ब्रह्मपाश में ब्रह्मपुत्र

भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की जीवनरेखा ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन द्वारा बांध बनाए जाने के बाद ब्रह्मपुत्र नदी में पानी का लेवल गिर गया है कही-कहीं तो ब्रह्मपुत्र नदी को पैदल ही पार किया जा रहा है। चीन के द्वारा बांध की वजह से भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के किसान और मछुआरों का जीवन संकट में आ गया है। इसी आने वाली संकट के बारे में बताती रंजीत की रिपोर्ट

भारत-चीन के बीच नदी जल बंटवारे को लेकर न तो कोई द्विपक्षीय और न कोई अंतर्राष्ट्रीय संधि है। सन् 1997 में संयुक्त राष्ट्र में जब सरहदी नदियों के जल बंटवारे को लेकर कानून बन रहे थे, तो चीन ने इसे अपने वीटो से निरस्त कर दिया था। लेकिन भारत की नीति आज भी अनिश्चित और अस्पष्ट है। अरुणाचल और सिक्किम में बड़े पैमाने पर बांधों को मंजूरी देने के बाद भारत बांधों के विरोध का नैतिक अधिकार भी गंवा चुका है।

अपनी भौगोलिक विशिष्टता और भीषण बाढ़ के लिए मशहूर ब्रह्मपुत्र नदी (चीन में यारलंग सांगपो, अरुणाचल में सिआंग, असम में ब्रह्मपुत्र, बांग्लादेश में जमुना/मेघना कहलाने वाली) पिछले कुछ वर्षों से विवाद के चलते सुर्खियों में है। अरुणाचल प्रदेश और असम समेत लगभग समूचे पूर्वोत्तर में यह नदी अब अफवाहों और सनसनी का पर्याय है। ताजा सनसनी एक मार्च को फैली। एक मार्च की सुबह उत्तरी अरुणाचल के पासीघाट का ओइन मोयांग नामक किसान अपनी फसलों को देखने ब्रह्मपुत्र के कछार की ओर गया था। बकौल मोयांग, 'जैसे ही मेरी नजर नदी की ओर गयी, मैं सन्न रह गया। समूची नदी लगभग सूखी थी। मैंने पास खड़े गोरख साहनी नाम के मछुआरे को आवाज दी।' गोरख ने पूछा, 'अब मैं क्या करूंगा? मैंने तो सारी जिंदगी मछली पकड़ी है।' मोयांग ने फोन से इसकी सूचना मुख्यमंत्री के सलाहकार ताको दबी को दी, जो उसके दूर के रिश्तेदार भी हैं। इसके बाद यह एक अंतर्राष्ट्रीय खबर बन गयी।

ताको दबी ने अगले दिन इलाके का दौरा किया और बयान दिया कि 'शायद सांगपो नदी पर चीन के बांध बनाने और धारा मोड़ने के कारण सिआंग नदी सूख गयी है।' इसे संयोग ही कहा जायेगा कि उस दिन चीन के विदेश मंत्री यांग जाइची अपने दो दिवसीय भारत दौरे पर नयी दिल्ली में थे। जाइची के प्रवक्ता हांग ली ने दबी के बयान को खारिज करते हुए कहा,'तिब्बत की जरूरतों के मद्देनजर चीन ने सांगपो नदी के जांगमू में एक जलविद्युत संयंत्र शुरू किया है, लेकिन यह बहुत बड़ा नहीं है और इससे नदी के पश्च-प्रवाह (डाउनस्ट्रीम) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।' उधर असम और अरुणाचल में कुछ संगठनों ने चीन की बांध-नीति और केंद्र सरकार की चुप्पी के खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिया, तब केंद्र सरकार को स्पष्टीकरण देना पड़ा। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय की ओर से प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा गया कि 'ब्रह्मपुत्र की धारा को मोड़ने के संबंध में राज्य सरकार ने जो संदेह व्यक्त किया है, वह तथ्यविहीन है।' केंद्र से अपेक्षित सहयोग न मिलते देख राज्य सरकार भी खामोश हो गयी।

स्थानीय अधिकारियों ने भी इसे अफवाह करार दिया। वैसे मीडिया-रिपोर्ट में लगातार दावा होता रहा है कि पासीघाट इलाके में नदी के जल-स्तर में अप्रत्याशित कमी देखी जा रही है। कई जगहों पर लोग नदी को पैदल ही पार कर रहे हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने इस मामले पर मिट्टी डालकर इसे कुछ देर के लिए ठंडा कर दिया है, लेकिन आने वाले समय में यह और गरमाने को है। इसके कई कारण हैं। पहली बार यह मामला सन् 2002 में उठा था, जब तिब्बत मामलों के विशेषज्ञ फ्रांसीसी पत्रकार क्लॉद अर्पी ने इसका खुलासा किया था। क्लॉद ने लिखा था कि 'चीन सांगपो और उसकी सहायक नदियों पर श्रृंखलाबद्ध बांध बनाने जा रहा है। वह अपने सूखाग्रस्त उत्तरी-पश्चिमी प्रांतों को पानी मुहैया कराने के लिए सांगपो समेत कई नदियों की धारा मोड़ने पर भी विचार कर रहा है।' सन् 2002 से लेकर 2010 तक इस मुद्दे पर नदी विशेषज्ञों, सामरिक विशेषज्ञों और पत्रकारों में बहस होती रही।

इस बीच आधी-अधूरी, अपुष्ट जानकारी, अस्पष्ट तस्वीरों, आकलन और अनुमानों के आधार पर चीन द्वारा बांध बनाने और धारा मोड़ने की खबरें आती रहीं, जिन्हें चीन के अलावा भारत सरकार भी खारिज करती रही। पहली बार नवंबर 2009 में नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी (एनआरएसए) की उपग्रहीय तस्वीरों से इस बात के प्रमाण मिले कि तिब्बत के जांगमू में सांगपो नदी पर कोई निर्माण-कार्य चल रहा है। चीन इसे खारिज करता रहा और भारत की ओर से भी कोई बयान नहीं आया। पंद्रह नवंबर, 2010 को चीन ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया कि उसने जांगमू में एक बांध शुरू किया है। तब भी केंद्र सरकार खामोश ही रही। इसे आश्चर्य ही कहा जायेगा कि नवंबर 2009 में एनआरएसए से तस्वीर मिलने के बावजूद भारत ने यह मसला नहीं उठाया। अप्रैल 2010 में तत्कालीन विदेश मंत्री एसएम कृष्णा द्वारा राज्य सभा में दिया गया बयान इसका प्रमाण है।

पासीघाट के पास ब्रह्मपुत्र नदीपासीघाट के पास ब्रह्मपुत्र नदीउन्होंने स्वीकार किया था कि 'पिछले चीन दौरे पर मैंने चीन सरकार के साथ जांगमू मुद्दे पर कोई बात नहीं की।' लेकिन यह बात लगभग स्थापित है कि चीन अपनी महत्वाकांक्षी 'उत्तर-दक्षिण नदी परिवर्तन' योजना पर काफी आगे बढ़ चुका है। सांगपो और उसकी सहायक नदियों के पानी को वह जल-संकट से त्रस्त उत्तरी-पश्चिमी प्रांतों जिंगजियांग और गानसू ले जाना चाहता है, जो गोबी मरुस्थल के पास हैं। भारतीय नदी विशेषज्ञों के अलावा नदी और जल पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सेमिनारों में चीनी नदी विशेषज्ञ भी इसका उल्लेख करते रहे हैं। सामरिक विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी कहते हैं,'चीन लंबे समय से इस योजना पर काम कर रहा है। इसमें उसे पानी, बिजली के अलावा सामरिक फायदे भी दिख रहे हैं।' कहा जाता है कि अकेले जांगमू-लहोका इलाके में पांच बांध बनाये जा रहे हैं। यह बात और है कि खुद चीन सरकार के अंदर एक लॉबी है जो अब भी इसका विरोध करती है।

कई चीनी अभियंताओं ने 'उत्तर-दक्षिण परिवर्तन योजना' को वैज्ञानिक तौर पर असंगत बताया है। इतना ही नहीं, हाल के वर्षों में नेपाली मीडिया में कुछ खबरें आयी हैं, जिनके मुताबिक, चीन मध्य तिब्बत इलाके में भी बांध बना रहा है। इससे इस इलाके की छोटी नदियों के अस्तित्व पर बन आयी है। आने वाले दिनों में कोसी, बागमती और गंडक के अस्तित्व पर भी सवाल उठ सकते हैं। अगर ये आशंकाएं आंशिक रूप से भी सच हैं, तो दक्षिण एशिया के पर्यावरण, जैव-विविधता, जल-चक्र और शांति के लिए यह चिंता का विषय है। सवाल है कि समाधान क्या है? इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि भारत-चीन के बीच नदी जल बंटवारे को लेकर न तो कोई द्विपक्षीय और न कोई अंतर्राष्ट्रीय संधि है। सन् 1997 में संयुक्त राष्ट्र में जब सरहदी नदियों के जल बंटवारे को लेकर कानून बन रहे थे, तो चीन ने इसे अपने वीटो से निरस्त कर दिया था। सन् 1997 की मौजूदा संधि किसी भी देश को अपनी जमीन पर बांध-तटबंध बनाने से मना नहीं करती। बावजूद इसके पश्चप्रवाह (डाउनस्ट्रीम) के देशों को अपनी बात रखने के अधिकार हैं।

लेकिन भारत की नीति आज भी अनिश्चित और अस्पष्ट है। अरुणाचल और सिक्किम में बड़े पैमाने पर बांधों को मंजूरी देने के बाद भारत बांधों के विरोध का नैतिक अधिकार भी गंवा चुका है। कुछ समय पहले अरुणाचल सरकार ने यह कहकर खुद को हंसी का पात्र बना लिया था कि चीन को जवाब देने के लिए वह धड़ाधड़ बांध निर्माण की अनुमति दे रही है। गौरतलब है कि डाउनस्ट्रीम के बांध अपस्ट्रीम के बांध का कुछ बिगाड़ नहीं सकते। केंद्रीय जल संसाधन विभाग से भी एक अटपटा बयान आया कि चीन की योजना से घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि भारत में ब्रह्मपुत्र का जल-ग्रहण चीन से ज्यादा है। वैसे मौजूदा बजट में सरकार ने चीन से ब्रह्मपुत्र के आंकड़े साझा करने के लिए 106 करोड़ रुपये का प्रबंध कर एक सकारात्मक पहल जरूर की है। लेकिन इस मामले में समुचित कूटनीतिक पहल करने में भारत अब तक नाकाम रहा है। यह स्थिति तब है जब चीन के एकपक्षीय बांध निर्माण को लेकर बांग्लादेश, म्यांमार, कंबोदिया, लाओस, वियतनाम और थाईलैंड भी काफी नाराज हैं।

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