भरतलाल सेठ

भरतलाल सेठ
जल मापने का महंगा पैमाना
Posted on 13 Apr, 2012 12:07 PM

भारत की अस्सी प्रतिशत आबादी बीस रुपए प्रतिदिन से कम पर गुजारा करती है। ऐसे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि

अमृत का जहर हो जाना
Posted on 10 Mar, 2012 10:47 AM

गोरखपुर की महापौर अंजु चौधरी का कहना है कि नदी समस्या बन गई है। यहां के विकास अधिकारी नए-नए उद्योगों को नदी किना

अमृत का जहर हो जाना
Posted on 18 Jan, 2012 11:51 AM

उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले में बहने वाली ‘अमि’ (अमृत) नदी में उद्योगों और नजदीकी शहरों ने इतना ‘जहर’ प्रवाहित कर दिया है कि आसपास बसे लोगों का सांस लेना तक दूभर हो गया है। देश में एक के बाद एक नदियां अपना अस्तित्व खोती जा रही हैं। अधिकांश मछुआरे एवं किसान ‘अमि’ से लाभान्वित होते थे। धान इस इलाके की मुख्य फसल है और गेहूं एवं जौ भी यहां बोई जाती है। परंतु प्रदूषण की वजह से उपज एक तिहाई रह गई है। बोई और रोहू जैसी ताजे पानी की मछलियां अब दिखलाई ही नहीं देतीं। कई हजार मछुआरे या तो शहरी क्षेत्रों में दिहाड़ी मजदूरी कर रहे हैं या शराब बेच रहे हैं।

इंद्रपाल सिंह भावुक होकर बचपन में ‘अमि’ नदी से मीठा पानी पीने की याद करते हैं। गांव के बुजुर्ग बताते हैं नदी को अपना यह नाम ‘आम’ और अमृत से मिला है। उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले के अदिलापार गांव के प्रधान पाल सिंह का कहना है कि 136 कि.मी. लंबी यह नदी अब मुसीबत बन गई है। गोरखपुर औद्योगिक विकास क्षेत्र (गिडा) से निकलने वाले अनउपचारित गंदे पानी के एक नाले ने इस नदी को गंदे पानी की एक इकाई में बदलकर रख दिया है। नदी के निचले बहाव की ओर निवास कर रहे 100 से अधिक परिवारों के निवासी अक्सर सर्दी जुकाम, रहस्यमय बुखार, मितली आने और उच्च रक्तचाप की शिकायत करते हैं। रात में गंदे पानी से उठने वाली बदबू से उनका सांस लेना तक दूभर हो गया है। निवासियों का कहना है कि सूर्यास्त के बाद प्रवाह का स्तर आधा मीटर तक बढ़ जाता है।
सिंगापुर: आदर्श देश का जल प्रबंधन
Posted on 10 Oct, 2011 01:53 PM

जल प्रबंधन के क्षेत्र में सिंगापुर पूरे विश्व में एक उदाहरण है। इससे भारत भी सबक ले सकता है क्

खतरे में नदियां
Posted on 11 Apr, 2011 08:58 AM

विकसित देशों में नदियां सर्वाधिक खतरे में हैं। एक वैश्विक अध्ययन से पता चला है कि नदियों के प्राकृतिक प्रवाह में आ रहे लगातार अवरोधों के कारण नदियों और उसके सहारे चल रहा जीवन और जैव विविधता सभी कुछ संकट में पड़ गए हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हम पुनः नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को सुनिश्चित करें। सिर्फ मनुष्यों के लिए पानी उपलब्धता सुनिश्चित कराने हेतु नदियों के प्रवाह पर लगती रोक अंततः विनाशका

<strong>भरतलाल सेठ</strong>
सड़क से भूजल भरिए
Posted on 27 Sep, 2010 08:15 AM


सड़कों को नुकसान पहुंचाने वाले वर्षा जल का ठीक से इस्तेमाल कर देश में घटते भूजल स्तर को संभाला जा सकता है। आवश्यकता इस बात की है कि योजनाओं को समावेशी बनाए जाए और जल की उपलब्धता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।

भूजल
पानी साफ करती जादुई फली
Posted on 07 May, 2010 07:30 PM

अमृता प्रीतम की एक कविता में सुहांजने के फूल का जिक्र है, उनकी कविता का सुहांजना देश के अलग-अलग जगहों पर सुरजना, सैजन और सहजन बन जाता है। सहजन की फली (ड्रमस्टिक) का वृक्ष किसी भी तरह की भूमि पर पनप सकता है और यह बहुत कम देख-रेख की मांग करता है। इसके फूल, फली और टहनियों को अनेक प्रकार से उपयोग में लिया जा सकता है। ये एक जादुई फली है। भोजन के रूप में यह अत्यंत पौष्टिकता प्रदान करती है और इसमें
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