प्राकृतिक सन्तुलन बनाए रखने के लिए हमें जल संरक्षण व पौधारोपण पर विशेष ध्यान देना होगा। यह कार्य हर आम व खास आदमी कर सकता है। जल संरक्षण एक सरल प्रक्रिया है...
प्रकृति ने हमें दोनों हाथों से स्वच्छ पर्यावरण दिया है। अंधाधुंध विकास से धरती पर मौजूद प्राकृतिक संसाधन अब प्रभावित हो रहे हैं। सरकार, आम नागरिक, संस्थाएं सब मिलकर ऐसे प्रयास करें कि घटते प्राकृतिक संसाधन फिर से समृद्ध हो सकें। हमें अपने समय में से कुछ समय अवश्य ही प्राकृतिक संसाधनों को बचाने में लगाना चाहिए तथा जल, जंगल, जमीन को बचाने में अपना यथायोग्य योगदान देना चाहिए। हमारी सोच गलत है कि धरती पर मौजूद प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंचाने से उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा। सच तो यह है कि इससे धरती का कुछ नहीं बिगड़ेगा, बल्कि जो प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग करते हैं उनको हानि होगी। धरती में परिवर्तन होना उसकी सतत प्रक्रिया का हिस्सा है। प्राकृतिक सन्तुलन बनाए रखने के लिए हमें जल संरक्षण व पौधारोपण पर विशेष ध्यान देना होगा। यह कार्य हर आम व खास आदमी कर सकता है। जल संरक्षण एक सरल प्रक्रिया है। हम अपने खेतों में, बागीचों में छोटे-छोटे टैंक, कच्चे तालाब बनाकर वर्षा का पानी इकट्ठा कर उसका उपयोग कर सकते हैं। इसी तरह भवनों में जल संग्रहण टैंक बनाकर वर्षा के पानी को प्रयोग में लाया जाता है। हमारे सामने ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जहां जल संग्रहण कर बंजर भूमि को भी उपजाऊ बनाया जा सकता है। यह समय की मांग है और जल के बिना हमारे अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी द्वारा बहुत पहले ही इस बात से आगाह किया गया था कि अगला युद्धजल के लिए ही होगा। अतः जल के महत्व को समझिए तथा जल संरक्षण के लिए हमें अपना योगदान देना चाहिए तभी हम प्रकृति की रक्षा के भागीदार बन सकते हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा अधिसूचना जारी कर सभी तरह के भवनों में जल संरक्षण को जरूरी कर दिया गया है तथा विभागों को निर्देश जारी किए हैं कि जब तक भवनों में जल संरक्षण टैंक न बने तब तक बिजली-पानी के कनेक्शन न दिए जाएं। सरकार का यह सराहनीय कदम है।
अतः हम सब मिलकर प्रयास करें। जल को बचाने में स्वयं पहल करें तथ अन्य सभी को प्रेरित करें। इसीलिए तो कहा है कि 'जल ही जीवन है'। अतः चाहते हो कि जीवन रहे तो जल संरक्षण करना ही होगा। दूसरा महत्वपूर्ण कार्य प्रकृति को बचाने के लिए जो हम सब कर सकते हैं, वह पौधारोपण है। वृक्ष लगाने व उसके पोषण करने को वेद पुराणों में उत्तमकार्य व उत्तम दान की संज्ञा दी गई है। एक वृक्ष लगाने से व्यक्ति को सैकड़ों वर्षों तक उसका पुण्य मिलता है, क्योंकि उस पेड़ पर असंख्य जीव-जन्तुओं का
बसेरा व भरण-पोषण होता है। इसलिए हमारी पुरानी परम्परा रही है कि लगभग सभी धर्मों के लोग किसी न किसी रूप में जल व वृक्षों की पूजा करते हैं। हमारे लिए यह बिलकुल सरल कार्य है कि जहां भी जगह उपलब्ध हो, वहीं पेड़ लगाकर उसका पोषण करें।
आप धन्य हो जाएंगे। हमें अगर वृक्षों को पोषण करना है तो हमें अपनी सोच बदल कर इसके साथ लोगों की भावनाओं को जोड़कर कार्य करना होगा, जिसमें पेड़ लगाने व उनके पोषण का धर्म, समाज, संस्कार जैसे दिन, विवाह, वर्षगांठ इत्यादि के साथ जोड़कर लोगों को प्रेरित करना चाहिए। हमें सबसे पहले उन स्थानों का चयन करना होगा, जहां पौधारोपण हो सकता है। इसके बाद सबसे पहले उन लोगों से पेड़ लगवाना सुनिश्चित करें, जो वहां की महान हस्तियां हैं, चाहे वे राजनीतिक लोग हों, चाहे धार्मिक किसी भी समुदाय से हो उन सबके नाम से पेड़ लगावाएं उनका पोषण करें आम लोग देखेंगे तो अनुसरण करेंगे। जहां-जहां पेड़ लगाए जाते हैं, उनके पोषण की जानकारी पर्यावरण से जुड़े संस्थानों व गैर सरकारी संस्थानों को भी देनी चाहिए तथा पौधारोपण के बाद कम से कम 90 प्रतिशत वृक्ष बचें। इसके लिए जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए। हमें यह संकल्प लेना होगा कि हर वर्ष में कम से कम एक वृक्ष अवश्य लगाएं व उसका पोषण करें, जिसको किसी कारण समय नहीं तो इसके लिए धनराशि व अन्य संसाधन उपलब्ध करवाने में अपना योगदान दें, तभी हम सभी के सहयोग से प्रकृति का संरक्षण कर सकते हैं। 'प्रकृति परमात्मा की बहुत ही सुन्दर व सजीव परिधान है।' आज पर्यावरण दिवस के अवसर पर हमें इसकी रक्षा की प्रतिज्ञा लेनी चाहिए। हमें प्रकृति ने जल, जमीन, वायु, पेड़-पौधे व स्वच्छ पर्यावरण दिया है। हमारा दायित्व है कि हम इस धरोहर को सहेज कर रखें। यदि सुधार न सकें तो बिगाड़े भी नहीं।
स्रोत-लेखक-पुरुषोत्तम सिंह चौधरी, कार्यकारी अधिकारी है।
(दिव्य हिमाचल, 16 फरवरी, 2012)
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