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दुनिया
बदलते मौसम का विज्ञान
Posted on 02 Jul, 2024 09:09 AMपिछले कई वर्षों में पूरा देश इस सदी के सबसे भंयकर सूखे की चपेट में था. सूखे ने करोड़ों की फसल बरबाद कर दी, हजारों पशुओं को मौत के कगार पर ला दिया और लाखों परिवारों को दाने-दाने के लिए मोहताज कर दिया. बदलते मौसम का कहर केवल हमारे देश पर ही नहीं हैं, दुनिया भर में यह बीमारी फैल चुकी है. मौसम में हो रहे इन बदलावों का कारण जानने के लिए दुनिया भर में अनुसंधान हो रहे हैं.

तैरती खेती : जलवायु संकट से प्रभावित भूमिहीन समुदायों की आजीविका के लिए जलमग्न भूमि का उपयोग
Posted on 19 Jun, 2024 08:09 PMबदलती "वैश्विक जलवायु" का प्रतिकूल प्रभाव हमारे जन-जीवन, पर्यावरण और कृषि व्यवसाय पर "जलवायु संकट" यानी घातक प्राकृतिक आपदाओं (तूफान, भारी वर्षा व हिमपात, बाढ़, सूखा और हिमस्खलन आदि) की बढ़ती आवृत्ति एवं तीव्रता के रुप में स्पष्ट दिखाई दे रहा है। बाढ़ का मुख्य कारण, वैश्विक ऊष्मन है, जिससे गर्म हवा, अधिक जल वाष्प धारण कर सकती है। परिणामस्वरूप कम समय में भारी वर्षा हो रही है, जिससे मृदा क्षरण व

स्नो अपडेट रिपोर्ट-2024 : हिंदुकुश हिमालय पर इस वर्ष बर्फबारी में रिकॉर्ड स्तर की कमी, पानी बोओ शुरू करना होगा
Posted on 18 Jun, 2024 04:17 PMहिंदुकुश हिमालयी क्षेत्र में इस वर्ष हिमपात में अभूतपूर्व कमी आने से जल संकट की संभावना और भी मजबूत हो गई है। हाल ही में प्रकाशित एक शोधपत्र में वैज्ञानिकों ने इस पर गंभीर चेतावनी जारी की है। रिपोर्ट के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से हिमालय पर हिमपात की मात्रा में कमी के कारण, पहाड़ों के नीचे बसे समुदायों को पेयजल की गंभीर कमी का सामना करना पड़ सकता है। 'नेपाल स्थित ‘अंतर्राष्ट्रीय पर्वतीय

बावड़ियाँ: प्राचीन भारत के भूले-बिसरे एवं विश्वसनीय जल स्रोत (भाग 1)
Posted on 15 Jun, 2024 08:56 AMभारत में इन सीढ़ीनुमा कुओं को आमतौर पर बावड़ी या बावली के रूप में जाना जाता है, जैसा कि नाम से पता चलता है कि इसमें एक ऐसा कुआ होता है जिसमें उतरते हुए पैड़ी या सीढ़ी होती है। भारत में, विशेषकर पश्चिमी भारत में बावली बहुतायत में पाई जाती हैं और सिंधु घाटी सभ्यता काल से ही इसका पता लगाया जा सकता है। इन बावड़ियों का निर्माण केवल एक संरचना रूप में ही नहीं किया गया था। अपितु उनका मुख्य उद्देश्य व्य

भारत के पंजाब राज्य में भूजल प्रदूषकों फ्लोराइड, आयरन और नाइट्रेट प्रभावित क्षेत्रों का मानचित्रण
Posted on 14 Jun, 2024 07:03 PMजलवायु परिवर्तन एवं अन्य प्राकृतिक परिवर्तनों के परिपेक्ष में भूजल संसाधन, जल के महत्वपूर्ण संसाधन हैं हालांकि कुछ प्राकृतिक एंव कुछ मानव जनित कारणों ने इन संसाधनों के पुनर्भरण की मात्रा एवं गुणवत्ता को प्रभावित किया है। मानवीय गतिविधियों एवं प्राकृतिक रूप से अकार्बनिक रसायन, मृदा, तलछट एवं चट्टानों से बिंदु स्रोत या गैर बिंदु स्रोत के रूप में भूजल प्रणाली में प्रवेश करते हैं जिसके कारण भूजल की

पीने योग्य पानी की कमी और इसका सही उपयोग
Posted on 12 Jun, 2024 06:15 AMजल हमारे जीवन के लिए बेहद जरूरी है, जल के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन आजकल जल का व्यर्थ इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसकी वजह से आज भारत समेत पूरी दुनिया में जल की भारी कमी है। वहीं सोचने वाली बात तो यह है कि घरती पर 2 तिहाई हिस्सा पानी होने के बावजूद पीने योग्य शुद्ध पेयजल सिर्फ 1 प्रतिशत ही है। 97 फीसदी जल महासागर में खारे पानी के रुप में भरा हुआ है, जबकि 2 प्रतिशत जल का हिस्सा

अंटार्कटिका में घट रही है बर्फ
Posted on 10 Jun, 2024 04:12 PMअंटार्कटिका से हिमखंड कट रहे हैं
जलवायु परिवर्तन के संकेत अब अंधी आंखों से भी दिखने लगे हैं। नये शोध बताते हैं कि अंटार्कटिका से हिमखंड तो टूट ही रहे हैं, वायुमंडल का तापमान बढ़ने के कारण बर्फ भी तेज़ी से पिघल रही है। जलवायु बदलाव का बड़ा संकेत संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में भी देखने में आया है। बीते 75 सालों में यहां सबसे अधिक बारिश रिकॉर्ड की गयी है। 24 घंटे में 10 इंच से ज़्यादा

भारतीय लोक संस्कृति और साहित्य में जल की महिमा
Posted on 10 Jun, 2024 06:25 AMयदि हम प्राचीन ग्रंथों की बात करें तो ऋग्वेद में जल संरक्षण करने का उल्लेख मिलता है। अथर्ववेद में भी लोगों को जल संरक्षण के लिए आगाह किया गया है। इसके अलावा, तैतरीय उपनिषद, छांदग्योपनिषद और शंख स्मृति में भी कहा गया है कि पानी असीमित नहीं है, उसकी मात्रा निश्चित है। इसलिए उसे बचाने की चेतावनी दी गई है।

मिलकर भविष्य संवारें
Posted on 09 Jun, 2024 07:24 PMक्लाइमेट में हो रहे परिवर्तन के खतरनाक परिणामों से विश्व का कोई कोना अछूता नहीं है। बढ़ता तापमान पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति को, प्राकृतिक विनाश को, खाद्यान्न और पानी की असुरक्षा, आर्थिक उतार-चढ़ाव को, अन्य संघर्षों को बढ़ावा ही दे रहा है। समुद्र का जल-स्तर बढ़ रहा है, आर्कटिक पिघल रहा है, कोरल रीफ मर रहे हैं, समुद्रों में तेज़ाब की मात्रा बढ़ रही है, जंगल जल रहे हैं। स्पष्ट है स्थितियां अनुक

संयुक्त राष्ट्रसंघ के जलशांति वर्ष-2024 के अवसर पर एक अपील
Posted on 09 Jun, 2024 02:55 PMभारत में हम लोग जल को शांति का प्रतीक मानते आये हैं। जब भी हम यज्ञ अग्नि से करते हैं, तो उसकी शुरूआत, और सम्पन्नता भी, जल से ही होती है। यज्ञ-स्थल की जल से परिक्रमा करके, शांति को आहूत करते हैं। मतलब यह कि भारत जलशांति, व्यवहार, संस्कार और तीर्थपन में सदाचारी रहा है। भारत और दुनिया के सभी धर्मों में जल को जीवन आधार माना गया है। सभी धर्मों में अलग- अलग तरीकों से इसके दर्शन होते हैं।
