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ई-कचरे से बढ़ता संकट
Posted on 11 May, 2012 08:05 AM दुनिया भर में 80 प्रतिशत ई-वेस्ट चीन, पाकिस्तान और भारत में पैदा होता है और दुर्भाग्य है कि ई-वेस्ट को मैनेज करने के बारे में सबसे कम जागरूकता इन्हीं देशों में देखने को मिलती है। ई-वेस्ट निश्चित तौर पर कई बीमारियों को तो जन्म देता ही है उसके साथ पर्यावरण के लिए भी भयानक खतरा पैदा करता है और ये खतरा भारतीयों की बढ़ती तादात के बाद और भी भयानक रूप में सामने आने की कगार पर है। इसी ई-कचरे के बारे मे
प्रलय के पदचिह्न
Posted on 30 Apr, 2012 03:37 PM भारत में पूर्वाशा और बांग्लादेश में दक्षिणी तालपट्टी कहा जाने वाला द्वीप समुद्र में समा चुका है, तो घोड़ामारा द्वीप का 90 फीसदी हिस्सा जलसमाधि ले चुका है। क्या यह प्रलय की आहट है? न भी हो तो भी बंगाल की खाड़ी में समुद्र का 3.3 मिमी प्रतिवर्ष की रफ्तार से बढ़ता जलस्तर वर्ष 2020 तक 14 द्वीपों का अस्तित्व मिटा चुका होगा। इन्ही द्वीपों के बढ़ते संकट को उजागर कर रहे हैं दीपक रस्तोगी।

वैज्ञानिकों की नजर में भारत का घोड़ामारा द्वीप, समंदर बढ़ने के खतरे का सबसे बड़ा उदाहरण है। यह द्वीप क्षेत्रफल में सबसे बड़ा और जैव-विविधता के लिहाज से समृद्ध रहा है। पिछले कुछ वर्षों में तो यह मशहूर पर्यटन स्थल भी बन चुका था। बंगाल की खाड़ी में स्थित यह द्वीप कभी नौ वर्ग किलोमीटीर के क्षेत्र में फैला हुआ था। पिछले 25 वर्षों में इसका क्षेत्रफल घटकर 4.7 वर्ग किलोमीटर रह गया है। इस द्वीप को लेकर बड़े पैमाने पर चिंता जताई जा रही है।

ये प्रलय के पदचिह्न नहीं तो और क्या हैं? समंदर का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है और जीवन से सराबोर द्वीप शनैःशनैः जलसमाधि ले रहे हैं। भारत और बांग्लादेश जिस एक द्वीप पर अपना हक जताते हुए पिछले तीन दशकों से खुद को विवादों में उलझाए हुए थे उसका आदर्श न्याय प्रकृति ने खुद ही कर दिया है। ताजा शोध रपटों के अनुसार, भारत द्वारा पूर्वाशा और बांग्लादेश द्वारा दक्षिणी तालपट्टी नाम से अलंकृत साढ़े तीन वर्ग किलोमीटर का वह द्वीप अब समुद्र में समा चुका है। बंगाल की खाड़ी में 70 के दशक में खोज निकाले गए एक द्वीप पर दोनों ही देश अपना हक जता रहे थे।
ब्रह्मपाश में ब्रह्मपुत्र
Posted on 25 Apr, 2012 12:32 PM भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की जीवनरेखा ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन द्वारा बांध बनाए जाने के बाद ब्रह्मपुत्र नदी में पानी का लेवल गिर गया है कही-कहीं तो ब्रह्मपुत्र नदी को पैदल ही पार किया जा रहा है। चीन के द्वारा बांध की वजह से भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के किसान और मछुआरों का जीवन संकट में आ गया है। इसी आने वाली संकट के बारे में बताती रंजीत की रिपोर्ट
शहरीकरण रुके तो कार्बन उत्सर्जन थमे
Posted on 21 Apr, 2012 02:44 PM

हालांकि दूसरे एशियाई देशों के मुकाबले भारत में अब भी शहरीकरण की दर बहुत कम है। दक्षिण कोरिया में 81 प्रतिशत, मले

पृथ्वी रहेगी तो जीवन बचेगा
Posted on 18 Apr, 2012 12:24 PM

पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल पर विशेष


ग्लोबल वार्मिंग आज पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर चुनौती बन गई है। सबसे अजीब बात यह है कि जो विकसित देश इस समस्या के लिए अधिक जिम्मेदार हैं वहीं विकासशील व अन्य देशों पर इस बात के लिए दबाव बना रहे हैं कि वो ऐसा विकास न करें जिससे धरती का तापमान बढ़े। हालांकि वो खुद अपनी बात पर अमल नहीं करते लेकिन दूसरों देशों को शिक्षा देते हैं। बहरहाल बात चाहे जो हो विभिन्न देशों के आपसी विवाद में नुकसान केवल हमारी पृथ्वी का ही है।

पृथ्वी पर कल-कल बहती नदियां, माटी की सोंधी महक, विशाल महासागर, ऊंचे-ऊंचे पर्वत, तपते रेगिस्तान सभी जीवन के असंख्य रूपों को अपने में समाए हुए हैं। वास्तव में अन्य ग्रहों की अपेक्षा पृथ्वी पर उपस्थित जीवन इसकी अनोखी संरचना, सूर्य से दूरी एवं अन्य भौतिक कारणों के कारण संभव हो पाया है। इसलिए हमें पृथ्वी पर मौजूद जीवन के विभिन्न रूपों का सम्मान और सुरक्षा करनी चाहिए। परंतु पिछले कुछ दहाईयों के दौरान मानवीय गतिविधियों एवं औद्योगिक क्रांति के कारण पृथ्वी का अस्तित्व संकट में पड़ता जा रहा है। दिशाहीन विकास के चलते इंसानों ने प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया है। परिणामस्वरूप आज हवा, पानी और मिट्टी अत्यधिक प्रदूषित हो चुके हैं। इस प्रदूषण के कारण कहीं लाइलाज गंभीर बीमारियां फैल रही हैं तो कहीं फसलों की पैदावार प्रभावित हो रही है।
गंगा नदी मुद्दा : मुख्यमंत्रियों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं में मतभेद
Posted on 18 Apr, 2012 11:49 AM

इस बैठक में जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद शामिल नहीं हो सके। लेकिन पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने

बौने होकर हम बच जाएंगे
Posted on 16 Apr, 2012 05:03 PM

कुछ वैज्ञानिक समुद्र में लोहे का अंश बढ़ाने की बात करते हैं। उनका तर्क है कि इससे कार्बन सोखने वाले प्लैंकटन को

मिट्टी हमारा साथ छोड़ रही है
Posted on 14 Apr, 2012 04:17 PM

हम मिट्टी को यों ही हलके में लेते रहेंगे, तो यह तसवीर नहीं बदलने वाली। इसका खामियाजा आखिरकार हमें ही भुगतना पड़ेग

soil
जल मापने का महंगा पैमाना
Posted on 13 Apr, 2012 12:07 PM

भारत की अस्सी प्रतिशत आबादी बीस रुपए प्रतिदिन से कम पर गुजारा करती है। ऐसे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि

मैला और मुकुट के बीच गहरा फासला
Posted on 13 Apr, 2012 10:34 AM

आधुनिक भारत में इंसान की गुलामी के अब दो ही नमूने मिलते हैं। रिक्शे पर बैठे आदमी को उसे चलाने वाला मेहनतकश आदमी ही ढोता है। इसके अलावा आदमी ही आदमी का मैला सिर पर ढोता है। इन दोनों मामलों में मैला ढोने की कुप्रथा कहीं ज्यादा शर्मनाक है। ज्यादा अफसोसजनक यह है कि देश के कानून, सरकार, आयोग, पुलिस या प्रशासन सभी के लिए इस कुप्रथा का खात्मा सदियों से चुनौती बना हुआ है।

केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट को दी गई एक हालिया जानकारी के मुताबिक सदियों पुरानी मैला कुप्रथा को जड़ से खत्म करने के लिए आगामी मानसून सत्र में एक विधेयक पेश करने की तैयारी हो रही है। एक अनुमान के मुताबिक अकेले इसी इस अमानवीय कुप्रथा के शिकंजे में देश भर में आज भी पांच लाख से ज्यादा लोग फंसे हैं। जबकि लाखों लोग ऐसी दूसरी कुप्रथाओं का भी त्रासद दुख भोग रहे हैं। कुप्रथाओं पर लगाम लगाने के प्रयासों में पाबंदी से ज्यादा उन पीड़ितों के पुनर्वास की जरूरत होती है। लेकिन इस दिशा में हो रहे प्रयासों की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगता है कि उस जनहित याचिका के 2003 में दायर होने के 9 साल बाद इस विधेयक के लाने की मंशा उच्चतम न्यायालय को बताई गई है।
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