हिंदुकुश हिमालयी क्षेत्र में इस वर्ष हिमपात में अभूतपूर्व कमी आने से जल संकट की संभावना और भी मजबूत हो गई है। हाल ही में प्रकाशित एक शोधपत्र में वैज्ञानिकों ने इस पर गंभीर चेतावनी जारी की है। रिपोर्ट के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से हिमालय पर हिमपात की मात्रा में कमी के कारण, पहाड़ों के नीचे बसे समुदायों को पेयजल की गंभीर कमी का सामना करना पड़ सकता है। 'नेपाल स्थित ‘अंतर्राष्ट्रीय पर्वतीय एकीकृत विकास केंद्र’ (ICIMOD) के प्रमुख विज्ञानियों ने, पानी के प्रबंधन से संलग्न अधिकारियों से सूखा प्रबंधन की रणनीति और पानी की आपातकालीन सप्लाई के उपायों को अपनाने का सुझाव दिया है।
स्नो अपडेट रिपोर्ट-2024 क्या कहती है
स्नो अपडेट रिपोर्ट-2024 के अनुसार, हिंदू कुश हिमालय में फिलहाल के सालों में बर्फबारी काफी कम हो रही है, जिससे निचले इलाकों के समुदायों के लिए जल सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता पैदा हो गई है। नेपाल स्थित अंतर-सरकारी संगठन, इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) के प्रमुख विशेषज्ञों ने जल प्रबंधन अधिकारियों से सूखा प्रबंधन रणनीतियां शुरू करने और आपातकालीन जल आपूर्ति उपायों को शुरू करने का आग्रह किया है। हिंदू कुश हिमालय (HKH) क्षेत्र क्रायोस्फीयर पर बहुत अधिक निर्भर करता है - पृथ्वी की सतह पर जमे हुए पानी, जिसमें बर्फ, पर्माफ्रॉस्ट और ग्लेशियरों, झीलों और नदियों से बर्फ शामिल है। यह जमे हुए पानी एचकेएच क्षेत्र में रहने वाले लगभग 240 मिलियन (24 करोड़) लोगों के लिए मीठे पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है और इससे निचले इलाकों में रहने वाले लगभग 1.65 बिलियन (165 करोड़) लोगों को दूरगामी लाभ होता है।
रिपोर्ट के अनुसार, इस साल पूरे क्षेत्र में हुई बर्फबारी सामान्य स्तर के मुकाबले काफी कम, लगभग पांचवें हिस्से तक, दर्ज की गई है। सबसे अधिक कमी पश्चिमी क्षेत्र में हुई है, जहां से जल स्रोतों की प्रमुख आपूर्ति होती है। हालिया स्नो अपडेट रिपोर्ट के मुताबिक, गंगा बेसिन में सामान्य से 17% कम और ब्रह्मपुत्र बेसिन में 14.6% कम बर्फबारी हुई है। हेलमंद नदी के बेसिन में 31.8% की सबसे ज्यादा कमी देखी गई है। पहले सबसे कम स्तर 2018 में था, जहां 42% की कमी हुई थी।
आईसीआईएमओडी की वरिष्ठ हिमनद विशेषज्ञ मिरियम जैक्सन ने कहा कि एजेंसियों को विशेषकर प्रारंभिक गर्मियों में संभावित सूखे की स्थितियों से निपटने के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए। “पानी की कमी को समायोजित करने के लिए योजनाओं को अपडेट करना होगा, और समुदायों को जोखिमों की सूचना देनी होगी।” “इसके अलावा, यह स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में सरकारों और लोगों को हिमपात में परिवर्तनों के अनुकूलन के लिए तत्काल सहायता की आवश्यकता है, जिसे कार्बन उत्सर्जन पहले ही सुनिश्चित कर चुका है। G20 देशों को पहले से कहीं अधिक तेजी से उत्सर्जन में कमी करनी होगी, ताकि पहाड़ों में हिमपात पर निर्भर मुख्य आबादी केंद्रों यानी बड़े पहाड़ी शहरों और उद्योगों पर होने वाले और भी परिवर्तनों से, जो विनाशकारी साबित हो सकते हैं, से बचा जा सके,” ।
बर्फ पिघलने से नदियों में पानी
हिन्दुस्तान में छपी एक रिंपोर्ट बताती है कि हिंदु कुश हिमालय क्षेत्र पहाड़ों की सतह पर जमे पानी पर व्यापक रूप से निर्भर करता है, जिसमें बर्फ, पर्माफ्रॉस्ट (ऐसी सतह जो पूरी तरह से जमी हुई होती है), बर्फ के पहाड़, झील और नदियां शामिल हैं। इस क्षेत्र के लगभग 24 करोड़ लोगों के लिए यह जमा हुआ पानी ताजे जल का एक महत्वपूर्ण स्रोत है और निचले इलाके में 165 करोड़ लोगों को दूरगामी लाभ होता है। इस क्षेत्र से शुरू होने वाली 12 प्रमुख नदी घाटियों के कुल जल प्रवाह का लगभग 23 प्रतिशत हिस्सा बनता है। इसका योगदान नदी दर नदी अलग-अलग होता है। हेलमंद के जल प्रवाह में 77 प्रतिशत और सिंधु में 40 प्रतिशत पानी उसी बर्फ के पिघलने से आता है।
ऐसे में करना क्या है
विशेषज्ञों ने कहा कि पहाड़ी वर्षा जल संचयन तरीकों को बढ़ावा देने और स्थानीय जल समितियों की मजबूती प्रदान करने से ‘हिन्दू कुश हिमालय’ क्षेत्र में सामान्य से कम बर्फबारी के पानी की आपूर्ति पर होने वाले तत्काल प्रभावों को कम करने में मदद मिल सकती है। हालांकि, जलवायु परिवर्तन के प्रति दीर्घकालिक प्रतिरोधकता सुनिश्चित करने के लिए, अंतर-सीमा नदियों को साझा करने वाले देशों को अपने जल प्रबंधन कानूनों को अपडेट करने में सहयोग करना होगा। हिमपात पर निर्भर दक्षिण एशिया में पानी की कमी से निपटने के लिए ऐसी क्रियाएं महत्वपूर्ण हैं।
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