सन् 1829 में कर्नल स्लीमॅन ने अलंकरण और उपयोगिता के लिए अंग्रेजी राज के पूर्व, सम्पन्न और उदार व्यक्तियों द्वारा
औरों की तरह हैं-चिचोली और आमला
Posted on 03 Mar, 2010 09:18 AM बैतूल जिले के प्रमुख कस्बे चिचोली की गाथा भी हर जगह की तरह पानी उलीचने और बगराने की गाथा रही है। पहले यहाँ भी दस-पन्द्रह हाथ पर खूब पानी निकल आता था। लोकहित में खुदवाए जाने वाले कुओं-बावड़ियों में मीठा पानी रहता था और सिंचाई के लिए इनमें मोट, रहट या बावन बाल्टी लगाकर पानी निकाला जाता था। 20-25 हाथ चौड़ी और गहरी बावड़ियाँ इन तरीकों के लिए आदर्श होती थीं। कुओं पर जगत, घिर्री या चका-परोंता लगाकर पानी
नर्तकियों की बावड़ी से प्रसिद्ध- मलाजपुर
Posted on 03 Mar, 2010 09:14 AM राजा-रानियों की पहल और जरूरत के कारण बनने वाले इन जल स्रोतों के साथ-साथ समाज के कई हिस्सों, व्यक्तियों ने भी जलस्रोतों के निर्माण को अपने जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि माना था। बैतूल जिले के एक कस्बे मलाजपुर की नर्तकियों की कहानी भी उतनी ही प्रसिद्ध है जिसमें उन्होंने एक रात की समूची मेहनत और कमाई से एक सुन्दर बावड़ी बनवाई थी। कहा जाता है कि 1556 ई.
तापी का मूल है, मुलताई
Posted on 03 Mar, 2010 09:08 AM गोंड राजाओं के जमाने में कई जगह पानी के विभिन्न स्रोत बने और उनकी साज-सँभाल होती रही। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात से होकर समुद्र में मिलने वाली तापी या ताप्ती नदी बैतूल जिले के मुलताई कस्बे के ताप्ती तालाब से निकली है। इस तालाब के पास वाला घाट देवगढ़ राज्य के गोंड राजाओं ने बनवाया था। बाकी के घाट भी चूने-पत्थर से गोंड राजाओं द्वारा बनवाए गए थे। असल में मुलताई का यह तालाब गोंड राजाओं द्वारा ही
भैंसों के लिए भी एक कुआँ है-झल्लार में
Posted on 03 Mar, 2010 09:02 AM बैतूल-परतवाड़ा मार्ग पर बसे झल्लार गाँव में आसपास के लोग लड़की देने में संकोच करते हैं क्योंकि वहाँ पानी का टोटा है। ऊँची-नीची जमीनों पर बसे इस गाँव में रोजाना दूर-दूर से पानी लाना टेढ़ीखीर है। विशाल मंदिरों वाले इस गाँव में 1920 के पहले मनकरणा तालाब बना था जिसे 1948 में मालगुजार ने जमीन देकर ओर चौड़ा करवाया था। सफेद और लाल कमल वाले इस तीन एकड़ के तालाब का उपयोग निस्तार और जानवरों के पीने के लिए क
आठ मोहल्लों वाला-आठनेर
Posted on 03 Mar, 2010 08:55 AM बैतूल जिले का आठनेर यानि आठ मोहल्लों (नेर यानि मोहल्ला) और 16-17 हजार की जनसंख्या वाला विकासखंड मुख्यालय पानी के संकट से हमेशा ही जूझता रहा है। पहले आबादी कम थी और आस-पास के नदी नालों से हमेशा का आजमाया जाने वाला झिर या झिरियाँ का नुस्खा काम आता था। आठनेर विकासखंड के डेढ़ सौ गाँवों के इलाके में जंगलों और नतीजे में बरसात की कमी रही है। तथा पूरा इलाका गहरी चट्टानों से भी भरा पड़ा है। लेकिन फिर भी उथ
मलेरिया से बदनाम हुआ-भीमपुर
Posted on 03 Mar, 2010 08:47 AM बैतुल जिले का भीमपुर विकासखंड सितम्बर-1998 में पटवारी रिपोर्ट के अनुसार इमलीडोह गाँव के 12-13 आदिवासियों की मौतों के कारण उछला था। मलेरिया और उससे लगातार होने वाली मौतों के कारण इस इलाके को जाना जाता है। वर्षों से छोटे-मोटे नदी-नालों के किनारे झीरा या झिरिया खोदकर पानी लेने वाले आदिवासियों से भरे-पूरे इस इलाके का अपना लंबा इतिहास रहा है। विकासखण्ड के एक गाँव दूधियागढ़ में चार-पाँच सौ साल पुरानी सं
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