नवचेतन प्रकाशन

नवचेतन प्रकाशन
बस्तर के वन प्राणी
Posted on 12 Dec, 2011 05:46 PM
बस्तर के वनों में एक जमाने में तरह-तरह के वन्य प्राणी भारी संख्या में रहते थे। लेकिन प्रगति उनके ले काल साबित हुई। आज वे पश्चिम और दक्षिण पश्चिम बस्तर में, कहीं दूर कोने में ठेल दिए गए हैं। 1981 और 1983 के बीच मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य में चार अभ्यारण्य बनाए- इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान (1,258 वर्ग किलोमीटर) कांगर घाटी राष्ट्रीय उद्यान (200 वर्ग किलोमीटर), पामेड जंगली भैंसा अभ्यारण्य (139 वर्ग किल
भूमि, जल, वन और हमारा  पर्यावरण 
Posted on 17 Feb, 2010 02:09 PM






देश की माटी, देश का जल
हवा देश की, देश के फल
सरस बनें, प्रभु सरस बनें!

देश के घर और देश के घाट
देश के वन और देश के बाट
सरल बनें, प्रभु सरल बनें !

देश के तन और देश के मन
देश के घर के भाई-बहन
विमल बनें प्रभु विमल बनें!


भूमि, जल. वन और हमारा  पर्यावरण
वनों का प्रबंध
Posted on 13 Feb, 2010 09:35 AM
1946 में ईस्टर्न स्टेट्स एजेंसी के वन सलाहकार डॉ.
नामशेष होता बस्तर
Posted on 13 Feb, 2010 09:19 AM
बस्तर देश के वनवासी-बहुल क्षेत्रों में बचा हुआ आखिरी बड़ा हिस्सा है। देश के बड़े जिलों में वह तीसरे स्थान पर है। वह पूरे केरल राज्य से कुछ बड़ा ही है। उसका क्षेत्रफल 39,060 वर्ग किलोमीटर है, लेकिन 1981 की जनगणना के अनुसार उसकी जनसंख्या 18.4 लाख से कुछ ही ज्यादा है। दो-तिहाई से ज्यादा लोग वनवासी हैं जिले में केवल पांच बड़े कस्बे हैं। जिले भर में पक्की ओर कच्ची दोनों प्रकार की सड़कों की कुल लंबाई 3,
वृक्षारोपण के विचार
Posted on 13 Feb, 2010 08:34 AM
पश्चिम बंगाल की साम्यवादी सरकार सामाजिक वानिकी योजना को भी लुगदी वाले पेड़ लगाने की ही योजना बनाना चाहती है। टीटागर पेपर मिल्स और पश्चिम बंगाल लुगदी-काष्ठ विकास निगम दोनों कमजोर जमीन में व्यापारिक लुगदी वाले पेंड़ और बांस के जंगल लगाने वाले हैं। निगम के अध्यक्ष श्री एके बनर्जी पहले टीटागर पेपर मिल्स के कच्चा माल विभाग के मैनेजर थे। निगम ‘भीतरी’ तथा ‘छीदा’ वृक्षारोपण वाली नीति अपनाने वाला है। भीतर
स्थायी समस्या
Posted on 13 Feb, 2010 08:16 AM
बचे हुए जंगलों और पूरी तरह से उन पर निर्भर लोगों का प्रश्न तो है ही, लेकिन कागज उद्योग के सामने कच्चे माल की जो भयंकर समस्या है, उसे भी नकारा नहीं जा सकता। कागज उद्योग विकास परिषद की कच्चा माल समिति ने हिसाब लगाया है कि सन् 2000 तक अगर प्रति व्यक्ति 4.5 किलोग्राम कागज की खपत के लिए तैयारी करनी हो तो कागज और गत्ते की उत्पादन क्षमता को 42.5 लाख टन तक और न्यूजप्रिंट की उत्पादन क्षमता को 12.89 लाख टन
जंगल खतरे में
Posted on 12 Feb, 2010 07:07 PM
कच्चे माल के ऐसे संकट की हालत में सभी कंपनियां, चाहे निजी हों या सरकारी, बचे हुए घने जंगल के – बस्तर, उत्तर पूर्वी क्षेत्र और अंडमान जैसे-भंडारों में घुसने की होड़ लगा रही हैं। उन्हीं भंडारों के बल पर सरकार भी अपेक्षा रखती है कि नागालैंड के तुली तथा असम के (नवगांव) और कछार में स्थित हिंदुस्तान पेपर कार्पोरेशन की सरकारी मिलें कागज और गत्ते का उत्पादन बढ़ाकर 2,33,000 टन कर देंगी। ये मिलें कच्चे माल
न रहेगा बांस...
Posted on 12 Feb, 2010 06:51 PM
जैसे-जैसे बांस की कमी बढ़ती जा रही है, बांसखोर मिलें छटपटाने लगी हैं, समस्याएं बढ़ रही हैं। वर्तमान वनों का अतिदोहन हो रहा है और सुदूरवर्ती जंगलों का शोषण बढ़ रहा है। भारतीय कागज निर्माता संघ के अध्यक्ष के अनुसार, “गिरे हुए वर्तमान उत्पादन के बावजूद वन-उपजों की मात्रा सीमित होती जाने के कारण कागज के कारखानों में आये दिन हड़बड़ देखने में आती है। मुख्य समस्या
सरकारी वन भूमि
Posted on 12 Feb, 2010 06:38 PM
कहावत है-आंख से दूर, मन से दूर। पिछले चार-पांच सालों में सारा ध्यान आंखों के सामने चले समाजिक वानिकी कार्यक्रमों पर केंद्रित रहा है। इसमें भी खेतों और पंचायती जमीनों में पेड़ लगाने के काम पर ज्यादा बस चली है। लेकिन जो 7.5 करोड़ हेक्टेयर जंगल आंखों से दूर वन विभाग के नियंत्रण में है, उसकी हालत पर लोगों का ध्यान बिलकुल नहीं गया। बुरा हो उस उपग्रह का, जिसकी पैनी निगाह ने इन वनों की खस्ता हालत उघाड़कर
फिर भी दबदबा जारी है
Posted on 12 Feb, 2010 04:45 PM
नई दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के श्री दिनेश कुमार का कहना है कि देश की कृषि-वन संवर्धन योजना में सफेदे के पेड़ों की प्रमुख भूमिका है। खेतों के बीच सफेदा लगाइए, वह तेज हवा को रोक लेता है, मिट्टी में नमी बढ़ाता है और तपन कम करके आसपास की फसलों को बल देता है। इन्हीं कारणों से गुजरात में गेहूं की पैदावार में 23 प्रतिशत और सरसों की पैदावार में 24 प्रतिशत वृद्धि हुई है। आंध्रप्रदेश में मूंगफ
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