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बादल ऊपर क्यों लटका
गरम हवा ऊपर की ओर उठती है और आसपास की ठंडी हवा उसका स्थान लेती है। पानी को गरम करने से जो वाष्प बनती है वह एक तो हल्की (कम घनत्व वाली) होती है और गरम भी । अतः वह गरम हवा के बहाव के साथ ऊपर उठती है। यही प्रक्रिया समुद्र, झीलों और नदियों के साथ भी होती है। यहां ऊष्मा का मुख्य स्रोत सूर्य है। पर पृथ्वी का वायुमंडल पारदर्शी होने के कारण सूर्य की किरणें हवा को गरम किए बगैर पृथ्वी की सतह पर आ पहुंचती हैं और उसे तपाती हैं। अतः दिन में गरम हवा का ऊपर की ओर निरन्तर बहाव रहता है। किसी भी जलाशय के पास ऊपर की ओर बहने वाली गरम हवा अपने में नमी अर्थात जलवाष्प समेट लेती है। Posted on 23 Nov, 2023 01:15 PM

सवाल

जब पानी को गरम करते हैं। और पानी वाष्प बनकर ऊपर जाकर बादलों का रूप धारण कर लेता है तो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से वह नीचे क्यों नहीं खिंचता ? बादल ऊपर ही क्यों रहता है?

जलवाष्प से बनते हैं बादल
भूकंप कब आता है और क्यों आता है? (When does an earthquake occur and why does it occur? In Hindi)
विनाशकारी भूकम्प इतिहास में काली तारीखों के रूप में दर्ज हैं। वैसे तो हर वर्ष दुनिया भर में करीब 50,000 छोटे बड़े भूकम्प आते हैं लेकिन उनमें से 100 विनाशकारी होते हैं। कम से कम एक भूकम्प भयानक विनाश करता है। मानव जीवन के इतिहास में सबसे अधिक तबाही मचाने वाला भूकंप 23 जनवरी 1556 को चीन में आया था,जिसमें लगभग 8 लाख से भी अधिक लोग मारे गये थे। 1 नवम्बर 1755 को लिस्बन, पुर्तगाल में आया भयंकर भूकम्प संभवत: पहला ऐसा भूकम्प था, जिसके विस्तृत अध्ययन के रिकार्ड आज भी सुरक्षित हैं। यह रिकार्ड तत्कालीन पादरियों के प्रेक्षणों पर आधारित थे तथा इनमें पहली बार भूकम्प तथा इसके प्रभावों की सुव्यवस्थित जांच पड़ताल की गई थी। Posted on 23 Nov, 2023 12:40 PM

लातूर और उस्मानाबाद जिलों में तीस सितम्बर 1993 को प्रातः का समय अचानक धरती के थरथरा उठने से वहां के निवासियों पर जो कहर ढला, उससे अभी तक वहां के निवासी उबर नहीं पाये हैं। इसके पूर्व 20 अक्टूबर 1991 को उत्तरकाशी तथा निकटवर्ती जिलों में प्रकृति की यह विनाश लीला देखने को मिली थी। इस भयंकर विनाश का कारण था - भूकम्प, जिसने देश के विभिन्न भागों को झकझोर दिया था।

विनाशकारी भूकम्प
जीवन शैली : इस्राइल की शक्ति का मूल है किब्बुत्ज
इस्राइल के गौरवशाली इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के साथ किब्बुत्जों को चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा है। भले ही इस्राइल की आबादी में किब्बुत्जनिकों का अनुपात कम हो, उनका प्रभाव उस देश के सशक्तिकरण के रूप में विश्व को आज भी दिखाई पड़ रहा है। येरूशलम के पूर्व से लेकर मृत सागर (डेड सी) तक विस्तृत जुडियन डेजर्ट में कहीं-कहीं फसलों से लहराते खेत मिलेंगे, जिन्हें देखकर विश्वास ही नहीं होता कि ऐसी मरुभूमि में भी खेती हो सकती है। यह सब किब्बुत्ज के किसानों का पुरुषार्थ है! Posted on 22 Nov, 2023 12:47 PM

इस्राइल में किसी किच्बुत्ज में रहने का अवसर मिले, तो विश्व के बारे में हमारा दृष्टिकोण ही बदल जाता है। हमारी अर्वाचीन दुनिया में यदि किब्बुत्जजैसी रहन-सहन की अद्भुत और अविश्वसनीय सी संस्कृति कहीं है, तो वह है इस्राइल। अगर सामाजिक नवाचार के कहीं दर्शन होते हैं, तो वह है इसाइल का किब्बुक्ज। इस्राइल विश्व के स्वाभिमानी, स्वावलंबी और वीर राष्ट्रों में से एक है। हिब्रू संस्कृति की हैरान कर देने वाली

 जुडियन डेजर्ट में फसलों से लहराते खेत
खारे पानी में खेती
आसपास की घटनाओं का सूक्ष्म अवलोकन करना और इन अवलोकनों का सैद्धान्तिक जानकारी के साथ तालमेल बिठाना, व्यावहारिक विज्ञान के ये दो मुख्य घटक हैं। इस प्रक्रिया से ही नए आविष्कार जन्म लेते हैं और नए तंत्र विकसित होते हैं’। Posted on 20 Nov, 2023 01:42 PM

समुद्र यानी पानी का अथाह भण्डार, परन्तु सभी जानते हैं। कि पेड़-पौधों व फसलों की सिंचाई के लिए यह पानी सर्वथा अनुपयुक्त होता है। जिस पौधे को समुद्र के पानी से सींचा जाए, वह पौधा कुछ ही समय में मुरझा जाता है। आखिर, ऐसा क्यों होता है ?

खारे पानी में खेती
जल प्रबंधन एवं सिंचाई क्षमता वर्धन रबड़ बाँध एक विकल्प
जल भंडारण का कार्य प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। प्राचीन समय में जब तकनीक इतनी विकसित भी नहीं हुई थी, तब भी लोग तालाब एवं बावड़ी इत्यादि का प्रयोग वर्षा जल के भण्डारण के लिए करते थे। उस समय आबादी कम होने के कारण सीमित जल संसाधनों के होने पर भी मानव के कई दैनिक एवं व्यावसायिक कार्य सुचारू रूप से संपन्न हो जाते थे। जैसे-जैसे जनसंख्या में वृद्धि हुई अन्न की माँग भी बढ़ी इस बढ़ी हुई माँग की पूर्ति हेतु खेती के भू-भाग में बढ़ोत्तरी हुई। इस बढ़ी हुई खेती के भू-भाग की सिंचाई के लिए जल की मांग बढ़ने लगी जल की इस मांग ने बाँध जैसी जल भण्डारण वाली अवसंरचनाओं को जन्म दिया। Posted on 16 Nov, 2023 01:13 PM

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                             

जल प्रबंधन एवं सिंचाई क्षमता वर्धन रबड़ बाँध एक विकल्प
तो डूब जाएगा जकार्ता
मौसम में बदलाव हो रहा है। वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी हो रही है। इस के कारण ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं, जिन का पानी जा कर समुद्र में मिल रहा है। इस से समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। अगर इसी रफ्तार से यह सब चलता रहा तो दुनिया के नक्शे से कई शहर मिट जाएंगे Posted on 03 Nov, 2023 03:39 PM

(जकार्ता इंडोनेशिया की राजधानी है, जहाँ लगभग एक करोड़ लोग रहते हैं। यह दुनिया के सबसे बड़े शहरों में से एक है। इस शहर में रहने वालों के पैरों तले ज़मीन खिसक रही है। बीते दस सालों में यह शहर ढाई मीटर ज़मीन में समा गया है। लोगों के घरों में समुद्र का पानी घुसता चला जा रहा है। लेकिन दलदली ज़मीन पर बसे इस शहर पर बड़ी हाउसिंग और कमर्शियल काम्पलेक्स का निर्माण कार्य लगातार जारी है। इंडोनेशिया के वैज्

तो डूब जाएगा जकार्ता
जलवायु परिवर्तन, गांधी और वैश्विक परिदृश्य
लालच, उपभोग और शोषण पर अंकुश होना चाहिए। विघटनरहित और टिकाऊ विकास का केंद्र बिंदु समाज की मौलिक जरूरतों को पूरा करना होना चाहिए। ऐसा सतत विकास के लिए गांधी जी के विचारों को पुन: समझना और लागू करना ही होगा। Posted on 31 Oct, 2023 12:48 PM

गांधीजी ने कहा था कि धरती सारे मनुष्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम है, लेकिन किसी एक का भी लालच पूरा करने में वह असमर्थ है। जलवायु परिवर्तन या जलवायु विघटन के मूल में गांधी जी का यही विचार निहित है।

जलवायु परिवर्तन, गांधी और वैश्विक परिदृश्य
प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़ों से जीवों पर पड़ने वाले प्रभाव (Harmful effects of the microplastic pollution in hindi)
प्लास्टिक के कणों का स्तर हमारी कल्पना से भी अधिक है। उन्होंने समझाया कि प्लास्टिक एक कृत्रिम पदार्थ है, जो समय के साथ अपनी नमी खोता है और छोटे-छोटे टुकड़ों में बिखरता है। Posted on 30 Oct, 2023 03:49 PM

आज के इस आधुनिक युग में प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़े जल,थल और नभ में इतना प्रसारित हो चुके हैं कि कोई भी जीव इनसे बचा नहीं है। यूरोप एक्वाकल्चर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक हमारे द्वारा गरम पानी में डाले गए टी-बैग से भी ऐसे प्लास्टिक के कण हमारे शरीर में पहुंचकर रक्त में मिलते हैं।

प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़ों से जीवों पर पड़ने वाले प्रभाव
जलवायु परिवर्तन से वर्षा के पैटर्न में हुआ बदलाव
उच्च गर्मी और आर्द्रता का संयोजन हमारे शरीर को ठंडा रखने वाले पसीने के तंत्र को प्रभावित कर सकता है। जब पसीना हमारी त्वचा से उड़ जाता है, तो हमारा शरीर शीतल होता है Posted on 30 Oct, 2023 02:18 PM

जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा के स्वरूप में बदलाव हुआ है। इसका प्रभाव दिल्ली की हवा और तापमान पर भी पड़ा है। दिल्ली में नमी का स्तर बढ़ा है और तापमान में भी थोड़ा सा उतार-चढ़ाव हुआ है। इससे लोगों को परेशानी और असहनीयता का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि 2011 से अब तक महानगर के परिवेशी तापमान में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं हुआ है। यह बात एक हालिया अध्ययन से पता चली है।

जलवायु परिवर्तन से वर्षा के पैटर्न में हुआ बदलाव
हम हिमालय की सुरक्षा क्यों नहीं कर पा रहे हैं
हम हिमालय की सुरक्षा नहीं कर पा रहे हैं, जबकि हिमालय राष्ट्र की जीवनशक्ति है। सिंधु से लेकर ब्रह्मपुत्र तक नदियां हिमनदों से ही निकलती हैं और ये हिमनद ग्लोबल वार्मिंग तथा ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव से पिघलकर पीछे हटते जा रहे हैं। चिंतनशील भारतीय आज इसलिए स्तब्ध हैं कि आखिरकार वैज्ञानिकों की अनवरत चेतावनियाँ देने के बावजूद प्राकृतिक विनाश की प्रत्यक्ष क्षति देखते हुए भी हम हिमालय को अपने अवांछित निर्माण, खनन आदि गतिविधियों से अस्थिर क्यों कर रहे हैं? Posted on 30 Oct, 2023 12:26 PM

यह देखकर हम सभी स्तब्ध हैं कि भूकंप के प्रति संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में जानबूझकर एनटीपीसी द्वारा सुरंगों, मकानों और भारी भरकम बहुमंजिला होटलों का निर्माण क्यों हो रहा है? ब्यूरोक्रेसी भी जानबूझकर क्यों अनजान बन रही है?

हाइड्रो आधारित विद्युत परियोजनाएं,Pc-सर्वोदय जगत
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